सर्दी का मौसम चल रहा है और आने वाले समय में ठंड का प्रकोप और भी बढ़ने वाला है। रात के न्यूनतम तापमान में लगातार गिरावट हो रही है। ऐसे में कई फसलें ऐसी हैं जो पाले से प्रभावित हो सकती हैं। इससे पौधों की पत्तियों और फूलों को काफी नुकसान हो सकता है।
शीत लहर और पाले का फसलों और फलदार वृक्षों की उत्पादकता पर सीधा प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। फूल आने और बालियां/फली विकसित होने के दौरान फसलों के पालाग्रस्त होने की सबसे अधिक संभावना होती है। पाले के प्रभाव से पौधों की पत्तियाँ एवं फूल झुलसने लगते हैं। जिससे फसल प्रभावित होती है। कुछ फसलें बहुत अधिक तापमान या पाला सहन नहीं कर पाती हैं, जिससे उनके खराब होने का खतरा रहता है। यदि पाले के समय फसल की देखभाल न की जाए तो उस पर आने वाले फल या फूल झड़ सकते हैं। जिससे पत्तियों का रंग मिट्टी के रंग जैसा हो जाता है। यदि शीत लहर हवा के रूप में चलती रहती है तो इससे कोई नुकसान नहीं होता है, लेकिन यदि हवा रुक जाती है तो पाला पड़ता है, जो फसलों के लिए अधिक हानिकारक होता है। पाले के कारण अधिकांश पौधों के फूल गिरने से उपज में कमी आई है। पत्तियों, टहनियों तथा तने के नष्ट होने से पौधों में अधिक रोग लगने की संभावना रहती है। इस दौरान सब्जी, पपीता, अमरूद, टमाटर, मिर्च, बैंगन, पपीता, मटर, चना, अलसी, सरसों, जीरा, धनिया, सौंफ आदि फसलों पर ठंड का बुरा असर पड़ने की प्रबल संभावना है।
इन फसलों को होता है सबसे ज्यादा नुकसान ठंड से
पाले से सबसे ज्यादा नुकसान मटर, सरसों, धनिया के साथ मिर्च और बैंगन की फसल को हुआ है। ठंड के कारण सब्जियों के पौधे काले पड़ जाते हैं। हालांकि कुछ उपायों से किसान ठंड के कारण अपनी फसल को खराब होने से बचा सकते हैं।
ठंड के प्रकोप से फसलों के बचाव के उपाय
- नर्सरी के पौधों और सब्जियों की फसलों को बोरियों, पॉलिथीन या पुआल से ढक देना चाहिए। क्यारियों के किनारों पर पवनरोधी टाटियां को हवा की दिशा में बांधकर फसल को पाला एवं शीत लहर से बचाया जा सकता है।
- पाले की संभावना को ध्यान में रखते हुए आवश्यकतानुसार खेत की सिंचाई कर देनी चाहिए। इससे मिट्टी का तापमान कम नहीं होता है।
- सरसों, गेहूँ, चावल, आलू, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने के लिए सल्फ्यूरिक अम्ल (गंधक का तेजाब) के छिड़काव से रासायनिक सक्रियता बढ़ती है तथा पाले से बचाव के अलावा पौधे को लौह तत्व भी प्राप्त होता है।
- सल्फ्यूरिक एसिड (गंधक का तेजाब) पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और फसल को जल्दी पकने में भी सहायक है।
- दीर्घकालीन उपाय के रूप में फसलों की सुरक्षा के लिए शहतूत, शीशम, बबूल, खेजड़ी और जामुन आदि जैसे वायु अवरोधक वृक्षों को खेत की मेड़ों पर लगाना चाहिए, जो फसल को पाले और शीत लहरों से बचाते हैं।
- 500 ग्राम थायोरिया को 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव किया जा सकता है और 15 दिनों के बाद दोबारा छिड़काव करना चाहिए।
- चूंकि सल्फर (गंधक) पौधे में गर्मी पैदा करता है, इसलिए प्रति एकड़ 8-10 किलो सल्फर डस्ट डाला जा सकता है। या 600 ग्राम घुलनशील गंधक को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ फसल पर छिड़काव करने से पाले का असर कम होता है।
- पाले के दिनों में मिट्टी की जुताई या जुताई नहीं करनी चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से मिट्टी का तापमान कम हो जाता है।