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देश में खाद्य तेल के रिकॉर्ड आयात से परेशान घरेलू वनस्पति तेल उद्योग ने सरकार से खाने के कच्चे तेल और वनस्पति तेल पर आयात शुल्क बढ़ाने की मांग की है। इस बात का समर्थन करते हुए खाद्य, वाणिज्य और कृषि मंत्रालय ने कच्चे तेलों और रिफाइंड तेलों पर शुल्क बढ़ाने की सिफारिश की है। कैबिनेट और वित्त मंत्रालय कि बैठक में इस पर आज फैसला लिया जा सकता है। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) ने खाने के कच्चे तेल पर 25 फीसदी और रिफाइंड ऑयल पर 45 फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी लगाने की मांग की है। फिलहाल खाने के कच्चे तेल पर 7.5 फीसदी और रिफाइंड ऑयल पर 15 फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी लगती है।
एसईए के कार्यकारी निदेशक बी वी मेहता ने कहा, 'वैश्विक बाजार में खाद्य तेलों की अत्यधिक आपूर्ति के लिए भारत को डंपिंग ग्राउंड के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।' उन्होंने बाताया कि तिलहन उत्पादक राज्यों में कम बारिश होने से देश में खाद्य तेलों का इंपोर्ट करीब 20 लाख टन बढ़कर 135 लाख टन पहुंच सकता है। एसईए के मुताबिक नवंबर 2014 से अगस्त 2015 के दौरान कुल वनस्पति तेल आयात 23 फीसदी बढ़कर 1,17,25,065 टन रहा, जो पिछले साल की इसी अवधि में 95,25,374 टन था।
इसका मतलब है की ज्यादा आयात से स्थानीय कीमतों पर भारी दबाव बन गया है, जिससे तिलहन उगाने वाले भारतीय किसानों को मामूली मुनाफा हो रहा है और उनकी तिलहन फसलों में रुचि कम हो रही है। एसईए के अनुसार अगर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ती है तो छोटी अवधि में घरेलू इस्तेमाल में आने वाले खाद्य तेलों के दाम में तेजी आयेगी, लेकिन इससे किसानों और घरेलू तेल उद्योग का फायदा होगा।
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