भारत के किसानों को हायटेक खेती की राह दिखाता इजराईल

भारत के किसानों को हायटेक खेती की राह दिखाता इजराईल
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Agriculture Apr 23, 2019

डैन अल्फ की एक रिपोर्ट भारत और इज़राइल के कृषि के लिए साथ मिलकर काम करने के कुछ तरीके -

जैसा की विश्व विदित है, इजराईल एक छोटा राज्य है जिसमें विभिन्न जलवायु, क्षेत्रों के साथ ज्यादातर विपरीत जलवायु परिस्थितियां हैं। देखा जाये तो इजराईल में अधिकांशत: रेगिस्तान, शून्य वर्षा और बहुत चरम तापमान है। वहीं इजराईल की केवल 3 प्रतिशत आबादी खेती से जुड़ी है। इज़राइल सरकार द्वारा स्थानीय लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा पहला लक्ष्य था, और सरप्लस उत्पादन के लिए बाजार खोजना दूसरा लक्ष्य था। अधिकांश उत्पादों के लिए यूरोप, उत्तरी अमेरिका के प्रीमियम बाजार और इसके लिए हमने काम करना शुरू किया। जब एक तरफ आपके पास खेती करने के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण परिस्थितियां होती हैं, और दूसरी तरफ आप अधिकतम लाभ के लिए सबसे अधिक प्रीमियम बाजारों तक पहुंचाना चाहते हैं, तो आपको वास्तव में खेती के सभी पहलुओं में विशेषज्ञ बनने की आवश्यकता है।

इजऱाइल के जागरूक किसान हमेशा समाधान की तलाश में रहते हैं चाहे समस्या जो हो और हमेशा कृषि व्यवसाय से धन कमाने की तलाश में रहते हैं। प्रत्येक किसान अपने खेत को व्यवसाय के रूप में देखता है। उनके बुनियादी विचारों को ध्यान में रखते हुए इजराईली किसान खेती में क्या उगाना है, उगाने का श्रेष्ठ तरीका क्या होगा, और फसल आने पर वहीं तक नहीं रुक जाना है, उसके आगे की रूपरेखा और बाजार के बारे में भी कार्य योजना बनाता है।

जब आप इजराईल के विश्वविद्यालयों में जाते हैं, तो वे व्यावहारिक शोध एवं उस तरह के अनुसंधान में संलग्न होते हैं जो जमीन पर उतारे जा सकते हैं। इजऱाईल में वॉल्केनी शोध संस्थान कृषि अनुसंधान में विश्व में अग्रणी हैं। वे यहां बहुत सी किस्मों का विकास करते हैं और इसमें 10-20 साल लगते हैं और केवल सरकार ही इस तरह के शोध में खर्च की जाने वाली धनराशि का प्रबंधन कर सकती है। जैसे बीज की 400 किस्म का परीक्षण चल रहा है और उसमें से केवल 2 ही किस्में सूचीबद्ध होंगी। यह सब अनुसंधान विस्तार कार्यक्रमों की मदद से खेतों में रूपांतरित हो जाता है।

कृषि के चार स्तंभ

इज़राइल में कृषि के लिए चार स्तंभ अर्थात् शोध संस्थान, निजी कंपनियां, विस्तार और किसान एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करते हैं और जो भी कमियां पाई जाती हैं उसकी पहचान की जाती है और किसानों की समस्याओं को दूर करने के लिए समाधान दिया जाता है।

इजरायल के कृषि उपज बाजार को सरकार द्वारा सब्सिडी के मामले में कुछ हद तक समर्थन दिया जाता है। जब आप नई तकनीक को लागू करते हैं या प्रमुख नकदी फसलों को लगाते हैं, तो सरकार प्रोत्साहित करना चाहती है। लेकिन किसान को क्या बोना है, क्या लगाना है, इस विषय में सरकार की भागीदारी सीमित है। अंत में एक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था और किसान दोनों मिलकर वही एजेंडा या व्यापार मॉडल को आगे ले जाएंगे जो उनके लिए फायदेमंद होगा। इस लिहाज से इजऱाईल अद्वितीय है क्योंकि इजराईल में अधिकांश खेती दो प्रकार के समूह द्वारा की जाती है, एक मोशाव और दूसरा किबुत्ज़। मोशाव याने एक गाँव है, हर परिवार के पास उनके खेत हैं। मैं मोशाव से हूँ। वहीं किबुत्ज एक कम्यून गांव है और वे सभी समुदाय के सभी लोग जमीनों को मिलाकर, 3 या 5 हेक्टेयर में खेती करने के बजाय 200 या 2000 हेक्टेयर में खेती करते हैं। चूंकि इजराईल एक मुक्त बाजार है, कुबुत्ज़ उत्पादन और विपणन में एक प्रमुख भूमिका निभाता है।

MASHAV अंतर्राष्ट्रीय विकास और सहयोग के लिए इजऱाईल एजेंसी है। इसके तहत भारत और इजराईली सरकार की भागीदारी है। और यह भारत-इजऱाईल कृषि परियोजना (IIAP) में विकसित हुआ है। इस संबंध में मूल्य श्रृंखला (वैल्यू चेन) को दर्शाने वाले उत्कृष्टता केंद्र (सीओई) की स्थापना करके किसानों को लाभान्वित करना चाहते हैं। इसमें मूल्य श्रृंखला प्रमुख फसलों पर है।

भारत और इजराईल किस प्रकार मिलकर काम कर रहे हैं, इसका आम फल एक बड़ा उदाहरण है, इसलिए जब इजराईल को कृषि के मामले में भारत आने, साथ काम करने और आम की अधिक गहन खेती की दिशा में काम करने के लिए कहा गया, तो हमारे मन में भारत के लिए बहुत सम्मान था। इजरायल में पिछले 40 वर्षों से आम की पैदावार करते हैं, लेकिन भारत में आम की खेती हजार वर्षों से हो रही है। इस संबंध में, हमने भारत को बताया कि हम आम के बागान बहुत सघन तरीके से करते हैं, आप इसे अपने पारंपरिक तरीके से लगाते हैं। हम इसे बदलने और इजऱाईल तकनीक को भारत में कॉपी पेस्ट करने का नहीं कह रहे हैं। हमें इन तकनीकों को अपने केंद्रों और केंद्रों से प्रगतिशील किसानों तक पहुंचाने की जरूरत है।


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