Kalmegh (कालमेघ/चिरायता/चिरता)

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Sunlight

High

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pH value

6 - 7.5

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Temperature

25-35 °C

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Fertilization

FYM 4-5 t, 20 kg N, 30 kg P2O5 and 20 kg K2O/acre as basal and 15 kg Nitrogen at 30 days after trans

Kalmegh (कालमेघ/चिरायता/चिरता)

Kalmegh (कालमेघ/चिरायता/चिरता)

Basic Info

कालमेघ एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है। इसे कडू चिरायता व भुईनीम के नाम से जाना जाता है। यह एकेन्थेसी कुल का सदस्य है, यह हिमालय में उगने वाली वनस्पति चिरायता (सौरसिया चिरायता) के समान होता है। कालमेघ शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों के वनों में प्राकृतिक रूप में पाया जाता है, यह एक शाकीय पौधा है। इसकी ऊँचाई 1 से 3 फीट होता है। इसकी छोटी–छोटी फल्लियों में बीज लगते हैं, बीज छोटा व भूरे रंग का होता है। इसके पुष्प छोटे श्वेत रंग या कुछ बैगनी रंगयुक्त होते हैं।

उपयोगिता: इसका उपयोग अनेकों आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक और एलोपैथिक दवाईयों के निर्माण में किया जाता है। यह यकृत विकारों को दूर करने एवं मलेरिया रोग के निदान हेतु एक महत्वपूर्ण औषधी के रूप में उपयोग होता है। खून साफ करने, जीर्ण ज्वर एवं विभिन्न चर्म रोगों को दूर करने में इसका उपयोग किया जाता है।

Seed Specification

बुवाई का समय
कालमेघ के बीजों की बुवाई जून के अंतिम सप्ताह या जुलाई के प्रथम सप्ताह में की जाती है।

बीज की मात्रा 
बीज दर 160 ग्राम / एकड़ सीधे या नर्सरी में बोई जाती है।

बुवाई का तरीका 
कालमेघ के बीज को छिड़काव विधि द्वारा या लाइन में बोया जा सकता है।

बीज उपचार 
इस पौधे पर बहुत शोध किया गया है क्योंकि यह आयुर्वेदिक चिकित्सा में बहुत महत्वपूर्ण है, और आम सहमति यह है कि बीज को बुवाई से पहले पांच मिनट के लिए गर्म पानी में भिगोया जाना चाहिए। पानी का तापमान पांच मिनट के लिए लगभग 50°C (122 ° F) होना चाहिए।

Land Preparation & Soil Health

खाद एवं रासायनिक उर्वरक
खेत की आखरी जुताई के पहले 10 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की पक्की खाद मिला देना चाहिए। बोनी व रोपण से पूर्व खेत में 30 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 30 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर डालकर जुताई करनी चाहिए। कालमेघ की खेती सीधे बीज की बुआई कर या रोपणी में पौधे तैयार कर की जा सकती है।

Crop Spray & fertilizer Specification

कालमेघ एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है। इसे कडू चिरायता व भुईनीम के नाम से जाना जाता है। यह एकेन्थेसी कुल का सदस्य है, यह हिमालय में उगने वाली वनस्पति चिरायता (सौरसिया चिरायता) के समान होता है। कालमेघ शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों के वनों में प्राकृतिक रूप में पाया जाता है, यह एक शाकीय पौधा है। इसकी ऊँचाई 1 से 3 फीट होता है। इसकी छोटी–छोटी फल्लियों में बीज लगते हैं, बीज छोटा व भूरे रंग का होता है। इसके पुष्प छोटे श्वेत रंग या कुछ बैगनी रंगयुक्त होते हैं।

उपयोगिता: इसका उपयोग अनेकों आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक और एलोपैथिक दवाईयों के निर्माण में किया जाता है। यह यकृत विकारों को दूर करने एवं मलेरिया रोग के निदान हेतु एक महत्वपूर्ण औषधी के रूप में उपयोग होता है। खून साफ करने, जीर्ण ज्वर एवं विभिन्न चर्म रोगों को दूर करने में इसका उपयोग किया जाता है।

Weeding & Irrigation

खरपतवार नियंत्रण
कालमेघ की फसल में खरपतवार की रोकथाम के लिए 2-3 बार निराई - गुड़ाई की आवश्यकता होती है।

सिंचाई
सिंचाई आवश्यकता अनुसार करना चाहिए।

Harvesting & Storage

फसल की अवधि
अंकुर अलग-अलग महीनों (जुलाई से नवंबर) में लगाए गए थे और 120 डीएपी पर कटाई की गई थी, और बाद में दो महीने के अंतराल पर दो रतन, रोपण के 180 और 240 दिन बाद कटाई की जाती है।

कटाई का समय
कालमेघ की 2 से 3 कटाईयां ली जा सकती है, अनुसंधानों से यह ज्ञात हुआ है कि इसमें एंड्रोग्राफ़ोलाइड (कड़वे पदार्थ) पुष्प आने के बाद ही अधिक मात्रा में पाया जाता हैं। पहली कटाई जब फूल लगना प्रारम्भ हो जाएँ, तब करना चाहिए। इसे जमीन से 10 से 15 से.मी. ऊपर से काटना चाहिए। काटने के बाद खेत में 30 कि.ग्रा. नाईट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए। वर्षा न हो तो तुरन्त पानी देना चाहिए। खेत में निदाई–गुडाई पहली बार करें, तब भी 30 कि.ग्रा. नाईट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए। तीसरी बार सम्पूर्ण पौधा बीज पकने पर उखाड़ना चाहिए। पौधों को सुखाकर बोरों में भरकर भंडारण किया जाता है।

उत्पादन क्षमता
बीज के लिए फरवरी-मार्च में फसलों की कटाई की जाती है। फसल को काटा और सुखाया जाता है फिर बेचा जाता है। प्रति हेक्टेयर औसतन 300-400 शाकीय हरा भाग (40-60 किलोग्राम सूखा शाकीय भाग) प्रति हेक्टेयर मिल जाती है। मानसून के मौसम में उगाई जाने वाली एक अच्छी फसल, प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में 3.5 से 4.0 टन सूखे सामग्री की पैदावार देती है।

सफाई और सुखाने
फसल को कटाई के तुरंत बाद हवादार जगह में सुखाना चाहिए जिससे रंग में अंतर न आए। फसल अच्छी तरह सूखने के बाद इसे बोरे में भरकर संग्रहण किया जा सकता है।

Crop Disease

Andrographis yellow vein leaf curl virus

Description:
{यह वायरस सफेद मक्खी के वेक्टर बेमिसिया तबासी द्वारा संचारी गैर-प्रचारक तरीके से फैलता है।}

Organic Solution:
सल्फर या कॉपर-आधारित कवकनाशी लगाने से नियंत्रित किया जा सकता है|

Chemical solution:
इमिडाक्लोप्रिड का छिड़काव पूरे पौधे पर और पत्तियों के नीचे करना चाहिए; अंडे और मक्खियाँ अक्सर पत्तियों के नीचे पाए जाते हैं। हर 14-21 दिनों में स्प्रे करें और मासिक आधार पर एबामेक्टिन के साथ घुमाएं ताकि व्हाइटफ्लाइज़ रसायनों के प्रतिरोध का निर्माण न करें।

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Catharanthus yellow mosaic virus

Description:
{पीला मोज़ेक वायरस जेमिनीविरिडे परिवार का एक पादप रोगजनक वायरस है। जेमिनीवायरस फसल के पौधों की एक विस्तृत विविधता को संक्रमित करते हैं, कुछ आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण पौधों को डायकोट से लेकर मोनोकोट तक नष्ट कर देते हैं। यह अक्सर सिल्वरफ्लाई द्वारा प्रेषित होता है|}

Organic Solution:
सभी संक्रमित पौधों को हटाकर नष्ट कर दें। उन्हें खाद के ढेर में न डालें, क्योंकि वायरस संक्रमित पौधे के पदार्थ में बना रह सकता है। संक्रमित पौधों को जला दें या कचरे के साथ बाहर फेंक दें। अपने बाकी पौधों की बारीकी से निगरानी करें, खासकर वे जो संक्रमित पौधों के पास स्थित थे। हर उपयोग के बाद बागवानी उपकरण कीटाणुरहित करें। अपने औजारों को पोंछने के लिए एक कमजोर ब्लीच समाधान या अन्य एंटीवायरल कीटाणुनाशक की एक बोतल रखें।

Chemical solution:
बिजाई से पहले बीजों को कार्बोसल्फोन 30 ग्राम या मोनोक्रोटोफॉस 5 मिली प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।

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Frequently Asked Question

कालमेघ (Kalmegh) का क्या लाभ है?

कालमेघ (Kalmegh) त्वचा रोगों के प्रबंधन में फायदेमंद हो सकता है। इसमें  कई एंटीऑक्सिडेंट, रोगाणुरोधी और विरोधी भड़काऊ गुण हैं। इसमें रक्त शुद्ध करने वाली गतिविधि भी है। साथ में, कालमेघ त्वचा के विस्फोट, फोड़े और खुजली के प्रबंधन में उपयोगी हो सकता है।

कालमेघ (Kalmegh) का अंग्रेजी नाम क्या है?

अंग्रेजी नाम: जीव, हरी चिरायता, चूतड़ों का राजा।वितरण: कालमेघ भारत में पाया जाने वाला एक वार्षिक जड़ी बूटी है, विशेष रूप से घने जंगलों में।यह भारत के कई राज्यों (मध्यप्रदेश, राजस्थान) में खेती के अधीन है।

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