Sanjay Kumar Singh
15-02-2023 12:31 PMप्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह
सह निदेशक अनुसन्धान
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर, बिहार
किसान पपीता की खेती के प्रति आकर्षित हो रहे है उन्हे लगता है की इसकी खेती में फायदे ही फायदे है लेकिन ऐसा नहीं है। यदि इसकी पूरी जानकारी के बगैर आपने पपीता की खेती शुरू कर दी फायदे की जगह नुकसान भी हो सकता है। पपीता की मार्केटिंग में कोई दिक्कत नही है क्योंकि हर कोई इसके औषधीय एवम पौष्टिक गुणों से परिचित है। इसके विपरित अन्य फसलों के मार्केटिंग में दिक्कत आती है।
गेंहू-धान जैसी परंपरागत फसलों की बजाय फल-फूल और सब्जी की खेती करने पर विचार करना चाहिए। पपीते की खेती ऐसा ही एक उपाय है जिसके माध्यम से किसान प्रति हेक्टेयर दो से तीन लाख रुपये प्रति वर्ष (सभी लागत खर्च निकालने के बाद) की शुद्ध कमाई कर सकते हैं। वैसे तो पपीता की बहुत सारी प्रजातियां है लेकिन सलाह दी जाती है की रेड लेडी पपीता की खेती करें।
पपीता की ही खेती क्यों?
पपीता आम के बाद विटामिन ए का सबसे अच्छा स्रोत है। यह कोलेस्ट्रोल, डायबिटिक और वजन घटाने में भी मदद करता है, यही कारण है कि डॉक्टर भी इसे खाने की सलाह देते हैं। यह आंखों की रोशनी बढ़ाता है और महिलाओं के पीरियड्स के दौरान दर्द कम करता है। पपीते में पाया जाने वाला एन्जाइम ‘पपेन’ औषधीय गुणों से भरपूर होता है। यही कारण है कि पपीते की मांग लगातार बढ़ रही है। बढ़ते बाज़ार की मांग को देखते हुए लोगों ने इसकी खेती की तरफ ध्यान दिया है। पपीते की फसल साल भर के अंदर ही फल देने लगती है, इसलिए इसे नकदी फसल समझा जा सकता है। इसको बेचने के लिए (कच्चे से लेकर पक्के होने तक) किसान भाइयों के पास लंबा समय होता है। इसलिए फसलों के उचित दाम मिलते हैं। पपीता को 1.8X1.8 मीटर की दूरी पर पौधे लगाने के तरीके से खेती करने पर प्रति हेक्टेयर तकरीबन एक लाख रुपये तक की लागत आती है, जबकि 1.25X1.25 मीटर की दूरी पर पेड़ लगाकर सघन तरीके से खेती करने पर 1.5 लाख रुपये तक की लागत आती है। लेकिन इससे लगभग दो से तीन लाख रुपये प्रति हेक्टेयर तक की शुद्ध कमाई की जा सकती है।
पपीते लगाने का सर्वोत्तम समय
पपीता उष्ण कटिबंधीय फल है। इसकी अलग-अलग किस्मों को साल में तीन बार यथा जून-जुलाई अक्टूबर-नवंबर एवम मार्च अप्रैल में रोपाई किया जा सकता है। पपीते की फसल पानी को लेकर बहुत संवेदनशील होती है। बुवाई से लेकर फल आने तक भी इसे उचित मात्रा में पानी चाहिए। पानी की कमी से पौधों और फलों की बढ़त पर असर पड़ता है, जबकि जल की अधिकता होने से पौधा नष्ट हो जाता है। यही कारण है कि इसकी खेती उन्हीं खेतों में की जानी चाहिए जहां पानी एकत्र न होता हो। गर्मी में हर हफ्ते तो ठंड में दो हफ्ते के बीच इनकी सिंचाई की व्यवस्था होनी चाहिए। यदि पपीते के खेत में 24 घंटे पानी लग गए तो उसे बचा पाना असम्भव है इसीलिए आजकल इसकी खेती जून जुलाई में नही करते है। मार्च अप्रैल में पपीता की खेती बहुत तेजी से प्रचलित हो रही है क्योंकि इसमें तुलनात्मक रूप से कम बीमारियां लगती है। पपीते की खेती के लिए उन्नत किस्म के बीजों को अधिकृत जगहों से ही लेना चाहिए। बीजों को अच्छे जुताई किए हुए खेतों में एक सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए। बीजों को नुकसान से बचाने के लिए कीटनाशक-फफूंदनाशक दवाइयों से उपचारित करने के बाद ही लगाना चाहिए। पपीते का पौधा लगाने के लिए 60X60X60 सेंटीमीटर का गड्ढा बनाया जाना चाहिए। इसमें उचित मात्रा में नाइट्रोजन, फोस्फोरस और पोटाश और देशी खादों को रोपाई से 1 माह पूर्व डालने के बाद 15 से 20 सेंटीमीटर की ऊंचाई का तैयार पौधा इनमें रोपना चाहिए। पपीते के बेहतर उत्पादन के लिए 20 डिग्री सेंटीग्रेड से लेकर 28 डिग्री सेंटीग्रेड का तापमान सबसे उपयुक्त होता है। इसके लिए सामान्य पीएच मान वाली बलुई दोमट मिट्टी बेहतर मानी जाती है। पपीते के पौधे में सफेद मक्खी से फैलने वाला वायरस के द्वारा होने वाला पर्ण संकुचन रोग और रिंग स्पॉट रोग लगता है। बिना इन रोगों को प्रबंधित किए पपीता की खेती से लाभ नहीं प्राप्त किया जा सकता है।
पपीता में लगनेवाले विषाणुजनित रोगों को प्रबंधित करने की डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय एवम आईसीएआर एआईसीआरपी (फ्रूट्स) द्वारा विकसित तकनीक
किस्में और उत्पादन
पपीता की देशी और विदेशी अनेक किस्में उपलब्ध हैं। देशी किस्मों में राची, बारवानी और मधु बिंदु लोकप्रिय हैं। विदेशी किस्मों में सोलों, सनराइज, सिन्टा और रेड लेडी प्रमुख हैं। रेड लेडी के एक पौधे से 70 से 80 किलोग्राम तक पपीता पैदा होता है। पूसा संस्थान द्वारा विकसित की गई पूसा नन्हा पपीते की सबसे बौनी प्रजाति है। यह केवल 30 सेंटीमीटर की ऊंचाई से ही फल देना शुरू कर देता है, जबकि को-7 गायनोडायोसिस प्रजाति का पौधा है जो जमीन से 52.2 सेंटीमीटर की ऊंचाई से फल देता है। इसके एक पेड़ से 115 से ज्यादा फल प्रतिवर्ष मिलते हैं। इस प्रकार यह 340 टन प्रति हेक्टेयर तक की उपज देता है। अलग-अलग फलों की साइज़ 800 ग्राम से लेकर दो किलोग्राम तक होता है। आज के बाज़ार में पपीता 25 से 50 रूपये में बिकता है, लेकिन थोक बाज़ार में 15 से 20 रूपये प्रति किलो की दर से बेचने पर भी यह उपज तीन से साढ़े तीन लाख रुपये के बीच होती है। इस तरह सभी खर्चे काटने के बाद भी किसानों को दो से तीन लाख रुपये तक का लाभ हो जाता है।
पपीते के दो पौधों के बीच पर्याप्त जगह होती है। इसलिए इनके बीच छोटे आकर के पौधे वाली सब्जियां किसान को अतिरिक्त आय देती हैं। इनके पेड़ों के बीच प्याज, पालक, मेथी, मटर या बीन की खेती की जा सकती है। केवल इन फसलों के माध्यम से भी किसान को अच्छा लाभ हो जाता है। इसे पपीते की खेती के साथ बोनस के रूप में देखा जा सकता है। पपीते की फसल के सावधानी यह रखनी चाहिए कि एक बार फसल लेने के बाद उसी खेत में तीन साल तक पपीते की खेती करने से बचना चाहिए क्योंकि एक ही जगह पर लगातार खेती करने से फलों का आकार छोटा होने लगता है।
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