वर्तमान समय में जल एक गंभीर समस्या है, बात चाहे पिने के जल की हो, चाहे खेतो में सिंचाई के लिए, देश के कई प्रान्त आज भी जल संकट से जूझ रहे है। हमारे देश में विश्व के मीठे जल संसाधनों का महज कुछ फीसद उपलब्ध है, बाकी 60 प्रतिशत जल को खेती के लिए उपयोग किया जाता है। देश में मानसून के समय में भी सामान्य वर्षा तो हो ही जाती है। लेकिन बारिश के पानी को संरक्षित करने के लिए कोई विशेष प्रोत्साहन नहीं है। हमारे देश में ठीक से जल प्रबंधन नहीं होने की वजह से बरसात के पानी की बाढ़ उपजाऊ मिट्टी को अपने साथ बहा ले जाती है। इस दौरान उपजाऊ मिट्टी के बड़े हिस्से का प्रतिशत किसानों की उपज को प्रभावित करता है, इसीलिए यह जानना बहुत जरुरी है कि किसान इस बरसाती मौसम में कैसे पानी को संरक्षित कर सकते है।
भूमि की लेजर लेवलिंग
लेजर लेंवलिंग इस तरह की तकनीक जो आपके खेतो की सिंचाई के लिए पानी के संरक्षण में अत्यंत उपयोगी होती है, खेतों में बनी हुई अरियां मिट्टी की जल दक्षता को बढ़ाने में काफी मददगार भी होती है। जल संरक्षण की इस विधि से पानी की काफी बचत होती है। अगर देखा जाये तो कुल जरूरत में 20 से 25 प्रतिशत तक की बचत कर सकते है, इससे अकुंरण, पौधों के खड़ा रहने की शाक्ति और फसल की पैदावार बढ़ती है।
पीपे में पानी का भंडारण
पीपे के जरिये आप बारिश के पानी को संरक्षित करके रख सकते है और यह जल काफी उपयोगी होता है। इस विधि के जरिये आप संगृहित पानी का इस्तेमाल वर्षा के बाद के मौसम में या सूखा के दौरान किया जा सकता है। बस इस दौरान आपको इतनी सावधानी रखनी होगी की पीपो को ढककर और मुंह पर जाली लगाकर जरूर रखे ताकि उससे मच्छर न पैदा हो।
ड्रिप सिंचाई तकनीक
पानी की बचत के लिए ड्रिप सिंचाई तकनीक पर खर्च करने की कोशिश करें, यह सिंचाई की सर्वोत्तम विधि है।
जैव पदार्थों का इस्तेमाल
उन्नत खेती और अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी को समय- समय पर पानी मिलना बहुत जरुरी होता है, अगर पानी की कमी रहती है, तो किसान नमी को बनाए रखने के लिए मिट्टी को जैव खाद, सूखे चारे, घास, पुआल, छाल आदि से ढक लें। ताकि इनके जरिये मिट्टी में नमी बनी रहे।
छोटे-छोटे तालाबों का निर्माण
खेती के लिए बारिश का पानी, जल का प्राकृतिक स्त्रोत होता है, सिंचाई के लिए इसका प्रयोग करना चाहिए। आप खेत के निचले हिस्से में छोटे-छोटे तालाब बना सकते है ताकि बरसात का पानी सिंचाई की ओर से आकर इसमें जमा हो सकें।