1. तना छेदक कीट : आर्थिक क्षति स्तर : 10 प्रतिशत मृत गोभ। पूर्ण विकसित सूड़ी 20 - 25 मिमी . लम्बी , गन्दे भूरे सफेद रंग की होती है। इसका सिर काला होता है। तथा शरीर पर चार भूरी धारियाँ पाई जाती है । इसका प्रौढ़ पीले भूरे रंग का होता है। इस कीट की सूड़ियाँ तनों में छेद करके अन्दर ही खाती रहती हैं। फसल के प्रारम्भिक अवस्था में प्रकोप के फलस्वरूप मृतगोभ बनता है परन्तु बाद की अवस्था में प्रकोप होने पर पौधे कमजोर हो जाते है ,भुट्टे छोटे आते हैं तथा हवा चलने पर पौधा बीच से टूट जाता है।
2. प्ररोह मक्खी - आर्थिक क्षति स्तर : 10 प्रकोपित मृत गोभ। यहाँ घरेलू मक्खी से छोटे आकार की होती है जिसकी सुंडी जमाव के प्रारम्भ होते ही फसल को हानि पहुँचाती है। हानि के फलस्वरूप मृतगोभ बनता है।
3. पत्ती लपेटक कीट : इस कीट की सुंडी हल्के पीले रंग की होती है जो पत्तियों के दोनों किनारों को रेशम जैसे सूत से लपेट कर अन्दर ही रहती है तथा अन्दर से हरे पदार्थ को खुरचकर खाती है।
4 . कमला कीट: सूड़ियां 40 - 45 मिमी. लम्बी होती है, इनका शरीर घने भूरे रंग के बालों से ढका रहता है। इस कीट की सूड़ियां पत्तियों को खाकर काफी नुकसान पहुंचाती है।
5 . माहू : हरी टागों वाली गहरे भूरे या पीले रंग वाली पंखहीन एवं पंखयुक्त गोभ , हरे भुट्टे एवं पत्तियों से रसचूस कर हानि करती है। प्रत्येक मादा 1 - 5 शिशु / दिन की दर से 10 - 25 दिन में 24 - 47 शिशु पैदा करती है।
6 . छाले वाला भुंग : मध्यम आकार की 125 - 25 सेमी . लम्बी चमकीने नीले , हरे , काले या भूरे रंग की होती है । छेड़ने पर ये अपने फीमर के अन्तिम छोर से कैन्थ्रडिन युक्त एक तरल पदार्थ निकालती है जिस के त्वचा पर लगने से छाले पड़ जाते हैं। इनके प्रौढ़ फूलों एवं पत्तियों को खाकर नुकसान पहुंचाते है इनकी सूड़ियां का विकास टिड्डे एवं मधुमक्खियों के अण्डों पर होता है।
1. खेत में पड़े पुराने खरपतवार एवं अवशेषों को नष्ट करना चाहिए।
2. इमिडाक्लोप्रिड 6 मिली . / किग्रा . बीज दर से बीज शोधन करना चाहिए।
3. संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए।
4. प्ररोह मक्खीः प्रभावी क्षेत्रों में 20 प्रतिशत बीज दर को बढ़ा कर बुवाई करना चाहिए।
5. प्ररोह मक्खीः प्रभावित क्षेत्रों में बुवाई मानसून आने के 10 - 15 दिन बाद करना चाहिए।
6. सप्ताह के अन्तराल पर फसल का निरीक्षण करना चाहिए।
7. मृतगोभ दिखाई देते ही प्रकोपित पौधों को भी उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए।
8. प्ररोह मक्खीः प्रभावित क्षेत्रों में 10-12 / हे . की दर से पालीथीन मछली प्रपंच लटकाना चाहिए।
9. प्रारम्भिक अवस्था में कमला कीट की झुण्ड में पाई जाने वाली गिडारों को सावधानी से पकड़ कर नष्ट कर देना चाहिए।
10. तना छेदक एवं पत्ती लपेटक कीटों के लिए ट्राइकोग्रामा परजीवी 50000 प्रति हे . की दर से अंकुरण के 8 दिन बाद 5 - 6 दिन के अन्तराल पर 4 - 5 बार खेत में अवमुक्त करना चाहिए
11. माहू के प्रकोप की दशा में क्राइसोपर्ला कार्निया को 50000 / हे . की दर से सप्ताह के अन्तराल पर अवमुक्त करना चाहिए।
12. भण्डारण भुट्टों से दाने निकाल कर ही करना चाहिए।