रोपाई
स्त्री पद्धति के अन्तर्गत मात्र 8 - 12 दिन पुरानी पौध प्रयोग की जाती है। अतः पौध को खुरपी की सहायता से इस प्रकार निकालें कि पौध में बीज चोक एवं जड़ो में मिट्टी लगी रहे। यदि मैट विधि से नर्सरी डाली गई है मैट को सीधे उठाकर रोपाई वाले खेत के पास ले जा सकते हैं। 8 - 12 दिन अवधि की 2 - 3 पर्णीय पौध को 25 सेमी. से 25 सेमी. की दूरी पर 2 - 3 सेमी. पर अंगूठे एवं अनामिका अंगुली की सहायता से एक - एक पौध बीज चोल एवं मिट्टी सहित प्रति हिल बगैर पानी भरे खेत में लगायें। पौध की रोपाई जिस बिन्दु पर ऊधारकार एवं समानान्तर लाइन एक दूसरे को काटे पर करें। पौधे की जड़ों को सूखने से बचाने के लिए पौधशाला से पौध निकालने के बाद आधा घण्टे के अन्दर लगाने का प्रयास किया जाना चाहिए।
खरपतवार नियन्त्रण
खरपतवार नियन्त्रण हेतु यांत्रिक विधि काफी सस्ती एवं उपयुक्त पाई गई है। वीडर के चलाने के लिये यह नितान्त आवश्यक है कि पौधों से पौधों की तथा लाईन से लाईन की दूरी अधिक हो जिससे दोनों ही ओर से वीडर को आसानी से चलाया जा सके। वीडर के द्वारा खरपवतार नियन्त्रण करने से खरपतवार खेत में ही पलटकर मिट्टी में दबने से सड़कर जैविक खाद का काम करते है जिससे पौधों को पोषक तत्व प्राप्त होते है। वीडर के प्रयोग से खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है और मृदा में वायु संचार बढ़ जाता है। जड़ों के पूर्ण विकसित होने के फलस्वरूप पौधे की वानस्पतिक एवं पुनरूत्पादक वृद्धि अधिक होती है। रोपाई के 10 दिन बाद से 10 दिन के अन्तराल पर 3 - 4 बार वीडर चलाकर खरपतवारों का नियन्त्रण किया जाना आवश्यक है। वीडर के सुचारू संचालन हेतु खेत में नमी होना आवश्यक है। स्री पद्धति के तहत धन की रोपाई दूरी पर की जाती है तथा कालान्तर में अधिक कल्ले निकलने के कारण बीच का अन्तराल कम होने लगता है। खरपतवार नियन्त्रण हेतु विभिन्न प्रदेशों के अनुभवों के आधार पर कोनोवीडर का प्रयोग अधिक प्राभावी पाया गया। अतः वीडर में निम्न खूबियों होनी चाहिए :
1. वीडर के दॉतों के बीच की दूरी कम - ज्यादा करने का प्रावधान हो।
2. वीडर के दाँतों से चिपकी मिट्टी छुड़ाने की व्यवस्था हो।
3. वीडर हल्का एवं टिकाऊ हो।
4. वीडर की कीमत कम हो।