मूंग, तरबूज, खरबूजा, ककड़ी और करेला की खेती करके गर्मियों के मौसम में कर सकते है अच्छी कमाई

मूंग, तरबूज, खरबूजा, ककड़ी और करेला की खेती करके गर्मियों के मौसम में कर सकते है अच्छी कमाई
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Kisaan Helpline

Agriculture Feb 28, 2022

ज़ायद की फ़सल (Zaid Crops) : इस वर्ग की फसलों में तेज गर्मी और शुष्क हवाएँ सहन करने की अच्छी क्षमता होती हैं। ज़ायद की फ़सल सामान्यत: उत्तर भारत में मार्च-अप्रैल में बोई जाती है। इस वर्ग की फसलों में तेज गर्मी और शुष्क हवाएँ सहन करने की अच्छी क्षमता होती हैं। उदाहरण के तौर पर तरबूज़, खीरा, ककड़ी आदि की फ़सलें ज़ायद की फ़सल मानी जाती हैं।

बीज लगाने का समयः फरवरी से मार्च, 
फसलों की कटाई का समयः अप्रैल से मई, 
प्रमुख फसलें: खरबूजा, तरबूज, ककड़ी, मूंग, लोबीया, पत्तेदार सब्जियां, आदि।



ख़रबूज़ा एक फल है। यह पकने पर हरे से पीले रंग के हो जाते है, हलांकि यह कई रंगों मे उपलब्ध है। मूल रूप से इसके फल लम्बी लताओं में लगते हैं। कद्दूवर्गीय फसलों में खरबूजा एक महत्वपूर्ण फसल है। खरबूजे की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार और मध्य प्रदेश के गर्म तथा शुष्क क्षेत्रों में की जाती है। हमारे देश के उत्तर-पश्चिम में खरबूजे की खेती व्यापक रूप से की जाती है। इसकी खेती नदियों के किनारे मुख्य रूप से होती है। खरबूजा एक स्वादिष्ट फल है, जो गर्मियों में तरावट देता है और इसके बीजों का उपयोग मिठाई को सजाने में किया जाता है।



तरबूज़ ग्रीष्म ऋतु का फल है। यह बाहर से हरे रंग के होते हैं, परन्तु अंदर से लाल और पानी से भरपूर व मीठे होते हैं। इनकी फ़सल आमतौर पर गर्मी में तैयार होती है। पारमरिक रूप से इन्हें गर्मी में खाना अच्छा माना जाता है क्योंकि यह शरीर में पानी की कमी को पूरा करते हैं। कुछ स्रोतों के अनुसार तरबूज़ रक्तचाप को संतुलित रखता है और कई बीमारियाँ दूर करता है। हिन्दी की उपभाषाओं में इसे मतीरा (राजस्थान के कुछ भागों में) और हदवाना (हरियाणा के कुछ भागों में) भी कहा जाता है।



ककड़ी की उत्पत्ति भारत से हुई। इसकी खेती की रीति बिलकुल तरोई के समान है, केवल उसके बोने के समय में अंतर है। यदि भूमि पूर्वी जिलों में हो, जहाँ शीत ऋतु अधिक कड़ी नहीं होती, तो अक्टूबर के मध्य में बीज बोए जा सकते हैं, नहीं तो इसे जनवरी में बोना चाहिए। ऐसे स्थानों में जहाँ सर्दी अधिक पड़ती हैं, इसे फरवरी और मार्च के महीनों में लगाना चाहिए। इसकी फसल बलुई दुमट भूमियों से अच्छी होती है। इस फसल की सिंचाई सप्ताह में दो बार करनी चाहिए। ककड़ी में सबसे अच्छी सुगंध गरम शुष्क जलवायु में आती है। इसमें दो मुख्य जातियाँ होती हैं - एक में हलके हरे रंग के फल होते हैं तथा दूसरी में गहरे हरे रंग के। इनमें पहली को ही लोग पसंद करते हैं। ग्राहकों की पसंद के अनुसार फलों की चुनाई तरुणावस्था में अथवा इसके बाद करनी चाहिए।



करेला हमारे देश के लगभग सभी प्रदेशों में एक लोकप्रिय सब्जी है। इसके फलों का उपयोग रसेदार, भरवाँ या तले हुए शाक के रूप में होता है। कुछ लोग इसे सुखाकर भी संरक्षित करते हैं। यह खीरा वर्गीय फसलों की एक मुख्य फसल है। करेला केवल सब्जी ही नहीं बल्कि गुणकारी औषधि भी है। इसके कडवे पदार्थ द्वारा पेट में उत्पन्न हुए सूत्रकृमि तथा अन्य प्रकार के कृमियों को खत्म किया जा सकता है। करेले का उपयोग अनेक दवाइयों में भी होता है। गठिया रोग के लिए यह एक अत्यंत गुणकारी औषधि है। इसको टॉनिक के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। अनेक रोग जैसे मधुमेह आदि के उपचार के लिये यह एक रामबाण है।



Mung Ki Kheti: भारत में मूंग ग्रीष्म और खरीफ दोनों मौसम की कम समय में पकने वाली अक मुख्य दलहनी फसल है। मूंग का उपयोग मुख्य रूप से आहार में किया जाता है, जिसमें 24 से 26 प्रतिशत प्रोटीन, 55 से 60 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट और 1.3 प्रतिशत वसा होती है। यह दलहनी फसल होने के कारण इसके तने में नाइट्रोजन की गाठें पाई जाती है। जिसे इस फसल के खेत को 35 से 40 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है। ग्रीष्म मूंग की खेती चना, मटर, गेहूं, सरसों, आलू, जौ, अलसी आदि फसलों की कटाई के बाद खाली हुए खेतों में की जा सकती है।
मूंग जायद की प्रमुख फसल है। दलहनी फसलों मे मूंग की बहुमुखी भूमिका है। इससे पौष्टिक तत्व प्रोटीन प्राप्त होने के अलावा फली तोड़ने के बाद फसलों को भूमि में पलट देने से यह हरी खाद की पूर्ति भी करती है।
मूंग की खेती के लिए दोमट भूमि उपयुक्त रहती है। पलेवा करके दो जुताइयां करने से खेत तैयार हो जाता है। यदि नमी की कमी हो तो दोबारा पलेवा करके बुवाई की जाए। ट्रैक्टर, पावर टिलर रोटोवेटर या अन्य आधुनिक कृषि यंत्र से खेत की तैयारी शीघ्रता से की जा सकती है। मूंग की बुवाई के लिए उपयुक्त समय 10 मार्च से 10 अप्रैल तक है। बुवाई में देर करने से फल एवं फलिया गर्म हवा के कारण तथा वर्षा होने से क्षति हो सकती है। 20-25 कि०ग्रा० स्वस्थ बीज प्रति हेक्टर पर्याप्त होता है।

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