Sanjay Kumar Singh
20-10-2023 04:10 AMफल एवं सब्जियों में प्रयोग की जाने वाली नीम-तुलसी आधारित सुरक्षित रोग-कीटनाशक बनाने की विधि
डॉ. एसके सिंह
प्रोफ़ेसर सह मुख्य वैज्ञानिक (पौधा रोग) एवं
विभागाध्यक्ष, पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं प्रधान अन्वेषक अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (फल), डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा , समस्तीपुर बिहार
फलों और सब्जियों के लिए नीम-तुलसी आधारित सुरक्षित कीटनाशक बनाना फसलों को कीटों और बीमारियों से बचाने का एक प्राकृतिक और पर्यावरण-अनुकूल तरीका है। नीम और तुलसी, जिन्हें पवित्र तुलसी भी कहा जाता है, का उपयोग सदियों से पारंपरिक कृषि में उनके कीट-विकर्षक (Repellent) गुणों के लिए किया जाता रहा है। यह कीटनाशक मनुष्यों, जानवरों और पर्यावरण के लिए सुरक्षित है।
किसान आजकल फल एवं सब्जियों के उत्पादन हेतु किसी भी प्रकार का कोई भी कीटनाशक का उपयोग नहीं करना चाहता है,उसकी मान्यता है की जहरीले कीटनाशकों के उपयोग से उनकी फल एवं सब्जी भी प्रदूषित होकर जहरीले हो जाएंगे। वह चाहते है की उनके फल एवं सब्जी के उत्पादन के क्रम में हानिकारक कीटनाशकों के प्रयोग के बिना ,उसमे लगनेवाले कीड़ों को कैसे सुरक्षित ढंग से प्रबंधित किया जा सकता है।इस क्रम में नीम एवम तुलसी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। किसानों के समक्ष सबसे बड़ा प्रश्न यह है की इनसे कैसे कीटनाशक बनाए जाय ,यह जानना चाहता है । नीम के अर्क का उपयोग कृषि में कीटों और रोग प्रबंधन और पौधों को पोषक तत्वों की आपूर्ति के लिए किया जाता है। इसके अलावा, नीम किसानों के लिए सुरक्षित है, इसका उपयोग पूरे फसल चक्र के दौरान, पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित और अलग-अलग आईपीएम रणनीतियों के अनुकूल किया जा सकता है।नीम के यौगिक कीटों के लिए प्रणालीगत और संपर्क विष के रूप में कार्य करते हैं।
अ. नीम की ताजी पत्तियों से कीटनाशक दवा बनाना
नीम की 1 किलो हरी पत्तियों को एक बाल्टी में इकट्ठा करें और 5 लीटर पानी डालें और पत्तियों को पीस लें और रात भर या 12 घंटे के लिए छोड़ दे, तत्पश्चात पत्तियों को निचोड़े और तरल को एकत्र करें। पत्ती के अति छोटे टुकड़े को हटाने के लिए तरल को रसोई की छलनी या मलमल के कपड़े से छान लें। लगभग 20 ग्राम साबुन या कोई भी स्टीकर को थोड़ी मात्रा में पानी में घुलने तक मिलाएं। इस प्रकार से तैयार नीम के तरल को एक सप्ताह तक उपयोग कर सकते हैं; लेकिन इसे ठंडी, अंधेरी जगह पर स्टोर करना ज्यादा अच्छा रहता है।
ब. नीम के सूखे पत्ते से कीटनाशक बनाना
हरी नीम की पत्तियों को इकट्ठा करके सीधी धूप से दूर सुखा लें। पत्तियों को एक कंटेनर में स्टोर करें जिससे चारों ओर भरपूर हवा मिल सके। पत्तियाँ 250 ग्राम सूखे नीम के पत्ते एक बाल्टी में 5 लीटर पानी मे रात भर या 12 घंटे के लिए भिगो दें पत्तियों को पीसें और रात भर या 12 घंटे फिर से भिगो दें, तरल को निचोड़ें, रसोई की छलनी या मलमल के कपड़े से छान ले, इसके बाद स्प्रेयर में डालें तथा प्रयोग करें। इसमें लगभग 20 ग्राम साबुन या 20 मिलीलीटर स्टीकर को भी मिला लेना चाहिए।
स. नीम के बीज से (अर्क) सुरक्षित कीटनाशक कैसे बनाएं ?
फल एवं सब्जियों में लगने वाली फल मक्खी के साथ साथ आधिकांश कृषि कीट को नीम के बीज के अर्क(एक्सट्रेक्ट) से सफलतापूर्वक प्रबंधित कर सकते है। इसको बनाने के लिए छिले हुए नीम के बीजों को 3-5 किलोग्राम हल्के हाथों से पीस लें। पिसे हुए बीजों को मिट्टी के बर्तन में रखें इसमें 10 लीटर पानी डालें। मटके के मुंह को कपड़े से अच्छी तरह ढककर 3 दिन के लिए ऐसे ही छोड़ दें। स्पष्ट अर्क पाने के लिए छान ले। एक लीटर नीम के बीज के अर्क को 9 लीटर पानी में घोलें , इस घोल में 100 मिली साबुन या स्टीकर डालें। अच्छी तरह से हिलाएं।
द . तुलसी के पत्ते के अर्क (एक्सट्रेक्ट) से फल मक्खी का प्रबंधन
तुलसी के पत्ते का अर्क (एक्सट्रेक्ट) बनाते है जिसे बनाने की विधि है, इसमे सर्वप्रथम 50 ग्राम तुलसी के पत्तों को पीस लेते है, उसे रात को 2-3 लीटर पानी में भिगो दें सुबह उसे छान ले इसके बाद 8-12 मिली तरल साबुन डालें, अच्छी तरह से हिलाएं. इस घोल से कैटरपिलर,फल मक्खियां,लाल मकड़ी, चित्तीदार पत्ती भृंग इत्यादि कीड़े प्रबंधित होते है।
नीम-तुलसी कीटनाशक के प्रयोग का सर्वोत्तम समय
नीम-तुलसी कीटनाशक के पुनः प्रयोग
नीम-तुलसी कीटनाशक का भंडारण
नीम-तुलसी कीटनाशक के प्रयोग में सावधानियां
नीम-तुलसी कीटनाशक के लाभ
यह रासायनिक कीटनाशकों का एक प्राकृतिक और पर्यावरण-अनुकूल विकल्प है। यह लाभकारी कीड़ों और परागणकों के लिए सुरक्षित है। नीम-तुलसी आधारित कीटनाशकों में एंटीफंगल और रोगाणुरोधी गुण होते हैं। यह पौधों के समग्र स्वास्थ्य में सुधार करता है।
निष्कर्षतः, फलों और सब्जियों के लिए नीम-तुलसी आधारित सुरक्षित कीटनाशक बनाना आपके बगीचे में एक स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के साथ-साथ आपकी फसलों को कीटों और बीमारियों से बचाने का एक टिकाऊ और प्रभावी तरीका है। यह एक सरल और लागत प्रभावी समाधान है जो जैविक और पर्यावरण के अनुकूल कृषि पद्धतियों में योगदान देता है।
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