Sanjay Kumar Singh
03-05-2023 11:18 AMप्रोफेसर (डॉ) एस.के. सिंह
प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना एवं
सह निदेशक अनुसन्धान
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर,
भारत सरकार के कृषि एवम सहकारिता विभाग के वर्ष 2020-2021 के आंकड़े के अनुसार भारत में 97.91 हजार हेक्टेयर में लीची की खेती हो रही है जिससे कुल 720.12 हजार मैट्रिक टन उत्पादन प्राप्त होता है, जबकि बिहार में लीची की खेती 36.67 हजार हेक्टेयर में होती है जिससे 308.06 हजार मैट्रिक टन लीची का फल प्राप्त होता है। बिहार में लीची की उत्पादकता 8.40 टन/हेक्टेयर है जबकि राष्ट्रीय उत्पादकता 7.35 टन / हेक्टेयर है।
लीची बिहार का प्रमुख फल है। इसे प्राइड ऑफ बिहार भी कहते है। यह फलों की रानी है। इसमें बीमारियां बहुत कम लगती हैं। लीची की सफल खेती के लिए आवश्यक है की इसमें लगने वाले प्रमुख कीटों के बारे में जाना जाय, क्योंकि इसमें लगने वाले कीटों कि लिस्ट लंबी है, बिना इन कीटों के सफल प्रबंधन के लीची की खेती संभव नहीं है।
इस समय बिहार के अधिकांश हिस्से में हल्की हल्की बारिश हो रही है जो लीची की फसल के लिए वरदान है। इसकी वजह से फल में गुद्दे अच्छी तरह से बनेंगे। फल की बढ़वार अच्छी होगी। बिहार में मशहूर शाही प्रजाति के लीची के फल में कही कही लाल रंग विकसित हो रहा है। यह अवस्था प्रबंधन के दृष्टिकोण से बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस समय फल छेदक कीट के आक्रमण की संभावना बढ़ जाती है यदि बाग का ठीक से नहीं प्रबंधन किया गया तो भारी नुकसान होने की संभावना बनी रहती है। लीची में फल के लौंग के बराबर होने से लेकर फल की तुड़ाई के मध्य मात्र 40 से 45 दिन का समय मिलता है। इसलिए लीची उत्पादक किसान को बहुत सोचने का समय नहीं मिलता है। तैयारी पहले से करके रखने की जरूरत है।
लीची की सफल खेती के लिए आवश्यक है की लीची में लगने वाले फल छेदक कीट को कैसे प्रबंधित करते है?
लीची की सफल खेती में इसकी दो अवस्थाएं अति महत्वपूर्ण होती है, पहली जब फल लौंग के बराबर के हो जाते है, जो की निकल चुकी है एवं दूसरी अवस्था जब लीची के फल लाल रंग के होने प्रारंभ होते है। इन दोनो अवस्थावो पर फल बेधक कीट के नियंत्रण हेतु उपरोक्त दवा का छिड़काव अनिवार्य है। लीची में फल छेदक कीट का प्रकोप कम हो इसके लिए आवश्यक है की साफ -सुथरी खेती को बढ़ावा दिया जाय। लीची में फल बेधक कीट से बचने के लिए थायो क्लोप्रीड (Thiacloprid) एवं लमडा सिहलोथ्रिन (Lamda cyhalothrin) की आधा मिलीलीटर दवा को प्रति लीटर पानी या नोवल्युरान @ 1.5 मीली दवा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। अभी तो वातावरण लीची की खेती के लिए बहुत अच्छा है, लेकिन कभी कभी फल की तुड़ाई से पूर्व कही कही पर दिन का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के आस पास पहुंच जाता है, जिससे लीची के फल तेज धूप की वजह से जलने लगते है, जिससे फल की गुणवक्त्ता बुरी तरह से प्रभावित हो जाती है। इस तरह से प्रभावित फल वातावरण में अचानक परिवर्तन होने से फट जाते है, जिससे बागवान को भारी नुकसान होता है। वातावरण में इस तरह के परिवर्तन को प्रबंधित करने के लिए लीची उत्पादक किसानों को अपने बाग में ओवर हेड स्प्रिंकलर लगाने के बारे में सोचना प्रारंभ कर देना चाहिए क्योंकि बिना उसके गुणवक्त्ता युक्त फल प्राप्त कर पाना अब संभव नहीं है। गुणवक्ता युक्त लीची के फल प्राप्त करने के लिए वातावरण का तापमान 35 डिग्री सेल्सियस के आस पास होना चाहिए। ओवर हेड स्प्रिंकलर लगाने से लीची के बाग के तापमान को बाहर के तापमान से 5 डिग्री सेल्सियस तक कम रक्खा जा सकता है।
पूर्व वर्षो के अनुभव के आधार पर जिन लीची के बागों में फल के फटने की समस्या ज्यादा हो वहां के किसान यदि 15 अप्रैल के आसपास बोरान @4 ग्राम / लीटर पानी में घोलकर छिडकाव कर दिए होंगे उन बागों में लीची के फल के फटने की समस्या में भारी कमी आयेगी। इस समय रोग एवं कीड़ों की उपस्थिति के अनुसार रसायनों का प्रयोग करें। बाग की मिट्टी में नमी बनाए रक्खे लेकिन इस बात का ध्यान देना चाहिए कि पेड़ के आस पास जलजमाव न हो।
मशहूर शाही लीची के फलों की तुड़ाई 20-25 के आस पास करनी चाहिए। फलों में गहरा लाल रंग विकसित हो जाने मात्र से यह नही समझना चाहिए की फल तुड़ाई योग्य हो गया है। फलों की तुड़ाई फलों में मिठास आने के बाद ही करनी चाहिए। फलों की तुड़ाई से 15 दिन पहले कीटनाशकों का प्रयोग अवश्य बंद कर देना चाहिए अनावश्यक कृषि रसायनों का छिड़काव नहीं करना चाहिए अन्यथा फल की गुणवक्तता प्रक्रिया प्रभाववित होगी।
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