रबी मे दलहनी फसलों चना , मसूर व मटर में उकठा (उगरा) प्रबंधन कैसे करें और दलहन उत्पादन कैसे बढ़ाये

रबी मे  दलहनी फसलों चना , मसूर व मटर में उकठा (उगरा) प्रबंधन कैसे करें और दलहन उत्पादन कैसे बढ़ाये
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Kisaan Helpline

Soil Oct 13, 2015

रबी के मौसम मे दलहनी फसलों चना, मसूर व मटर मे उकठा रोग एक प्रमुख समस्या है। अभी कुछ समय बाद इन फसलो का बुवाई का समय आने वाला है। उकठा (उगरा) रोग की रोकथाम के लिये निम्नलिखित कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिये

फसलों में लगातार एक ही उर्वरक डी.ए.पी. का प्रयोग नही करना चाहिए। दलहनी फसलों चना, मसूर, मटर आदि मे डी.ए.पी. के स्थान पर 125 से 150 कि.ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट  प्रति एकड़ प्रयोग करना चाहिए और नत्रजन की पूर्ति हेतु 18-20 कि.ग्रा. यूरिया और पोटाश की पूर्ति हेतु 12-13 कि.ग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति एकड़ की के प्रयोग से उत्पादन मे वृद्धि तथा उत्पाद की गुणवत्ता और उकठा प्रबंधन मे भी लाभ मिलता है।

मृदा जनित फफूंद प्रबंधन
चना मे उकठा बीज और मृदा जनित फफूंद से फैलता है इसके प्रबंधन हेतु जे.जी. 63, जे.जी. 14, जे.जी. 11, जाकी 9218 का चयन, बीजोपचार वीटा वेक्स पावर 2 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से करे और मृदा उपचार हेतु ट्राईकोडर्माविरडी 1-2 कि.ग्रा. कल्चर को 100 कि.ग्रा. गोबर मे मिलकर प्रति एकड़ बुवाई के पूर्व खेत मे मिला दें।

उकठा एवं सूखाजड़ सड़न रोग प्रबंधन
चना मे उकठा एवं सूखाजड़ सड़न रोग से बचने हेतु रोग ग्रस्त खेत मे 2-3 तीन साल तक चना के स्थान सरसों अलसी या गेहूँ फसल लगानी चाहिए।

चना फसल में जैव उर्वरक राइजोवियम पी.एस.बी. कल्चर 200 ग्राम फफूंद नाशक दवा से उपचारित मे मिलाकर बुवाई करने से फसल को नत्रजन और स्फूर पोषक तत्व प्राप्त होंगे।

 जलवायु सम्बन्धी कारक
 दलहनी फसलें जलवायु के प्रति अति संवेदनशील होती है। सूखा, पाला, निम्न और उच्च तापमान, जल मग्नता का दलहनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। भारत में 87 प्रतिशत क्षेत्र में दहलनों की खेती वर्षा पर निर्भर करती है। उत्तरी भारत में पाले के प्रकोप से दहलनों विशेषकर अरहर, चना, मसूर, मटर आदि की उत्पादकता कम हो जाती है। तराई क्षेत्र मे मृदा आद्रता अधिक होने के कारण उकठा रोग से दलहनों को क्षति होती है। राजस्थान, छत्तीसगढ़  और मध्य प्रदेश में सूखे के प्रकोप से दलहन उत्पादन कम होता है।
 
उच्च उपज वाली किस्मो का अभाव
 दहलनें प्रचीन काल से ही सीमान्त क्षेत्रों में उगाई जाती रही है तथा आज भी व्यसायिक फसलों की श्रेणी में न आने के कारण, इन फसलों पर शोध कार्य सीमित हुआ है जिसके फलस्वरूप उच्च गुणवत्ता वाली लागत संवेदी किस्में उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं। दलहनी फसलों की कीट-रोग और सूखा रोधी का अभाव है।

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