जैविक खेती पर्यावरण के लिए खतरा नही बल्कि लाभकारी

जैविक खेती पर्यावरण के लिए खतरा नही बल्कि लाभकारी
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Kisaan Helpline

Soil Mar 06, 2016

आप सभी लोग जानते हैं कि आज हर कोई मौसम में बदलाव के खतरे से डरा हुआ है। लेकिन समाधान की तरफ नहीं सोंचा जा रहा है, समस्या हमने पैदा की है तो समाधान भी हमारे ही हाथों में है और वह समाधान है जैविक खेती

जलवायु परिवर्तन खेतीबारी के विकास में एक बड़ी समस्या बन कर उभर रहा है। आज दुनिया के 50 से ज्यादा देश अनाज संकट से गुजर रहे हैं। जिससे खाद्यान्न सुरक्षा का संकट खडा हो गया है।

एक अनुमान के मुताबिक अगर कार्बन डाईआक्साइड जैसी ग्रीन हाउस गैसों का निकलना इसी तरह जारी रहा तो इस सदी के आखिर तक हमारी आबोहवा में 4 डिगरी सेल्सियस तापमान बढ़ सकता है। तापमान में इस इजाफे से धरती के उत्तरी भागेां में जहां फसलों के मुताबिक सही मौसम में इजाफे से पैदावार बढ़ेगी, वहीं मैदानी और गरम इलाकों में फसलों की पैदावार घटेगी।

जलवायु परिवर्तन के चलते गेहूं की पैदावार में 4-5 क्विटंल प्रति हेक्टेयर कमी आ सकती है।

खेती में संकर किस्मों के इस्तेमाल के साथ केमिकलों के लंबे समय तक इस्तेमाल से लगातार अच्छे नतीजे नहीं मिल पर रहे हैं। पिछले 5 सालों में कृषि विकास दर 2 फीसदी के आसपास रही है। जो अर्थव्यवस्था के विकास के लिए अच्छी नहीं है।

खेती में जलवायु परिवर्तन के खतरे का सामना करने के लिए उत्पादन तकनीक में बदलाव लाने की जरूरत है। देश में हरित क्रांति से अनाज की पैदावार तो बढ़ी है। लेकिन जलवायु परिवर्तन में मददगार ग्रीनहाउस गैसों में भी इजाफा हुआ है। क्योंकि फसलों में केमिकल खादों, कीटनाशकों का इस्तेमाल इसके लिए मददगार है।

इसी तरह के आंकड़े थाइलैंड में भी देखने को मिलें हैं। जहां केमिकल खादों के इस्तेमाल में 25 फीसदी और केमिकल कीटनाशकों में 50 फीसदी इजाफे के बाद पैदावार में केवल 6.5 फीसदी की बढ़वार दर्ज की गई है।

वैज्ञानिक मानते है। कि जलवायु परिर्वन के कारण बढ़ते तापमान का असर के पैदावार पर ही नहीं पडे़गा बल्कि फसलों पर नए कीटों व बीमारियों का भी ज्यादा हमला हो सकता है। जिससे पैदावार पर और ज्यादा बुरा असर पडेगा।

खेती में जलावायु परिवर्तन के खतरे को कम करने के लिए जैविक खेती एक अच्छा रास्ता है। जिससे ग्रीनहाउस गैसों का निकलना कम होगा और पैदावार में भी इजाफा होगा। दुनिया भर में केमिकल खादों और कीटनाशकों पर आधारित खेती के लिए नाइट्रोजन खाद बनाने के लिए 9 करोड टन खनिज तेल या कुदरती गैस का इस्तेमाल हो रहा है। जिससे 25 करोड़ टन कार्बन डाइआक्साइड गैस हवा में मिलती है। इसी तरह केमिकल कीटनाशकों से भी ग्रीनहाउस गैसें निकलती है।

अकेले भारत में ही तकरीबन 47 हजार टन केमिकल कीटनाशकों का इस्तेमाल होता है। जैविक खेती में पौधों के पोषक के लिए केमिकल खादों की जगह गोबर की खाद, हरी खाद, कंपोस्ट खाद, वर्मी कम्पोस्ट, नीलाहरा शैवाल, सूक्ष्म जीवाणुओं जैसे राइजोवियम ऐजोटाबैक्टर माइक्रोराजा और माइक्रोइाहजा पर आधारित खादों का इस्तेमाल होता है। जिसने ग्रीनहाउस गैसें नहीं निकलती है। जैविक खेती में कीटों और बीमारियों की रोकथाम के लिए केमिकलों के स्थान पर जैविक कीटनाशकों का इस्तेमाल होता है। ये कीटनाशक नीम, करंज, क्राईजैथेमम युकेलिप्टस जैसे कई पेड़ों से हासिल होते है। और इसके साथ ट्राईकोडर्मा फफूंद और म्यूडोमोनास जैसे जीवाणुओं से भी जैविक कीटनाशक बनते है।

वैज्ञानिकों के स्विटजरलैंड, आस्ट्रेलिया और जरमनी में किये गये तजरबों से यह पता चलता है कि मिट्टी में जैविक खेती से हवा की 575 से 7 सौ किलोग्राम तक कार्बन डाइआक्साइड गैस प्रति हेक्टेयर सोख ली जाती है। इस तरह जैविक खेती में इस्तेमाल किये गये किसी भी जैविक अंश से ग्रीनहाउस गैसें पैदा नही होती हैं। बल्कि वायुमंडल की कार्बन डाइआक्साइड भी सोख ली जाती है।

जैविक खादों के इस्तेमाल से मिट्टी में पानी को सोखने की ज्यादा कूबत होती है। जिससे इस पर उगाई गयी फसलों में सूखा सहने की ज्यादा ताकत होती । कृषि एवं खाद्य संगठन से कराए गए एक सर्वे के अनुसार जैविक विधि से उगाई गयी फसलों में ज्यादा पैदावार पाई गई है।

इस सर्वे में बोलबिया में आलू में प्रति हेक्टेयर 4 से 15 टन की बढोत्तरी दर्ज की गई। पाकिस्तान में आम की पैदावार में 6 से 30 टन प्रति हेक्टेयर, क्यूबा में सब्जियों में 2 गुणा और कीनिया में पक्के के उत्पादन में 2 से 9 टन का इजाफा पाया गया है।

भारत कुदरती संसाधनों से संपन्न देश है। जहां जैविक खेती के सभी संसाधन अच्छी मात्रा में मौजूद है इस तरह की खेती से जहां खेती की लागत में कमी आएगी। खेती फायदेमंद होगी। पर्यावरण भी साफ होगा और और इस तरह की खेती से उपजे उत्पाद क्वालिटी में अच्छे और सेहत के लिए भी फायदेमंद होगें।

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