भारतीय कृषि में सिंचित क्षेत्रों में सूक्ष्म सिंचाई का महत्व

भारतीय कृषि में सिंचित क्षेत्रों में सूक्ष्म सिंचाई का महत्व
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Kisaan Helpline

Agriculture Dec 07, 2021

Indian agriculture: देश की जनसंख्या 1.32 अरब है, जो विश्व की कुल जनसंख्या का 18 प्रतिशत है। वर्तमान आबादी के साथ भारत विश्व की 17.84 प्रतिशत जनसंख्या का भरण-पोषण करता है, जबकि हमारे पास केवल 2.4 प्रतिशत भूमि संसाधन और 4 प्रतिशत जल संसाधन ही उपलब्ध हैं। जल संसाधन, जल के वे स्रोत हैं, जो मनुष्य के लिए उपयोगी होते हैं। जल के उपयोग में कृषि, औद्योगिक, घरेलू, मनोरंजन एवं पर्यावरणीय गतिविधियां शामिल हैं। कृषि कार्यों के लिए जल संसाधनों की आवश्यकता होती है। सिंचाई के लिए मृदा सतह का लगभग 69 मिलियन हैक्टर मीटर और भूजल का 43.2 मिलियन हैक्टर मीटर जल ही इस्तेमाल के लिए उपलब्ध है। वर्तमान जल इस्तेमाल देश में विभिन्न प्रयोजनों के लिए लगभग 60 एमएचएएम है। सिंचाई जल का इस्तेमाल पानी की कुल उपयोग क्षमता का लगभग 84 प्रतिशत यानी 75 बिलियन क्यूबिक मीटर है। जल, प्रकृति द्वारा प्रदत्त एक ऐसा उपहार है, जो न केवल जीवन, बल्कि पर्यावरण के लिए भी अमूल्य है। जैव मंडल की अनेक क्रियाएं जल पर ही निर्भर करती है। कृषि के लिए सिंचाई जल की व्यवस्था का होना महत्वपूर्ण है। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2030 तक 71 प्रतिशत वैश्विक जल का उपयोग कृषि कार्यों में किया जाएगा।

देश में प्रतिवर्ष लगभग 400 करोड़ 5 मिलियन हैक्टर मीटर जल वर्षा एवं बर्फ से प्राप्त होता है। इस जल में से केवल 70 करोड़ हैक्टर मीटर सतही जल है। मात्र 35 मिलियन हैक्टर मीटर भूजल ही सिंचाई के लिए उपयुक्त है। कुल सिंचित क्षेत्रफल के आधे से अधिक भाग पर सिंचाई छोटे साधनों जैसे-कुएं, तालाब, झीलों, जलाशय, बांध, नलकूप, भूमि के कच्चे बांध, नल तथा अन्य जल स्रोतों द्वारा सिंचाई की जाती है। शेष भाग की सिंचाई नहरों, नालियों आदि के माध्यम से की जाती है। कृषि संगणना वर्ष 2010-11 के अनुसार, सिंचाई का मुख्य स्रोत नलकूप (45.2 प्रतिशत) था। इसके बाद क्रमश: नहर (26.2 प्रतिशत), कुआं (18.5 प्रतिशत) और तालाब (3.5 प्रतिशत) थे, जबकि देश में अन्य स्रोतों द्वारा 6.7 प्रतिशत क्षेत्र सिंचित किया गया था।

सूक्ष्म सिंचाई
इसमें जल देने वाली नालियों का व्यास अति सूक्ष्म होता है। इस प्रकार जल बहुत कम मात्रा में वितरित होता है। और यह जल बहुत सीमित क्षेत्र तक ही रहता है।

सूक्ष्म सिंचाई के प्रकार बूंद-बूंद/ड्रिप सिंचाई विधि (Drip Irrigation Method)


जल की बचत, पैदावार में वृद्धि एवं जल उपयोग दक्षता के आधार पर सतही सिंचाई विधियों की तुलना में ड्रिप सिंचाई प्रणाली अधिक दक्ष तकनीक है। कृत्रिम रूप से किसी पौधे की जड़ों में धीरे-धीरे सिंचाई जल को बूंद-बूंद करके पहुंचाना ड्रिप सिंचाई कहलाता है। इस विधि में 40-70 प्रतिशत जल की बचत होती है तथा 90-95 प्रतिशत जल उपयोग क्षमता प्राप्त होती है। इस विधि में 60-80 प्रतिशत तक समय व श्रम की बचत तथा लवणीय जल का प्रयोग भी किया जा सकता है अर्थात लवणीय जल का इस्तेमाल भी संभव है। इस विधि द्वारा उत्पाद गुणवत्ता के साथ-साथ फसल की उपज में 30-50 प्रतिशत तक की वृद्धि तथा खरपतवारों की समस्या को भी रोका जा सकता है। इस विधि द्वारा उर्वरक देने पर 50 प्रतिशत उर्वरकों की बचत हो सकती है। इसमें प्लास्टिक पाइपों पर स्थापित जल ड्रिपर द्वारा पौधों की जड़ों तथा समान रूप में सिंचाई से कम जल प्रयोग करके अधिकतम पैदावार प्राप्त की जा सकती है। इस विधि द्वारा पौधों के जड़ क्षेत्र में तरल घुलनशील रासायनिक उर्वरकों द्वारा पोषक तत्वों का प्रयोग भी आसानी से किया जा सकता है। 

उप-सतह ड्रिप सिंचाई प्रणाली
इस प्रणाली से आलू की अधिकतम 40.3 टन/हैक्टर और कपास की उपज 2.47 टन/हैक्टर दर्ज की गई। 
ड्रिप सिंचाई के अंतर्गत कपास आधारित फसल प्रणाली में लाभ-लागत के अनुपात का अनुमान किया गया और यह कपास में 2.1, गेहूं 1.7 और कपास-गेहूं में 2.6 पाया गया है।

छिड़काव/स्प्रिंक्लर सिंचाई विधि (Sprinkler Irrigation Method)


सूक्ष्म सिंचाई पद्धति का एक अन्य घटक स्प्रिंक्लर सिंचाई प्रणाली है। इसको सार्वभौमिक रूप से उच्च जल उपयोग दक्षता प्राप्त करने, फसल उत्पादकता में सुधार करने, उपज की गुणवत्ता, सिंचाई जल की बचत और श्रम लागतों को कम करने के लिए अपनाया जाता है। छिड़काव सिंचाई पद्धति द्वारा सिंचाई जल का हवा में छिड़काव किया जाता है। यह जल भूमि की सतह पर कृत्रिम वर्षा के रूप में गिरता है। इस विधि में पौधों की पंक्तियों के बीच में लोहे या रबर के पाइप भूमि के ऊपर बिछा दिए जाते हैं। सहायक पाइप एक-दूसरे से समानान्तर रखते हुए आवश्यकतानुसार दूरी पर नोजल लगा दिए जाते हैं। नोजल घूमने वाले या स्थिर हो सकते हैं। इन नलों का संबंध मुख्य नल से व मुख्य नल का संबंध जल स्रोत से कर दिया जाता है। इन नलों में जल अधिक दबाव से प्रवाहित किया जाता है। इससे जल तेज बहाव के साथ निकलता है और स्प्रिंक्लर में लगी नोजल पानी को फुहार के रूप में बाहर फेंकती रहती है।
यह विधि काली मृदा को छोड़कर सभी मृदाओं के लिए उपयुक्त है। फव्वारा या छिड़काव सिंचाई में जल का दबाव 2.0-2.5 कि.ग्रा. प्रति वर्ग सें. मीटर होता है। इस प्रणाली में जल का डिस्चार्ज 1000 लीटर प्रति घंटे प्रति नोजल होता है। इस विधि से एक एकड़ क्षेत्रफल की सिंचाई लगभग 3-4 घण्टे में की जा सकती है। देश में लगभग 30 लाख हैक्टर भूमि में इसका प्रयोग हो रहा है। स्प्रिंक्लर सिंचाई बलुई मृदा, ऊंची-नीची भूमि तथा जहां पर जल कम उपलब्ध है, वहां पर प्रयोग की जा सकती है। इस विधि द्वारा गेहूं, कपास, मूंगफली, तम्बाकू तथा अन्य फसलों में सिंचाई की जा सकती है।

स्प्रिंक्लर सिंचाई पद्धति के मुख्य अवयव
पम्पिंग सेट या जल उठाने वाला यंत्र, उर्वरक टैंक, प्रेसर मेज, फव्वारा नोजल, बाइपास बॉल्व, छलनी प्रणाली, कन्ट्रोल वाल्व पाइप लाइन, छिड़काव यंत्र आदि।

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