औषधीय गुणों से भरपूर हल्दी किसानों के लिए एक वरदान, जानिए कैसे करें हल्दी की उन्नत खेती

औषधीय गुणों से भरपूर हल्दी किसानों के लिए एक वरदान, जानिए कैसे करें हल्दी की उन्नत खेती
News Banner Image

Kisaan Helpline

Agriculture May 19, 2021

हल्दी एक महत्वपूर्ण मसाले वाली फसल है, जिसका प्रयोग मसाले, औषधि, रंग सामग्री और सौंदर्य प्रसाधन के रूप में तथा धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है। हल्दी की खेती एवं निर्यात में भारत विश्व में पहले स्थान पर है। यह फसल गुणों से परिपूर्ण है हल्दी की खेती आसानी से की जा सकती है तथा कम लागत तकनीक को अपनाकर इसे आमदनी का एक अच्छा साधन बनाया जा सकता है। भारत में यह फसल आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, कर्नाटक और केरल में उगाई जाती है।

प्रसिद्ध किस्में
मसाले वाली किस्‍म, पूना, सोनिया, गौतम, रशिम, सुरोमा, रोमा, क्रष्णा, गुन्टूर, मेघा, हल्दा1, सुकर्ण, सुगंधन तथा सी.ओ.1 आदि प्रमुख जातियां है जिनका चुनाव किसान कर सकते है। थोडी सी मात्रा यदि एक बार मिल जाती है तो फिर अपना बीज तैयार किया जा सकता है।

बुवाई का समय
जलवायु, क़िस्म एवं सिंचाई की सुविधानुसार इसकी बुवाई 15 मई से 15 जून के मध्य की जा सकती है।

बुवाई का तरीका
बुवाई हेतु हल्दी की सुविकसित गांठो वाले कंदो का प्रयोग करते है बुवाई मेढ़ बनाकर करते है।

दुरी
मेंड और कूंड़ के बीच के लिए अनुकूल दूरी 45-60 से.मी. और कतारों एवं पौधों के बीच 25 से.मी. की दूरी रखनी चाहिए।

बीज की मात्रा
हल्दी की बुवाई हेतु 20-25 क्विंटल/हेक्टेयर गांठो की आवश्यकता होती है।

बीज उपचार
रोपने के पूर्व डाईथेन एम-45 के 0.3% घोल से इसके कंदों को उपचारित कर लेने से कंद सड़न बीमारी नहीं लगती।

जलवायु 
हल्दी गर्मतर जलवायु का पौधा है लेकिन समुन्दरतल से लगभग 1500m के ऊंचाई तक के स्थानो में भी हल्दी की खेती की जा सकती है। जब वायुमंडल का तापमान 20 से.ग्रे. से कम हो जाता है तो हल्दी के पौधे के विकास पर काफी प्रभाव पड़ता है।

भूमि
हल्दी की खेती बलुई दोमट या मटियार दोमट मृदा में सफलतापूर्वक की जाती है। जल निकास की उचित व्यवस्था होना चाहिए। यदि जमीन थोडी अम्लीय है तो उसमें हल्दी की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।

खेत की तैयारी
हल्दी की खेती हेतु भूमि की अच्छी तरह हल या कल्टीवेटर से 2-3 जुताई करने की आवश्यकता है, क्योंकि यह जमीन के अंदर होती है जिससे जमीन को अच्छी तरह से भुरभुरी बनाया जाना आवश्यक है।

खाद एवं रासायनिक उर्वरक 
हल्दी की खेती में भूमि की जुताई के समय अथवा रोपाई के बाद आधारीय खाद के रूप में गोबर की खाद व कम्पोस्ट 40 टन/हे. की दर से क्यारियों में फैलाकर बीजों को ढंकते हुए प्रयोग करना चाहिए। 60 कि.ग्राम नत्रजन, 50 कि. ग्राम फॉसफोरस तथा 120 कि.ग्राम पोटाश प्रति हे. की दर से उर्वरक बीच बीच में प्रयोग करना चाहिए, तथा नत्रजन की आधी मात्रा बुवाई के 40 दिन बाद एवं शेष आधी मात्रा 90 दिन बाद खेत में डाले।

प्रमुख रोग एवं नियंत्रण
पर्णदाग (लीफ ब्लोच) :- पत्ती धब्बा ट्रफीना माकुलन्स के कारण होता है और पत्तों के दोनों भागों पर छोटे, अण्डाकार, आयताकार या अनियमित बादामी रंग वाले धब्बों के रूप में दिखाई पड़ते हैं, जो तुरन्त ही धुंधले पीले रंग या काले बादामी रंग में बदल जाते हैं, पत्ते भी पीले रंग के हो जाते हैं। रोग की तीव्र अवस्था में पौधे सिकुड़े हुए दिखाई पड़ते हैं और प्रकन्दों की उपज भी कम हो जाती है। मैंकोजेब 0.2% के छिड़काव से इस रोग पर काबू पाया जा सकता है।
प्रकन्द गलन :- यह रोग पाइयम ग्रामिनिकोलम के द्वारा होता है। अस्थाई तनों के कालर भाग मृदु एवं तर हो जाते हैं, जिनके परिणाम स्वरूप पौधा गिर जाता है और प्रकन्दें सड़ जाती हैं। बीज प्रकन्दों को भण्डारण एवं रोपाई के पहले मैंकोजेब - 0.3% के घोल में 30 मिनट तक उपचारित करने से इस रोग की रोकथाम की जा सकती है। खेतों में जब यह रोग दिखाई दे तो, क्यारियों को मैंकोजेब 0.3% से उपचारित करना चाहिए।

प्रमुख किट एवं नियंत्रण
तना छेदक :- तना छेदक (कोनोगेलेस पंक्टिफेरालिस) हल्दी को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाने वाले कीट हैं। इनसकी सूँडियाँ अस्थाई तनों में रहती हैं और भीतरी ऊत्तकों को खाती हैं। छिद्रों में फ्रास (Frass) निकलना और मुरझाए हुए प्ररोह के मध्य भाग कीट होने के स्पष्ट लक्षण हैं। इसके वयस्क पतंगे मध्यमाकार वाले, जिनके पंख 20 मि.मी. चौड़ाई के और इन पंखों पर नारंगी-पीले रंग की छोटी काली बिन्दियाँ होती हैं। पूर्ण विकसित सूँडियाँ हल्के बादामी रंग के रोम वाली होती हैं। जुलाई-अक्तूबर के दौरान 21 दिनों के अन्तराल में मैलाथियन - 0.1% या मोनोक्रोटोफोस - 0.075% या डिपेल - 0.3% (बासिल्लिस तुरेंनसिस से उत्पन्न) का छिड़काव से इन कीटों पर नियंत्रण कर सकता है। जब अस्थाई तनों के अंदरूनी पत्तों में कीट संक्रमण का प्रथम लक्षण दिखाई पड़े तब छिड़काव शुरू किया जा सकता है।
राइजोम स्केल :- राइजोम स्केल (अस्पिडेल्ला हार्टी) प्रकन्दों में खेतों में (फसल कटाई के समय) और भण्डारण में संक्रमित करता है। वयस्क (मादा) स्केल वृत्ताकार (लगभग 1 मि.मी. व्यास में) और हल्के बादामी से भूरे रंग वाली होती है तथा प्रकन्दों पर पपड़ी के रूप में दिखाई पड़ती है। ये प्रकन्दों से रस चूसती हैं और जब प्रकन्दें ज्यादा संक्रमित होती हैं तब सिकुड़कर सूख जाती हैं, जिससे अंकुरण भी प्रभावित हो जाता है। बीज सामग्रियों को भण्डारण के पहले और बोने से पहले भी (यदि संक्रमण बना रहता है तो) क्विनालफोस - 0.075 % से 20 - 30 मिनट तक उपचारित करना चाहिए। अधिक संक्रिमत पौधों का भण्डारण न करें और उन्हें छोड़ देना चाहिए।
लघु कीट :- लघु कीट के लारवा और वयस्क जैसे लीमा स्पी. पत्तों को खा लेते हैं, खासतौर पर मानसून के दौरान ये पत्तों पर लम्बें समानान्तर निशान बनाते हैं। प्ररोह वेधकों को रोकने के लिए मालथयोन - 0.10.3 % का छिड़काव करना काफी है।
लेसविंग कीटों (स्टेफानैटिस टाइपिकस) से संक्रमित पत्ते पीले होकर सूख जाते हैं। इन कीटों का संक्रमण मानसूनोत्तर काल में अधिक होता है, खासकर देश के सूखे इलाकों में डाइमेथोएट या फोस्मामिडोन (0.05%) के छिड़काव से इन कीड़ों को रोका जा सकता है।
हल्दी थ्रिप्स (पान्कीटो थ्रिप्स) कीड़ों से संक्रमित हल्दी पौधों के पत्तों के किनारे मुड जाते हैं और पीले होकर धीरे-धीरे सूख जाते हैं। इन कीटों का संक्रमण मानसूनोत्तर काल में अधिक होता है, खासकर देश के सूखे इलाकों में डाइमेथोएट (0.05%) के छिड़काव से इन कीड़ों को नियंत्रण किया जा सकता है।

खरपतवार नियंत्रण 
हल्दी की अच्छी फसल होने हेतु 2-3 निंदाई करना आवश्यक हो जाता है। पहली निंदाई बुआई के 80-90 दिनों बाद तथा दूसरी निंदाई इसके एक माह बाद करना चाहिए किन्तु यदि खरपतवार पहले ही आ जाते है तथा ऐसा लगता है कि फसल प्रभावित हो रही है तो इसके पहले भी एक निंदाई की जा सकती है। इसके साथ ही साथ समय-समय पर गुड़ाई भी करते रहना चाहिए जिससे वायु संचार अच्छा हो सके।

सिंचाई 
हल्दी में ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं है लेकिन यदि फसल गर्मी में ही बुवाई जाती है तो वर्षा प्रारंभ होने के पहले तक 4-5 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती हैं। इसमें एक दो सिंचाई बरसात से पूर्व तथा दो सिंचाई की बरसात के बाद आवश्यक होती है।

सुखाना
हल्दी की गाँठों को 5-7 से.मी. चटाई बिछाकर अथवा सूखी ज़मीन पर धूप में सुखाना चाहिए। पतली चादर पर सुखाना उपयुक्त नहीं क्योंकि इस तरह सुखाई गई हल्दी के रंग पर प्रतिकूल प्रभाव पढ़ता है। रात में प्रकन्दों को किसी ऐसी वस्तु से ढँकना चाहिए जिससे वायुसंचार अवरूद्ध न हो। इसके पूरी तरह सूखने में 10-15 दिन तक का समय लग सकता है।

पॉलिश करना
हाथ से पॉलिश करने के लिए इसे सख्त ज़मीन पर रगड़ते हैं और नए तरीके द्वारा संशोधित करने के लिए हस्तचालित यंत्र के केन्द्रीय अक्ष पर लगे वेरलों/पीपों जिनके दोनों ओर घिसने वाली लोहे का जाल लगा होता है। जब हल्दी से भरे हुए वेरलों/पीपों को घुमाया जाता है तब जाली की सतह से रगड़ कर तथा पीपे के अन्दर हल्दी की गाँठों के आपस में रगड़ने से हल्दी चमकीली और चिकनी हो जाती है। बिजली से चलने वाले पीपों द्वारा भी हल्दी चमकीली की जाती है। पॉलिश करने के बाद हल्दी में 15-25% तक का बदलाव आ जाता है।

रंगाई
संशोधित हल्दी का रंग इसके मूल्य पर प्रभाव डालता है। उपज को आकर्षक बनाने के लिए पालिश करने के अंतिम दौर में थोड़ा पानी मिलाकर हल्दी पाउडर का छिड़काव करना चाहिए।

बीज प्रकन्दों का भण्डारण
हल्दी की खेती में बीज सामग्री के लिए रखी गई प्रकन्दों को हल्दी के पत्तों से ढँककर अच्छे हवादार कमरों में रखना चाहिए। बीज प्रकन्दों को लकड़ी के बुरादे, रेत, ग्लाइकोस्मिस पेन्टाफिल्ला (पाणल) के पत्तों आदि से भरे हुए गड्ढ़ों में भी रखा जा सकता है। इन गड्ढ़ों को हवादार बनाने के लिए एक या दो छिद्र युक्त लकड़ी के तख्तों से ढंकना चाहिए। यदि स्केल शल्क का संक्रमण दिखाई पड़े तो प्रकन्दों को 15 मिनट तक 0.075% क्विनालफोस के घोल में और फफूँदी के कारण भण्डारण में होने वाले मुकसान से बचने के लिए 0.3% मानकोज़ेब में डुबाना चाहिए।

Agriculture Magazines

Smart farming and agriculture app for farmers is an innovative platform that connects farmers and rural communities across the country.

© All Copyright 2024 by Kisaan Helpline