अब गाजरघास से बनेगी विशिष्ट कम्पोस्ट खाद, वैज्ञानिको ने किया इस खास तकनीक का आविष्कार

अब गाजरघास से बनेगी विशिष्ट कम्पोस्ट खाद, वैज्ञानिको ने किया इस खास तकनीक का आविष्कार
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Kisaan Helpline

Agriculture Jul 23, 2021

विशेष नवाचार के रूप में जिला पर्यावरण समिति, पर्यावरण विभाग उदयपुर, राजस्थान सरकार और फोस्टर इंडियन एनवायरनमेंटल सोसाइटी, इंटाली के संयुक्त तत्वावधान में गाजर घास से एक विशेष खाद तकनीक का आविष्कार किया गया है, जो पूरे विश्व में एक पर्यावरणीय समस्या बन गई है।

गाजर घास को पर्यावरण के लिए खराब माना जाता है, लेकिन वैज्ञानिकों ने अब इस घास से खाद का आविष्कार कर किसानों को राहत देने की शुरुआत कर दी है।

नेशनल इनोवेशन सर्च प्रोग्राम के समन्वयक ललित नारायण आमेटा के अनुसार, गाजर घास (पार्थेनियम), जो दुनिया भर में एक बड़ी पर्यावरणीय समस्या बन गई है, जिससे मनुष्यों, जानवरों, फसलों सहित पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को सालाना करोड़ों रुपये का नुकसान होता है। इसे नियंत्रित करने के रासायनिक तरीके बहुत महंगे हैं और पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाते हैं।

इन सभी समस्याओं के समाधान को ध्यान में रखते हुए उदयपुर जिले के ग्राम कुराबड़ निवासी सहायक प्रोफेसर डॉ. सतीश कुमार आमेता ने अपने शोध पत्र में दो वर्ष के अथक प्रयास से विश्व पर्यावरण की समस्या बनी गाजर घास का समाधान एक विशिष्ट कम्पोस्ट खाद का निर्माण किया। इस तकनीक से बनाई गई खाद में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाशियम की मात्रा सामान्य हरी खाद से तीन गुना अधिक होने का अनुमान लगाया गया था, जो किसानों के लिए वरदान साबित होगी। वर्तमान में मेवाड़ विश्वविद्यालय, गंगरार चित्तौड़गढ़ में सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत डॉ. आमेता के शोध से गाजर घास के उन्मूलन दोनों में लाभ होगा और किसानों को जैविक खाद मिलेगी।

डॉ. सतीश आमेटा का यह शोध ईरान की एक प्रतिष्ठित शोध पत्रिका में प्रकाशित हुआ है, ऐसे में किसान गाजर घास (पार्थेनियम) का उपयोग फसल खाद के रूप में प्राप्त जानकारी से कर सकते हैं और पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा।


गाजरघास से कम्पोस्ट खाद बनाने का तरीका
इस तकनीक में गाय का गोबर, सूखे पत्ते, फसल अवशेष, राख, लकड़ी का चूरा आदि अपशिष्ट कार्बनिक पदार्थों का एक हिस्सा और गाजर घास के चार भागों को इस अनुपात में मिलाकर लकड़ी के बने बॉक्स में भर दिया जाता है। इस डिब्बे के चारों ओर छेद कर दिए जाते हैं ताकि हवा का प्रवाह सही रहे और गाजर घास जल्दी से खाद में परिवर्तित हो सके। इसमें रॉक फास्फेट और ट्राइकोडर्मा फंगस का प्रयोग कर खाद में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ाई जा सकती है। इस प्रकार गाजर घास से लगातार 2 महीने में लगातार पानी छिड़क कर और नियमित अंतराल पर इस मिश्रण को घुमाकर हवा देकर जैविक खाद बनाई जा सकती है।


गाजर घास से बनी खाद में पोषक तत्वों की मात्रा सबसे अधिक 
शोध के मुताबिक गाजरघास से बनी कम्पोस्ट में मुख्य पोषक तत्वों की मात्रा गोबर से दोगुनी व केंचुआ खाद के लगभग होती है। ऐसे में गाजर घास की खाद बेहतर विकल्प बन सकती है। गाजर घास में नाइट्रोजन 1.05, फॉस्फोरस 10.84, पोटेशियम 1.11, कैल्शियम 0.90 तथा मैग्नीशियम 0.55 प्रतिशत पाया जाता है जबकि केंचुआ खाद में नाइट्रोजन 1.61, फॉस्फोरस 0.68, पोटेशियम 1.31, कैल्शियम 0.65 तथा मैग्नीशियम 0.43 प्रतिशत होता है। वहीं गोबर खाद में नाइट्रोजन 0.45, फॉस्फोरस 0.30, पोटेशियम 0.54, कैल्शियम 0.59 तथा मैग्नीशियम 0.28 प्रतिशत पाया जाता है। इस प्रकार से देखा जाए पोषक तत्वों की मात्रा गाजर घास में अधिक होती है।

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