गलघोंटू रोग हिमोरेजिक सेप्टीसिमिया के नाम से जाना जाता है। यह पास्चुरेला मल्टीसिडा नामक जीवाणु से होता है। यह रोग पशुओं में बरसात में होता है तथा भैंसों में इस रोग का प्रकोप अधिक होता है। अति तीव्र ज्वर के साथ प्रारंभ होने वाला गाय तथा भैंस आदि पशुओं को प्रभावित करने वाला जीवाणुजनित यह आम पशु रोग है, जो महामारी के रूप में फैलता है। किसी भी उम्र के पशु किसी भी मौसम में इससे ग्रस्त हो सकते हैं। बरसात के दिनों में इस रोग के फैलने की आशंका अधिक रहती है।
लक्षण
एकाएक सुस्ती, भूख तथा जुगाली बंद, तीव्र ज्वर (106-108° फॉरेनहाइट), तेज परन्तु धीमी सांस, मुंह से लार टपकना, आंख तथा अन्य श्लेष्मा झिल्लियों में लालीपन, आंसुओं का स्राव, सिर तथा गर्दन में दर्दयुक्त सूजन, जीभ बाहर निकालकर सांस लेना, सांस में घरघराहट, बेचैनी तथा अंत में मृत्यु इस रोग के मुख्य लक्षण हैं।
मृत्यु दर : 70-100 प्रतिशत ।
उपचार
रोग के शुरूआती दौर में तीव्रता तथा पशु की स्थिति के अनुसार उचित एंटीबायोटिक्स के साथ सपोटिंग औषधि द्वारा इलाज किए जाने पर संतोषजनक परिणाम मिलते हैं। धुआं करने की आम परिपाटी को रोकना चाहिए। इससे सांस लेने में कठिनाई बढ़ जाती है। गर्म बालू अथवा अन्य धुआंरहित सामग्री की पोटली बनाकर सूजन वाले भाग पर सेंकना चाहिए। पशु को ज्यादा छेड़छाड़ से बचाना चाहिए।
रोकथाम / बचाव
- पशुशाला को साफ रखें। समय पर टीका लगवाएं। रोग से ग्रसित पशुओं को अलग रखें।
- ए. एस. आईल एड्ज्यूवेट वैक्सीन 6 माह के ऊपर की आयु के सभी पशुओं में लगवाना चाहिए। एच.एस. का टीकाकरण ही इस रोग से पशु की रक्षा कर सकता है।
- वर्षा ऋतु से पहले प्रतिवर्ष यह टीका लगवा लेना चाहिए।
- यह छूत का रोग है। रोगी पशुओं को तुरंत स्वस्थ पशुओं से अलग कर दें। उन्हें अलग से पानी व चारा देना चाहिए।
- मृत पशु को गहरा गड्ढा खोदकर गाड़ दें।