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इंदौर। महाराष्ट्र के महाबलेश्वर और हिल स्टेशन का फल माना जाने वाला स्ट्रॉबेरी अब मालवा के खेतों में उग रहा है। यह कारनामा कर दिखाया है, एक निजी बैंक की 20 लाख रुपए सालाना पैकेज वाली नौकरी छोड़ किसान बने इंदौर के सुरेश शर्मा ने। उनका दावा है कि जिस तरह से फसल आ रही है, उससे वे दो एकड़ में लगाए पौधों से इस साल 30 लाख रुपए से ज्यादा की स्ट्रॉबेरी पैदा करेंगे।
इस विधि को महाबलेश्वर के किसानों ने समझा
पिछले साल की महाबलेश्वर यात्रा से गेहूं, चने और सोयाबीन की रिकॉर्ड खेती वाले इलाके में स्ट्रॉबेरी की खेती का आइडिया शर्मा को मिला। वहां यात्रा के दौरान जगह-जगह इसकी बिक्री के साथ उन्होंने कई सौ एकड़ के खेत देखे, जहां इसे उगाया जा रहा था। वहीं मन में विचार आया कि कैसे भी हो, इसकी खेती इंदौर में भी करेंगे। चूंकि यह फसल पूरी तरह मौसम पर निर्भर होती है, शर्मा ने इसका विस्तृत अध्ययन किया और वहां के किसानों से इसकी खेती की पद्धति भी समझी।
इस साल करीब 30 लाख की स्ट्रॉबेरी
उन्होंने इंदौर में सांवेर बायपास के पास जमीन खरीदी और दो एकड़ में महाबलेश्वर से लाए करीब 50 पौधे रोपे। शर्मा कहते हैं की, महाबलेश्वर क्षेत्र में किसान एक से डेढ़ किलो प्रति पौधा उत्पादन लेते हैं। यहां 700 ग्राम प्रति पौधा उत्पादन होने का अनुमान है। मौसम में आए उतार-चढ़ाव के चलते स्ट्रॉबेरी में समय से पहले फल आ गए हैं, जिससे वे थोड़ा चिंतित भी हैं। फिर भी अनुमान है, कि वे इस साल करीब 30 लाख की स्ट्रॉबेरी उगा लेंगे।
यह आशंका… रतलाम में सफल नहीं
मूलतः उत्तर अमेरिका और यूरोप में होने वाली स्ट्रॉबेरी भारत में अभी तक देहरादून, नैनीताल, दार्जिलिंग, झारखंड, पंजाब, महाराष्ट्र के महाबलेश्वर या कश्मीर क्षेत्र में ही होती थी। कुछ साल पहले रतलाम, मंदसौर में किसानों ने इसके पौधे रोपे थे, लेकिन प्रयोग सफल नहीं हुआ। शर्मा इस लिहाज से खुद को सफल मान रहे हैं।
व्यावसायिक उत्पादन में यह है समस्या
व्यावसायिक उत्पादन में समस्या यह है कि अच्छे आकार के फल तो बाजार में खप सकते हैं, छोटे आकार की स्ट्रॉबेरी के लिए कोई प्रोसेसिंग सेंटर ही नहीं है। शर्मा कहते हैं इंदौर में अच्छा फूड प्रोसेसिंग सेंटर बन जाए तो स्ट्रॉबेरी के कारण मालवा के किसानों की हालत बदल सकती है।
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