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बीज संस्कार करने के लिए छोटा सा सूत्र क्या हैं ? तीसरी जानकारी आपको देना चाहता हूँ कि अच्छी फसल लेने के लिए जो बीज आप खेत में डालते हैं, उस बीज को आप पहले संस्कारित करिए, फिर मिट्टी में डालिए। बीज संस्कार करने के लिए छोटा सा सूत्र बताना चाहता हूँ।
मान लीजिए आपको गेहूँ का बीज लगाना हैं। तो बीज ले लीजिए एक किलो। एक किलो बीज के अनुसार में ये सूत्र बता रहा हूँ। अगर बीज दो किलो है तो सबको दुगुना कर लीजिएगा।
एक किलो किसी भी देसी गौमाता या देसी बैल का गोबर ले लीजिए और उसी देसी गौमाता या देसी बैल का एक किलो मूत्र ले लीजिए। गोबर और मूत्र को आपस में मिला दीजिए। फिर इसमें 100 ग्राम कलर्इ चूना मिलाना है, कलर्इ चूना। चूने का पत्थर बाजार में मिल जाता है आसानी से। उस चूने के पत्थर को एक दिन पहले पानी में डाल दीजिए 2-3 लीटर पानी में। रातभर में को पानी गरम हो जाएगा, फिर वो चूना शांत हो के नीचे बैठ जाएगा। फिर इसको घोल लीजिए। फिर इस 2-3 लीटर चूने वाले पानी को गोबर और गोमूत्र वाले पात्र या बर्तन में डाल दीजिए। तो गोबर-गोमूत्र और सौ ग्राम चूने में जितना घोल तैयार होगा उसमें अच्छे से बीज को डाल दीजिए। कोर्इ भी बीज एक किलो इसमें आराम से भींग जाता है। बीज को इसमें 2-3 घंटे डालकर रखिए। रात में डाल दीजिए, सुबह से निकाल लीजिए। निकालकर इस बीज को छाँव में सूखा दीजिए और छाँव में सूखाने के बाद आप इसको खेत की मिट्टी में लगा दीजिए। तो जो ये बीज लगेगा मिट्टी में, ये संस्कारित हो गया।
इस संस्कारित बीज से क्या फायदे होगा ?
इस संस्कारित बीज के दो फायदे हैं। एक तो फसल पर जल्दी कोर्इ कीट-कीड़ा नहीं लगेगा। तो कीटनाशक-जंतुनाशक से आपको मुक्ति मिल गर्इ, दुसरा फसल का उत्पादन भी अच्छा हो गया। तो बीज संस्कारित करने का एक सूत्र है, कीटनाशक बनाने का एक सूत्र है और खाद बनाने का एक सूत्र हैं, इन तीन बताए गए सूत्रों का भरपूर आप प्रयोग अपने खेत में करिए और अपने किसान मित्रों को ज्यादा से ज्यादा बताइए। मेरा आपसे एक छोटा सा निवेदन है कि इस वर्ष अपने खेत के एक एकड़ में से करके देखिए और एक एकड़ में आपने अगर ये करके देखा तो इसका परिणाम अच्छा आया तो अगले वर्ष पूरे खेत में करिए। और ज्यादा अच्छा आया तो पूरे गाँव के खेत में कराइए, फिर पूरे जिले के खेतों में करा दीजिए। गाँव-गाँव जाकर आप ये गोबर -गोमूत्र का सूत्र किसानों को सिखाना शुरू कर दीजिए, उसी तरह जैसे योग और प्राणायाम सिखाते हैं आप गाँव-गाँव जाकर। तो योग और प्राणायाम से शरीर दुरूस्त हो जाएगा और गोबर-गोमूत्र की खाद से उनका खेत अच्छा हो जाएगा। उनकी मिट्टी अच्छी हो जाएगी, तो सोने पे सुहागे की सिथति बन जाएगी। इधर शरीर स्वस्थ हुआ, उधर मिट्टी स्वस्थ हुर्इ और उसमें से पैदा हुआ अनाज स्वस्थ मिला, उसमें से सबिजयाँ, घास-चारा स्वस्थ मिला। घास चारा जानवर खाएंगें तो दूध बढ़ेगा और उनकी बिमारियाँ कम होगी। हम स्वस्थ भोजन खाएंगे तो हमारी बिमारियाँ कम होगी और डाक्टर का खर्च बचेगां तो सारी जड़मूल से व्यवस्था का परिवर्तन शुरू हो जाएगा, और मेरा ये मानना है कि एक गाँव में अगर एक किसान भार्इ ने भी यदि ये कर लिया तो एक साल के अन्दर पूरा गाँव इसको कर लेगा
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