दीमक फसलों को हानि पहुंचाने वाले सामान्य कीट की श्रेणी में आती है। सामान्यतः यह मुख्य हानिकारक कीट के अंतर्गत नहीं आती , लेकिन बारानी अवस्थाओं में इसका प्रकोप अधिक देखा गया है। दीमक मुख्यत: मृतजीवी पादप पदार्थों पर ही अपना जीवनयापन करती है। लेकिन भोज्य पदार्थ की कमी होने के समय में ये सजीव पौधों की जड़ों से अपना भोजन लेना आरंभ कर देती है। श्रमिक दीमक सजीव पौधों से ही अपना भोजन ग्रहण करती है। ये पौधों के तनों के सहारे सुरंग बनाकर पौधों की जड़ों तक पहुंचकर उन्हें हानि पहुंचाती हैं। इस कारण पौधे मुरझाना शुरू हो जाते हैं और अंत में सूख जाते हैं। दीमक से प्रभावित पौधा आसानी से हाथों से खींचने से उखड़ जाता है। सूखा पड़ने की स्थिति में दीमक का प्रकोप खड़ी फसल में अधिक देखा गया है।
प्रबंधन
1. प्रभावित खेत में सिंचाई समय - समय पर करते रहें।
2. खेत में हमेशा गोबर की सड़ी हुई खाद का प्रयोग करें।
3. एक कि . ग्रा . बिवेरिया तथा एक कि.ग्रा. मेटारिजियम को लगभग 25 कि.ग्रा गोबर की सड़ी हुई खाद में अच्छी तरह मिलाकर छाया में 10 दिनों के लिए छोड़ दें । प्रभावित खेत में प्रति एकड़ बुआई से पूर्व इसका प्रयोग करें।
4. सिंचाई के समय इंजन से निकले हुए तेल की 2-3 लीटर मात्रा का प्रयोग करें।
5. प्रकोप अधिक होने पर क्लोरोपाइरीफॉस 20 ई . सी . की 3-4 लीटर मात्रा को बालू रेत में मिलाकर प्रति हैक्टर प्रयोग करें।
6. चने के बीज को बुआई से पूर्व इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यूएस 0.1 प्रतिशत से उपचारित करना चाहिए।