1. फसल की कटाई करने के बाद बचे हुए फसल अवशेषों, घास एवं अन्य कचरे को इकट्ठा करके उसे जला देना चाहिए। क्योंकि दीमक इन्हे अपनी खुराक बनाकर जिंदा रहते हैं।
2. फसल कटाई करने के बाद खेत की दो या तीन बार गहरी जुताई करनी चाहिए।
3. इनसे बचने के लिए फसलों की समय-समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए क्योंकि सूखे की स्थिति में दीमक के प्रकोप की संभावना और ज्यादा बढ़ जाती है।
4. अच्छी पकी हुई और अच्छी गोबर की खाद ही खेत में डालनी चाहिए। खाद में दीमक लगी हो तो मिथाइल पैराथियान 2.0 प्रतिशत चूर्ण खाद में मिला देना चाहिए। इसके अलावा नीम की खली का प्रयोग किया जा सकता है क्योंकि इसकी गंध से दीमक दूर भाग जाती है।
5. दीमक से प्रभावित खेत में बुवाई से पहले 1.5% को 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से अन्तिम जुताई के समय में मिला देना चाहिए, इस फॉर्मूले का भी काफी असर पड़ता है।
6. बीजों को उपचार करके ही बोना चाहिए। बीज उपचार के लिए 450 मि.ली. क्लोरोपायरीफॉस 20 ई.सी. दवा 5.0 लीटर पानी में घोल बनाकर 100 की.ग्रा. बीज पर समान रूप से छिड़काव करें। इसके बाद बीजों को छाया में सुखाकर तुरंत बुवाई करें।
7. खड़ी फसल में दीमक की रोकथाम के लिए 4.0 लीटर क्लोरोपायरीफॉस 20 ई.सी. प्रति हेक्टेयर कि दर से सिंचाई के साथ दे।
8. फलवृक्षों के तने के पास जमीन में 25-50 ग्राम क्यूनालफॉस 25-50 प्रतिशत चूर्ण मिला देना चाहिए या तरल क्लोरोपायरीफॉस 20 ई.सी से पानी में मिलाकर देना चाहिए।