Yash Dhakad
17-09-2021 03:57 AMहजारों-वर्षों पूर्व से ही भारत में तुलसी न केवल औषधीय मान्यताओं से अपितु धार्मिक मान्यताओं के फलस्वरुप घर-घर में पूज्य माने जाने लगी है। प्राचीन भारत में जब बड़े-बड़े असाध्य रोग जड़ी-बूटी द्वारा निर्मूल होते थे उसके उपरांत से तुलसी की उपयोगिता और अधिक बढ़ गई है। पारस्परिक आयुर्वेद के अनुसार तुलसी को 'जड़ी-बूटियों की रानी' कहा जाता है।
तुलसी की विभिन्न प्रजातियां:
रंगो एवं गुणों के आधार पर तुलसी की विभिन्न प्रजातियां पाई जाती हैं।सामान्य लोगो के अनुसार तुलसी की दो जातियां हैं -रामा तुलसी जिसका वानस्पतिक नाम ऑसिमय सैन्कटम है। श्यामा तुलसी जिसका वानस्पतिक नाम ऑसिमय टेन्यूफ्लोरम है।
तुलसी की अन्यजातियां:
वन तुलसी, जिसे कठेरक भी कहा जाता है। जिसका वानस्पतिक नाम ऑसिमस ग्रेटिसिकम है। मरुवक, राजमर्तण्ड, बरबरी, या बुबई तुलसी।
तुलसी की धार्मिक मान्यताएं:
धार्मिक मान्यताओं अनुसार तुलसी का पौधा सात्विक ऊर्जा से भरपूर है एवं वातावरण को शुद्ध करने के लिए तुलसी का पौधा प्रमुख है। मनुष्य के आंतरिक भावों एवं विचारों की शुद्धि पर तुलसी का कल्याणकारी प्रभाव अद्भुत है।
तुलसी के औषधीय गुण:
तुलसी आयुर्वेदिक शास्त्रों के अनुसार श्वास संबंधी एवं वात विकार जैसे-कफ, खांसी, ज्वर एवं निमोनिया के निदान हेतु कई वर्षों से लाभ दे रही है अपितु कोरोना जैसी गम्भीर बीमारी में भी यह अत्यधिक कारगर सिद्ध हुई है। रोग प्रतिरोधक झमता को बढ़ाने के लिये गिलोय, अश्वगंधा और तुलसी का प्रयोग चमत्कारिक है। विभित्र प्रकार की बीमारियां जैसे-कफ, हिचकी, खांसी उलटी, दुर्गंध, शूल, कोढ़ आंखों की बीमारी, पित्तकारक एवं वात कृमि तथा पसली के दर्द के निवारण हेतु रामबाड़ औषधि है। सबसे प्राचीन एवं मान्य ग्रंथ चरक संहिता के अनुसार, तुलसी का वर्णन कुछ इस प्रकार है-
हिक्काज विषश्वास पार्श्व शूल विनाशिनः।
पित्त कृतत्क फवातहन सुरसः पूर्ति गन्धहा।।
अर्थात - अतः सुरसा 'तुलसी' हिचकी, खांसी, विषय विकार पसली के दर्द को मिटाने वाली है। इससे पित्त की वृद्धि और दूषित कफ तथा वायु का शमन होता है, यह दुर्गध को भी दूर करती है।
तुलसी के चिकित्सीय लाभ:
सभी प्रकार के ज्वर विकार का निदानः तुलसी पत्र और सूरजमुखी की पत्ती पीस-छानकर पीने से सभी तरह के ज्वरों में लाभ होता है। तुलसी, मलेरिया, डेंगू व हृदय संबंधी रोगों की रोकथाम करने में सहायक है। कफ एवं कोरोना के ज्वर में तुलसी, नागरमोथा, सोंठ बराबर लेकर काढ़े का लगातार सेवन करें।
खांसी और जुकाम: चरक संहिता के अनुसार वात पित्त तथा श्वास संबंधी रोगों में तुलसी का प्रमुख योगदान है। दमा को ठीक करने वाली प्रमुख औषधियों में से एक तुलसी है। तुलसी मंजरी और अदरक को बराबर लेकर पीसकर शहद में मिलाकर चाटे।
आंख, नाक और कानों के रोग: मनुष्य के शरीर में ये तीनो इन्द्रियां बेहद अनमोल और साथ ही साथ कोमल होती है। तुलसी ऐसी औषधि है जो अपने सूक्ष्म प्रभाव से इन अंगों को शीघ्र निरोग करती है। केवल तुलसी का रस निकालकर आंखों में डालने से भी नेत्रों की पीड़ा तथ अन्य रोग दूर हो जाते हैं। आंख में खूजली एवं सूजन आने पर तुलसी पत्र को पानी में उबालकर उसमें फिटकरी डाले तथा उस पानी से आंख की सिकाई करें, सूजन एवं खुजली समाप्त हो जाती है। कान में दर्द होने पर तुलसी का रस गुन गुना करके डालें, पीड़ा समाप्त हो जाती है।
चिंता एवं चिड़चिचिड़ापन दूर करें: जर्नल ऑफ आयुर्वेद एंड इंटीग्रेटिव मेडेसिन के अनुसार तुलसी के पौधे में डायजेपाम और एंटीडिप्रेसेट ड्रग्स की तुलना में एंटीडिप्रिसिडेंट और एंटी एग्जाइटी गुण अधिक पाई जाती है। रिसर्च के अनुसार कोई व्यक्ति एक दिन में तुलसी के अर्क का एक बार सेवन करता है तो उसे स्ट्रेस, एंग्जाइटी और डिप्रेशन से राहत मिल सकती है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता को रखे मजबूतः तुलसी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली कोशिकायें जी1 और जी2 की क्रियाशीलता का संवर्दधन करती है। जी1 कोशिकाएं बैक्टीरिया के विपरीत और वायरस जैसे अन्तकोशिकी परजीवी के विपरीत कार्य करती है तथा जी2 कोशिकाएं अंतः जीवी व बाह्य जीवी के भक्षण का कार्य करती है। तुलसी शरीर के पी.एच. संतुलन में सहायक है तथा उदर में लाभदायी बैक्टीरिया की वृद्धि करती है।
सूजन रोधी एवं एंटी आक्सीजन गुणः पवित्र तुलसी पत्र के अर्क गठियाँ या फाइब्रोमायल्गिया से ग्रस्त लोगो का बहुत आराम देती है। तुलसी के ताजे पत्तों के शुद्धिकरण से यूजेनाल, सिरसिलीनोल, सिरसिमरिटन, आइसोथइमोनिन, एपीजेनिन और रोजमरीन एसिड निकलते है। इनकी एंटीइंफ्लेमेटरी क्रियाशीलता 1 माइक्रोन सान्द्रता पर इबुप्रोफेन नेप्रोक्सन और एस्पिरिन के बराबर थी।
त्वचा एवं हृदय को रखे स्वास्थ्यः तुलसी के पत्तों का अर्क बनाकर पीने से हृदय स्ट्रोक का खतरा सम्भावतः कम हो जाता है। तुलसी का आवश्यक तेल गन्दे कोलेस्ट्रॉल का स्तर काफी कम हो जाता है। तुलसी का तेल त्वचा को भीतर से साफ करता है। तुलसी के मजबूत सूजनरोधी एवं एंटी माइक्रोबियल गुण त्वचा को सुरक्षित रखने में मदद करती है।
निष्कर्षः
तुलसी में वातावरण को शुद्ध बनाने की शक्ति है जिससे हानिकारक कीटाणुओं जैसे मच्छर, मक्खी आदि की वृद्धि रुक जाएगी जिससे अनेकानेक बीमारियाँ स्वयं समाप्त हो जायेगी। तुलसी के द्वारा सर्प विष की चिकित्सा की एक और विधि कुछ वर्ष पहले एक सामयिक पत्र में प्रकाशित हुई थी। सांप के काटने पर बुबई तुलसी को चबाकर खाना चाहियें एवं पत्तों का रस पांच तोले की मात्रा में पिलाने से भी शीघ्र लाभ होता है। तुलसी कानन योजना के अंतर्गत तुलसी का योजन प्राकृतिक चिकित्सा की कुछ विधियों का संयोग कर दिया जाए तो बड़े-बडे से असाध्य रोगो मनुष्य को छुटकारा मिल सकता है।
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