गर्मी में बोई जाने वाली सब्जियां और सब्जियों में सिंचाई प्रबन्धन

गर्मी में बोई जाने वाली सब्जियां और सब्जियों में सिंचाई प्रबन्धन
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Kisaan Helpline

Agriculture Apr 01, 2019

सब्जियों में सिंचाई प्रबन्धन
कृषि में अधिक उत्पादन हेतु कृत्रिम ढंग से पानी देने की क्रिया को सिंचाई कहते हैं। भारत में कुल सिंचित क्षेत्रफल लगभग 800 लाख है. हैं, और उपलब्ध कल जल का लगभग 80 प्रतिशत जल कृषि के लिए प्रयोग किया जाता है। सब्जी उत्पादन में पोषक तत्वों एवं जल का बहुत योगदान है। सब्जियों का 90 प्रतिशत या इससे अधिक भाग जल का बना होता है। पानी पोषक तत्वों के लिए विलेय का काम करता है और पानी के माध्यम से ही पोषक तत्व पुरे पौधे में पहुँचता है । सब्जियाँ जल की कमी के प्रति काफी सहिष्णु होती है। क्योंकि अधिकांश सब्जियों की जड़ें उथली होती है एवं पौध की वृद्धि एवं विकास कम समय में ही पूरी हो जाती है। थोडे अन्तराल के लिए भी पानी की कमी विशेषकर क्रान्तिक अवस्था में, उत्पादन के साथ - साथ सब्जियों की गुणवत्ता पर भी बुरा प्रभाव डालती है। सब्जियों में उत्तरोत्तर विकास के समय, फूल आने एवं फल वृद्धि के समय पानी की कमी होने पर सब्जियों में सबसे ज्यादा हानि होती है।

सब्जियों में सिंचाई संबंधी महत्वपूर्ण पहलू

टमाटर
फूल आने के समय मृदा में कम नमी के कारण फूल झड़ जाते हैं, निषेचन नहीं होता एवं फलों का आकार छोटा हो जाता है। फलों के पकने के समय अधिक सिंचाई से फलों में सड़न हो जाती है एवं फलों की मिठास कम हो जाती है। जल की कमी होने से मृदा में कैल्शियम की अल्पता आ जाती है जो कि पुष्प वृन्त को सड़ा देता है एवं फूल झड़ जाते हैं। मृदा नमी में उतार - चढ़ाव से फल फट जाते हैं।

बैंगन
बैंगन मृदा जल में असमानता के प्रति काफी संवेदनशील है । मृदा में कम नमी होने के कारण उपज में काफी गिरावट आती है एवं फलों का रंग सुचारू रूप से विकसित नहीं होता है। अधिक जलभराव से फसल में जड़ विगलन रोग लग जाता है।

मिर्च एवं शिमला मिर्च
लम्बे शुष्क वातावरण एवं मृदा में नमी की कमी होने के कारण ( विशेषकर गर्मियों में) फूल एवं छोटे फल गिर जाते हैं तथा पौधा पुनः पानी देने पर भी समायोजित नहीं कर पाता है। कम नमी होने के कारण पोशक तत्वों का अवशोषण कम हो जाता है तथा फल की वृद्धि रुक जाती हैं। फूलों एवं फलों के झड़ने एवं सड़कर गिरने से रोकने के लिए मृदा में पर्याप्त नमी बनाए रखना आवश्यक होता है।

प्याज
प्याज की जडे काफी उथली होती हैं इसलिए इसे कम परन्तु बार - बार पानी देने की आवश्यकता होती है। शल्ककंद के विकास के समय पानी की कमी होने पर प्याज की उपज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इस अवस्था पर नमी की कमी से नई वानस्पतिक वृद्धि का रूकना, दो शल्ककंदों का बनना, कन्द का फटना आदि विकार देखे गए हैं। इन विकृतियों से प्याज का बाजार मूल्य गिर जाता है। प्याज की फसल तने के पास से स्वय झुककर गिर जाने या कुचलने के बाद सिंचाई करने से भण्डारण में फफूंदजनित बीमारियों के लगने की सम्भावना बढ़ जाती है।

मूली एवं गाजर
ये सब्जियां रसीली एवं गुदेदार होने के कारण सिंचाई के प्रति काफी संवेदनशील है।जड़ों की वृद्धि एवं विकास के समय नमी की कमी होने से फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जड़ों की बढवार के समय नमी की कमी की दशा में जडों का विकास रूक जाता है। जड़ें ढेड़ी-मेडी एवं खुरदरी हो जाती है तथा जड़ों में नाइट्रेट की मात्रा बढ़ जाती है जो कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। गाजर में कम नमी की दशा में जड़ों से अरुचिकर महक आती हैं। मृदा के सूखे रहने के बाद एकाएक सिंचाई करने से जड़े फट जाती है। जड़ के विकास पर अधिक नमी होने पर जड़ की अपेक्षा पत्तियों का विकास ज्यादा होता है।

पत्तागोभी
मृदा के काफी समय तक शुष्क रहने के बाद सिंचाई करने या वर्षा होने पर शीर्ष(बंद) फट जाता है। चायनीज पत्तागोभी में बंद विकास के समय कम नमी की दशा में पत्तियों का ऊपरी किनारा सूख जाता है। फसल की आरम्भिक अवस्था में अधिक नमी की जडों का अनावश्यक अधिक विकास होता है तथा मृदा पोषक तत्वों की ज्यादा हानि होती है।

खीरा
फूल आने पर मृदा में नमी के अभाव से परागकण विकृत एवं मरे हुए बनते हैं जिससे फसल उत्पादन कम हो जाता है। फलों के विकास के समय नमी के अभाव में फलों का आकार बिगड़ जाता है और उनमें कड़वाहट आ जाती है। खेत में थोड़े समय तक भी जलभराव होने से पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं एवं लताओं का विकास रूक जाता है। 

खरबूज
खरबज में फलों के पकने के समय सिंचाई नहीं करनी चाहिए अन्यथा फलों में मिठास, विलेय पदार्थ एवं विटामिन सी की मात्रा कम हो जाती है।

तरबूज
फलों के पकने के समय तरबूज में सिंचाई बन्द कर देनी चाहिए अन्यथा फलों की त्वचा फट जाती है, गुदे रेशेदार एवं कम रसीले होते हैं तथा फल की गुणवत्ता खराब हो जाती है। फलों की बढवार पर नमी की कमी से फलों में नाइट्रेट की मात्रा बढ़ जाती है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।

मटर
मृदा में कम नमी की दशा में ही मटर को पानी देने की आवश्यकता पड़ती है। मटर में प्रथम सिंचाई फल आने पर ( बूवाई के लगभग 30 - 40 दिन के बाद ) तथा दूसरी सिंचाई फली के विकास के समय (बुवाई के 50-60 दिन के बाद ) आवश्यकता पड़ती है। वानस्पति वृदि के समय मृदा में कम नमी होने पर नत्रजन स्थरीकरण करने वाली गॉंठों का निर्माण कम होता है तथा फसल की वृदि रुक जाती है। मटर में ज्यादा सिंचाई करने से पौध सूख जाते हैं एवं फलियों की परिपक्वता असमान रूप से होती है।

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