1. दीमक- दीमक पौधों को रात में जमीन की सतह से भी काटकर हानि पहुंचाती है इसके लिए निम्नलिखित उपाय कर इनकी रोकथाम करे-
1. इसके लिए खेत में कच्चे गोबर का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
2. इसके बाद फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए।
3. नीम की खली 10 कुन्तल प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई से पूर्व खेत में मिलाने से दीमक के प्रकोप में कमी आती है।
4. भूमि शोधन हेतु विवेरिया बैसियाना 2.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 50-60 किग्रा तथा सडे गोबर में मिलाकर 8-10 दिन रखने के उपरान्त प्रभावित खेत में प्रयोग करना चाहिए।
2. माहॅू- गेंहू की फसल में प्रौढ़ पत्तियों तथा बालियों से रस चूसते हैं तथा मधुश्राव भी करते हैं जिससे काले कवक का प्रकोप हो जाता है तथा विशेष रूप से प्रकाश संश्लेषण क्रिया बाधित होती है। इसकी रोकथाम के निम्नलिखित उपाय है, जिनसे आप इनका प्रकोप रोक सकते है।
1. इसके लिए सबसे पहले गर्मी में गहरी जुताई करनी चाहिए।
2. प्रकोप को रोकने के लिए समय से बुवाई करें.
3. 5 गंधपाश(फेरोमैन ट्रैप) प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए.
3. पत्ती धब्बा रोग- इस रोग में पीले व भूरापन लिये हुए अण्डाकार धब्बे नीचे की पत्तियो पर दिखाई देते है इसके बाद में धब्बो का किनारा कत्थई रंग का तथा बीच में हल्के भूरे रंग का हो जाता है।
रोकथाम- इस रोग के नियंत्रण हेतु थायोफिनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्लू.पी. 700 ग्राम अथवा जीरम 80 प्रतिशत डब्लू पी की 2.0 किग्रा अथवा मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्लू पी की 2.0 किग्रा अथवा जिनेब 75 प्रतिशत डब्लू पी की 2.0 किग्रा0 प्रति हे0 लगभग 750 ली पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए।
4. करनाल बन्ट- इस रोग में दाने आंशिक रूप से काले चूर्ण में बदल जाते है यह रोग संक्रमित /दूषित बीज तथा भूमि द्वारा फैलता है।
रोकथाम- बायोपेस्टीसाइड, ट्राइकोडरमा 2.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर 60-75 किग्रा सडी हुई गोबर की खाद मिलाकर हल्के पानी का छिटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुवाई से पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिलाकर भूमिशोधन करना चाहिए।