Vikas Singh Sengar
09-03-2022 02:33 AMभिंडी की खेती
विकास सिंह सेंगर, गोविंद कुमार, संजय दत्त गहतोड़ी1, श्वेता सिंह , सोनल सृष्टि, रश्मि राज
डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर
शिवालिक इंस्टीट्यूट आफ प्रोफेशनल स्ट्डीज देहरादून उत्तराखंड
भिण्डी एक महत्वपूर्ण सब्जी है। भिंडी Abelmoschus esculentus(L.)Moench एक लोकप्रिय सब्जी है। सब्जियों में भिंडी का प्रमुख स्थान है जिसे लेडीज फिंगर या ओकरा के नाम से जाना जाता है। भिंडी की अगेती फसल लगाकर किसान भाई अधिक लाभ अर्जित कर सकते हैं। इसका पौधा लगभग 1 मीटर लम्बा होता है। भिंडी को भारत में अनेकों नाम से जाना जाता है जैसे कि बनारस में इसे 'राम तरोई' नाम से जाना जाता है। तो वही छत्तीसगढ में 'रामकलीय' कहते हैं। बंगला में स्वनाम ख्यात फलशाक, मराठी में 'भेंडी', गुजराती में 'भींडा', फारसी में 'वामिया' कहते हैं। भिंडी में प्रचुर मात्रा में विटामिन सी पाई है। यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन 100 ग्राम भिंडी का सेवन करता है तो प्रतिदिन उसके शरीर के लिए आवश्यक विटामिन सी की मात्रा का 38 प्रतिशत भिंडी से पूरा हो जाता है।
भिंडी खाने से शरीर को बीमारियों से लड़ने के लिए मजबूती मिलती है। भिंडी में अच्छे कार्बोहाइड्रेट पाए जाते हैं, जो वेट कंट्रोल करने में कारगर साबित होते हैं. इसके साथ ही साथ, भिंडी में Anti-Obesity गुण भी पाए जाते हैं, जो वजन नहीं बढ़ने देते हैं।भिंडी में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, खनिज लवणों जैसे कैल्शियम, फास्फोरस के अतिरिक्त विटामिन 'ए', बी, 'सी', थाईमीन एवं रिबोफ्लेविन पाया जाता है। भिंडी के फल में आयोडीन की मात्रा अधिक होती है।
भूमि व खेत की तैयारी
भिंडी के बीज उगने के लिये 28 से 32 डिग्री सेग्रे तापमान अच्छा माना जाता है तथा 16.9 डिग्री सें.ग्रे से कम पर बीज अंकुरित नहीं होता। यह फसल ग्रीष्म तथा खरीफ, दोनों ही ऋतुओं में उगाई जा सकती है। भिंडी को अच्छी जल निकास वाली सभी भूमियों में उगाया जा सकता है।
भूमि की 3 से 4 बार जुताई करके तथा बाद में पाटा लगाकर समतल कर लेना चाहिए।
उत्तम किस्में
पूसा ए-4, परभनी क्रांति, वी.आर.ओ.-6, आजाद 3, वर्षा उपहार, हिसार उन्नत, पंजाब-7, अर्का अभय, अर्का अनामिका
बीज की मात्रा व बुआई का तरीका
सिंचित अवस्था में 2.5 से 3.5किग्रा तथा असिंचित दशा में 6-7 किग्रा प्रति हेक्टेअर की आवश्यकता होती है। संकर किस्मों के लिए 4.5 से 5.0 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर की बीजदर से बोना चाहिए।
वर्षाकालीन भिंडी के लिए कतार से कतार दूरी 40-45 सें.मी. एवं पौधे के बीच की दूरी 25-30 सें.मी. रखना चाहिए। ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुवाई हमेशा कतारों में करनी चाहिए तथा कतार से कतार की दूरी 25-30 सें.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 15-20 से.मी.रखते हैं। बीज को 2 से 3 से.मी. गहराई पर बोना चाहिए। बुवाई से पहले बीजों को 3 ग्राम मेन्कोजेब या कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना अतिआवश्यक होता है।
बुआई का समय
ग्रीष्मकालीन भिंडी : फरवरी-मार्च
वर्षाकालीन भिंडी : जून-जुलाई ।
यदि किसी किसान को भिंडी की फसल लगातार करना चाहता है तो ऐसी दशा में किसान को तीन सप्ताह के अंतराल पर फरवरी से जुलाई के बीच अलग-अलग खेतों में बोना चाहिए।
खाद और उर्वरक
15-20 टन गोबर की खाद, नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश की मात्रा क्रमशः 80 कि.ग्रा., 60 कि.ग्रा. एवं 60 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर की दर से बुबाई के समय , नत्रजन की आधी मात्रा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा, बुवाई के बाद नत्रजन की शेष मात्रा को दो भागों में 35 से 40 दिनों के अंतराल पर देना उचित माना जाता है।
निराई व गुड़ाई
वुबाई के 15-20 दिन बाद प्रथम निंदाई-गुड़ाई करना जरुरी होता है। खरपतवार नियंत्रण हेतु खरपतवारनाशी फ्ल्यूक्लरेलिन के 1.0 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से पर्याप्त नम खेत में बीज बोने के पूर्व मिलाने से प्रभावी खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है।
सिंचाई
मार्च में 10-12 दिन, अप्रैल में 7-8 दिन और मई-जून में 4-5 दिन के अन्तर पर सिंचाई करना चाहिए।
रोग और उनकी रोकथाम
फल छेदक रोग (Fruit Borer Disease), प्रोफेनोफॉस या क्विनॉलफॉस का उचित मात्रा में छिड़काव करके इस रोग की रोकथाम की जा सकती है।
पीत शिरा कीट रोग (Yellow Vein Pest Disease), पौधों पर इमिडाक्लोप्रिड या डाइमिथोएट की उचित मात्रा का छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है।
चूर्णिल आसिता कीट रोग (Powdery Mildew Pest Disease), रोग से बचाव के लिए पौधों पर गंधक की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए।
लाल मकड़ी रोग (Red Spider Disease), डाइकोफॉल या गंधक की उचित मात्रा का छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है।
फलो की तुड़ाई पैदावार और लाभ
पौधे लगभग 38 से 40 दिन बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है। फलो की तुड़ाई को कई चरणों में करना करते हैं, पहली तुड़ाई के 3 से 4 दिन बाद ही इसकी दूसरी तुड़ाई कर लेना चाहिए। इसके बाद प्रत्येक तुड़ाई 2 दिनों के बाद अवश्य कर लेनी चाहिए और याद रहे फलो की पकने से पहले तुड़ाई कर लेना चाहिए नही तो पके हुए फल की मार्केट वैल्यू नही मिलती है, क्योंकि फल पककर कड़वा हो जाता है और पैदावार में भी हानि होती है। शाम के समय तुड़ाई करना सबसे उपयुक्त होता है क्योंकि इससे फल दूसरे दिन तक ताजे बने रहते है औसत पैदावार 10 से 15 टन प्रति हेक्टेयर होती है। बाजार में भिंडी का मूल्य 15 से 30 रूपये प्रति किलो होता है, इस तरह भिंडी की खेती कर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से दो से ढाई लाख तक की कमाई आसानी से कर सकते है।
लागत और व्यय( रु प्रति हे)
जुताई में खर्च: 4000 से 4500 रु
बीज में खर्च: 1500 से 2000 रु
सिंचाई मे खर्च: 5000 से 6000 रु
निराई गुड़ाई में खर्च: 5000 से 7000 रु
खरपतवार नाशक में खर्च: 1000 से 2000 रु
प्लांट प्रोटेक्शन में खर्च: 2500 से 3000रु
लेबर खर्च तुड़ाई में: 7000 से 8000रु
ट्रांसपोटेशन चार्जेस: 2500 से 3000 रु
भूमि का किराए का खर्च: 20000 से 25000
कुल खर्च: 48500 से 60500 रु
उपज : 100 से 150 क्विंटल
बीज की उपज: 12 से 15 क्विंटल
इस तरह से 50 से 60 हजार रुपए की लागत लगाकर किसान आसानी से 1.5 लाख से 2.0 लाख रुपए एक हेक्टेयर से कमा सकता है। अगर बाजार में भिंडी की कीमत अच्छी मिल जाए तो बड़े आसानी से 2 से 2.5 लाख तक की पैदावार एक हेक्टेयर से ली जा सकती है।
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