केंद्र सरकार इथेनॉल के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। ऐसे में बिहार सरकार ने भी इथेनॉल का उत्पादन बढ़ाने के लिए राज्य में मक्के का रकबा बढ़ाने का फैसला किया है। बिहार सरकार ने किसानों की आय बढ़ाने के लिए एक नई पहल की है। राज्य सरकार ने मक्के की खेती को बढ़ावा देने का निर्णय लिया है। इसके लिए शत-प्रतिशत मक्के के हाइब्रिड बीज लगाने का लक्ष्य रखा गया है। इसके अलावा गेहूं की पारंपरिक किस्मों की खेती को भी बढ़ावा देने की योजना है। राज्य सरकार रबी सीजन में मक्का के 100%, गेहूं के 36%, तिलहन के 40% और दलहन के 40% हाइब्रिड बीज लगाने की तैयारी कर रही है। यह योजना चालू वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए है। इसके लिए किसानों को बीज पर सब्सिडी और अन्य सुविधाएं देने की पहल है।
26 अक्टूबर, 2023 को बिहार कृषि विभाग द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, राज्य सरकार ने इथेनॉल का उत्पादन बढ़ाने के लिए राज्य में मक्का का क्षेत्र बढ़ाने का निर्णय लिया है। सरकार की योजना सभी जिलों में मक्के की खेती पर जोर देने और 100 प्रतिशत हाइब्रिड बीज बोने की है।
प्रमुख बिंदु
- बिहार कृषि विभाग के मुताबिक, सरकार की योजना राज्य के सभी 38 जिलों में मक्के की खेती का क्षेत्र बढ़ाने की है. मक्के की खेती ज्यादातर उत्तरी और पूर्वी मैदानी इलाकों में किसानों द्वारा की जाती है।
- गौरतलब है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने हाल ही में पटना में बिहार का चौथा कृषि रोडमैप (2023-2028) लॉन्च किया था, जिसमें इथेनॉल बढ़ाने पर जोर दिया गया था। इथेनॉल का उत्पादन बढ़ाने में मक्का बड़ी भूमिका निभा सकता है।
- बिहार सरकार ने रबी सीजन में अधिकतम उत्पादन हासिल करने के उद्देश्य से संकर मक्का 'संकर' बीज बोने का लक्ष्य रखा है। रबी में शत-प्रतिशत हाईब्रिड मक्का बीज लगाने की तैयारी है। इसके लिए किसानों को बीज पर सब्सिडी के अलावा अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने की पहल की जा रही है।
- बिहार कृषि विभाग के मुताबिक, इस बार राज्य में 1.50 लाख एकड़ क्षेत्र में मक्के की खेती का लक्ष्य रखा गया है, जिसमें मक्का उत्पादन का लक्ष्य भी करीब 12 हजार क्विंटल रखा जाएगा।
- कृषि विभाग ने भी सभी कृषि विज्ञान केंद्रों, कृषि विश्वविद्यालयों, किसान सलाहकारों और कृषि समन्वयकों को किसानों को जागरूक करने का निर्देश दिया है।
इसके साथ ही गेहूं की पारंपरिक किस्मों यानी सोना मोती, वंशी, टिपुआ गेहूं को बढ़ावा देने की योजना तैयार की गई है। पारंपरिक किस्में रोग प्रतिरोधी के लिए बेहतर व प्राकृतिक (Natural Farming) होती है। इन किस्मों में मौजूद उच्च प्रोटीन सामग्री के कारण, ये पोषण और स्वास्थ्य के लिए स्वाभाविक रूप से महत्वपूर्ण हैं। इनमें अन्य अनाजों की तुलना में कई गुना अधिक मात्रा में फोलिक एसिड होता है, जो रक्तचाप और हृदय रोगियों के लिए रामबाण है।
पारंपरिक किस्में अधिक उत्पादन के साथ प्राकृतिक तरीके से अपने क्षेत्र में संतुलन बनाए रखती हैं। इन किस्मों के उत्पादन में किसानों को कम मेहनत और कम खर्च की जरूरत पड़ती है। पारंपरिक किस्मों को बैक्टीरिया और जैविक उपचार के बिना सुरक्षित रूप से उगाया जा सकता है।