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जबलपुर। वैज्ञानिको की माने तो अब अरहर की खेती किसानों को दोहरा लाभ देगी। एक अरहर का पौधा देगा 2 किलो उत्पादन और 600 ग्राम का लाख भी। किसानों को अरहर पौधे के साथ-साथ लाख भी मिलेगा। इस नई तकनीकी से अरहर की फसल सामान्य फसल की तुलना में चार गुना पैदावार होगी। अरहर की खेती के लिए उपजाऊ जमीन की भी जरूरत नहीं पड़ती, बल्कि इसकी खेती मिट्टी से भरी बोरियों में होगी। जबलपुर के जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक की रिसर्च से यह संभव हो पाया है। यहां सीमित जमीन आय और साधनों की कमी की अवधारणा पर आधारित अरहर की खेती पर सफल प्रयोग किया गया है।
जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के प्रधान वैज्ञानिक प्रो. मोनी थॉमस के मुताबिक उपजाऊ जमीन सीमित होती जा रही है। इसलिए कृषि विभाग सीमित साधन, जमीन और कम लागत पर ज्यादा उपज देने वाली तकनीक खोज रहा है। ऐसी ही एक तकनीक पर विश्वविद्यालय के खेतों में रिसर्च पूरी हो चुकी है। एक बोरी में 20 किलो मिट्टी का स्पेशल ट्रीटमेंट कर उसमे अरहर के पौधे लगाए गए हैं। करीब आधा एकड़ में 200 अरहर के पौधे लगाए गए हैं। इनमें लाख पैदा करने के लिए 20 लाख कीट भी छोड़े गए हैं। ये कीड़े, पौधों को नुकसान पहुंचाने की बजाए, उन्हें लाख दे रहे हैं।
इससे होने वाला फायदा
इस तकनीक के अनुसार खेती करने पर एक पौधे से 2 किलो अरहर, 600 ग्राम लाख और तकरीबन 5 किलो जलाऊ लकड़ी मिलेगी। फसल 10 महीने में तैयार होगी, जबकि साधारण तरीके की खेती में सिर्फ 500 ग्राम अरहर व जलाऊ लकड़ी मिलती है।
लाख का बाजार मूल्य 110 रुपए प्रति किलो
लाख का मतलब एक प्रकृति लाख से है। छोटे-छोटे लाल कीटों द्वारा अपनी सुरक्षा के लिए शरीर में उपस्थित सूक्ष्म ग्रंथियों के स्राव से कवच बनाते हैं। सामान्य रूप से लाख का उत्पादन कुसुम, खैर, बैर और सेमियालता के पौधों से छोटे गए कीटों से मिलता है। लाख का उपयोग औषधि, खाद्य प्रसंस्करण, सौंदर्य प्रसाधन, सूक्ष्म रसायन एवं सुगंध उद्योग में होता है। अरहर के पौधे पर छोटे गए लाख के कीटों से उसे कोई नुकसान नहीं होता है। बाजार में लाख 110 रुपए प्रति किलो बिकती है।
रिलायंस फाउंडेशन को पसंद आई रिसर्च के अनुसार गांवों में शुरू हुई खेती : रिलायंस फाउंडेशन को यह तकनीक पसंद आई है। फाउंडेशन के जिला अनुवादक अनिल रैदास ने बताया कि पनागर के सोनपुर समेत चार गांव की 10 महिलाओं के साथ अरहर और लाख की खेती कर रहे हैं।
विध्यार्थी ने पीएचडी के शोध कार्य में किया शामिल : जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय में पीएचडी कर रहे विध्यार्थी ने इस तकनीक को अपने पीएचडी के शोध में शामिल कर लिया है। इससे दो विध्यार्थी ने पीएचडी कर ली और तीन अभी कर रहे हैं।
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