अमरूद को बहुत लोकप्रिय फल माना जाता है। देश में उगाए जाने वाले फलों में अमरूद को चौछे स्थान पर रखा गया है। देश के कई हिस्सों में किसान इसकी खेती सफलतापूर्वक करते हैं। इसकी बहुउपयोगिता और पौष्टिकता के कारण गरीब लोग इसको सेब कहते हैं। इसमें विटामिन सी, ए, बी, लोहा, चूना समेत फास्फोरस की काफी अच्छी मात्रा पाई जाती है। कई लोग अमरूद की जेली और बर्फी भी बनाते हैं, इसलिए बाजार में इसकी मांग बनी रहती है। अमरूद का पौधा मुख्य रूप से जुलाई से अगस्त के बीच में लगाया जाता है, लेकिन जिन जगहों पर सिंचाई की उपयुक्त व्यवस्था नहीं होती हैं, वहां इस पौधे को फरवरी से मार्च के बीच लगाते हैं। इस दौरान कई विशेष बातों का ध्यान रखना होता है, ताकि फसल से अच्छी उपज प्राप्त हो पाए। इस संबंध में कृषि विज्ञान केंद्र, खरगौन, मध्य प्रदेश के वैज्ञानिक डॉ. एस.के. त्यागी ने एक मुख्य जानकारी साझा की है। आइए किसान भाईयों को बताते हैं कि वह अमरुद में कैनोपी मैनेजमेंट कैसे कर सकते हैं।
आजकल सदारोपण पद्धति के तहत अमरूद के पौधे लगाए जा रहे हैं। परंपरागत पद्धति में 6/6 मीटर के स्थान पर 3/3 मीटर और नैरो ऑर्चर्ड में 2/1 मीटर में पौधा लगाया जा रहा है। इनकी कैनोपी मैनेजमेंट करना बहुत ज़रूरी है। सबसे पहले रोपण के 6 माह बाद यानी अगर आपने जुलाई में पौधा रोपण किया है, तो दिसंबर या जनवरी में जमीन से 2 फिट ऊपर यानी 60 सेंटीमीटर ऊपर से पूरी शाखाओं को काट दें। इसके बाद फिर शाखाएं निकल आएंगी, जिनको फिर चारों दिशाओं में फैला दें। जब शाखाएं 2 फिट की हो जाएं, तो उन्हें 50 प्रतिशत काट दें, बता दें इस तरह हर बार शाखाएं निकलने पर 50 प्रतिशत काटना है।
ध्यान रहे कि जहां से पौधे की ग्राफ्टिंग की है, वहां से नीचे की तरफ निकले वाली टहनियों को काट देना चाहिए। इससे पौधे को पोषक तत्व मिलता रहता है। इसके बाद पौधे पर कॉपर ऑक्सीलाइट, 50 प्रतिशत डब्लू पी को 250 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर पूरे पौधो और नीचे तने तक छिड़क देना चाहिए। इससे पौधा किसी भी रोग या कीट की चपेट में नहीं आएगा।