अगस्त माह खरीफ फसलों की अच्छी पैदावार के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। अधिकतर फसलें इस समय शुरुआती बढ़वार की अवस्था में होती है। अगर कुछ कारणों से फसल की बुआई जुलाई में नहीं हो पायी है तो इस समय चारे के लिए फसलों की बुआई कर सकते हैं।
जिन क्षेत्रों में पर्याप्त या अथवा सिंचाई के समुचित साधन है, जैसे कि उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्र, पूर्वी और उत्तर- पूर्वी भाग, उनमें इस समय धान की फसल मुख्य फसल के रूप में खेतों में होती है। कई राज्यों में मूंगफली की फसल भी प्रमुख फसल के रूप में उगायी जाती है।
इस समय शुष्क और अर्द्ध शुष्क मक्का, ज्वार, बाजरा, अरहर, मूंग, उड़द, सोयाबीन व तिल फसलों की सस्य प्रबंधन की आवश्यकता होती है। सब्जी वाली फसलों में कद्दूवर्गीय सब्जी के साथ भिंडी और अगेती मूली , फूलगोभी भी खेतों में इस समय होती है। इनमें भी उत्तम प्रबंधन की आवश्यकता होती है। इस समय के सभी सस्य प्रबंधन का उद्देश्य , खड़ी फसल के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान कर फसल की उत्तम बढ़यार और उपज को सुनिश्चित करना है।
ज्वार, बाजरा और मक्का की फसल में देखभाल
दाने के लिए ज्वार की फसल में विरलीकरण (थिनिंग) करके पंक्तियों में पौधे से पौधे की दूरी 15-20 सें. मी. अवश्य कर दें। विरलीकरण का कार्य करने के बाद उन्नत / संकर प्रजातियों में 50 कि. ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हैक्टर की दर से टॉप ड्रेसिंग बुआई के 30-35 दिनों बाद खडी फसल में छिडकाव करें।
असिंचित दशा में 2 प्रतिशत युरिया का 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर खड़ी फसल में छिड़काव करना अत्यंत लाभप्रद पाया गया है। ज्वार की फसल में पौधों की वृद्धि, फूल तथा दाना बनते समय सिंचाई करना आवश्यक होता है। ज्वार की फसल के लिए सिंचाई देने की चार क्रान्तिक अवस्थाएं हैं - प्रारंभिक बीज पौधे की अवस्था, भुट्टे निकलने से पहले, भुट्टे निकलते समय व भुट्टों में दाना बनने की अवस्थायें
ज्वार की अच्छी उपज लेने के लिए बुआई के 3 सप्ताह बाद निराई - गुड़ाई करने से खरपतवार नियंत्रण के साथ - साथ भूमि में वायु का संचार होता है। तथा भूमि में नमी भी सुरक्षित रहती है। यदि किसी कारणवश निराई - गुड़ाई संभव न हो। तो बुआई के तुरंत बाद एट्राजिन नामक खरपतवारनाशी की 0.75 - 1.0 कि.ग्रा. 700-800 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करना चाहिए।