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कानपुर। चंद्रशेखर आजाद (सीएसए) कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय अब लोगों के दिल, दिमाग और सेहत का ख्याल रखेगा। यहां के तिलहन विभाग में 'ओमेगा थ्री ' (फैटी एसिड) की अधिकता वाली तिलहनी फसलें विकसित की जा रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) पहले ही कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण, एंटी कैंसर एजेंट के गुण वाले इस एसिड को प्रमाणिकता दे चुका है, और कृषि विशेषज्ञ और डॉक्टर भी इसके सेवन की सलाह देते हैं।
क्या है ओमेगा-थ्री
यह शरीर के लिए जरूरी फैटी एसिड में से एक है। यह स्वत: नहीं बनता है, भोजन से ही मिलता है। इससे शरीर को नुकसान नहीं होता है। सीएसए कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अभिजनक अलसी तिलहन अनुभाग की डॉ.नलिनी तिवारी ने बताया कि ओमेगा थ्री फैटी एसिड वाली प्रजातियां विकसित की जा रही हैं। यह स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं। डॉक्टर भी इसके सेवन की सलाह देते हैं। जल्द ही बीज बाजार में आएंगे।
तीन प्रकार का होता है एसिड
1-अल्फा लिनोलेनिक एसिड-पौधों में मिलता है।
2-डोकोसाहेक्साएनोइक एसिड-मांस और मछली से मिलता है।
3-ईकोसापेन्टैनेनोइक एसिड-मांस और मछली में रहता है।
ये हैं फायदे
-कोलेस्ट्रॉल की मात्रा नियंत्रित करता।
-इसमें कैंसररोधी तत्व होते हैं।
-पाचन क्रिया व त्वचा के लिए लाभकारी।
-घुटने-गठिया की तकलीफ में आराम।
-खांसी की दिक्कत से छुटकारा।
-दिमाग के विकास के लिए महत्वपूर्ण।
ये होते नुकसान
-युवतियों के लिए ज्यादा मात्रा नुकसानदेह
-गर्भवती महिलाएं सेवन न करें।
-ज्यादा सेवन से लो ब्लड प्रेशर की समस्या
-कई बार शुगर लेवल अचानक से बढ़ जाता है।
तेल के अवगुण
-भंडारण क्षमता काफी कम होती है, जिससे जल्दी खराब हो जाती है।
-ज्यादा गर्म करने पर पौष्टिक तत्व उड़ जाते हैं।
-काफी चिपचिपा तेल होता है।
शोध में मिली कामयाबी
तिलहन विभाग में सबसे पहले लिनसिड (अलसी के बीज) की ऐसी प्रजातियां तैयार की जा रही है जिसमें ओमेगा थ्री की मात्रा 60 फीसद से अधिक हो। उसके लिए प्रजातियों को क्रास कराया जा रहा है। पिछले महीने सूर्या (एलसीके 1404) विकसित हुई है, जिसमें 62 फीसद से अधिक ओमेगा थ्री मिला है। इससे पूर्व इंदू, उमा, राजन, अन्नू प्रजातियों की खोज हो चुकी है। यही प्रक्रिया सरसों के तेल, सूरजमुखी, तिल के तेल में भी अपनाई जा रही है हालांकि इन तिलहनों में ओमेगा थ्री की मात्रा मानक से कम होती है। मात्रा बढऩे पर स्वास्थ्य के लिए बेहतर रहेगा।
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