Vikas Singh Sengar
27-01-2022 03:42 AMमधुमक्खी पालन एवं मधुवाटिका का प्रबंधन
प्रेरणा भार्गव, मौटुषी दास , डा. सुशील कुमार, एवं गोविंद कुमार
सहायक प्रोफेसर, कृषि विभाग, शिवालिक इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज, देहरादून
मधुमक्खी पालन एक ऐसा व्यवसाय है, जिसे छोटे बड़े किसान अपनाकर लाभान्वित हो सकते है। मधुमक्खियां मोन समुदाय से कीटों वर्ग की जंगली जीव है इन्हें अनुकूल कृत्रिम ग्रह (हईव) में पाल कर इनसे शहद एवं मोम आदि प्राप्त कर सकते है जिससे किसानोंकी आय में वृद्धि होगी और रोजगार के साधन भी प्राप्त होगे।
मधुमक्खी परिवार :
1. रानी: यह पूर्ण विकसित मादा होती है जोकि परिवार की जननी होती है। रानी का कार्य अंडे देना है। अच्छे वातावरण में रानी मधुमक्खी एक दिन में 1500-1800 अंडे देती है। देशी मक्खी करीब 700-1000 अंडे देती है। इसकी उम्र औसतन 2-3 वर्ष होती है।
2. कमेरी/श्रमिक: यह अपूर्ण मादा होती है और मौनगृह के सभी कार्य जैसे अण्डों बच्चों का पालन पोषण करना, फलों तथा पानी के स्त्रोतों का पता लगाना, पराग एवं रस एकत्र करना, परिवार तथा छतो की देखभाल, शत्रुओं से रक्षा करना इत्यादि इसकी उम्र लगभग 2-3 महीने होती है।
3.नर मधुमक्खी / निखट्ट: यह रानी से छोटी एवं कमेरी से बड़ी होती है। रानी मधुमक्खी के साथ सम्भोग के सिवा यह कोई कार्य नही करती सम्भोग के तुरंत बाद इनकी मृत्यु हो जाती है और इनकी औसत आयु करीब 60 दिन की होती है।
मधुमक्खियों की किस्मे : भारत में मुख्य रूप से मधुमक्खी की चार प्रजातियाँ पाई जाती है:छोटी मधुमक्खी (एपिस फ्लोरिय), भैंरो या पहाड़ी मधुमक्खी ( एपिस डोरसाटा), देशी मधुमक्खी (एपिस सिराना इंडिका) तथा इटैलियन या यूरोपियन मधुमक्खी (एपिस मेलिफेरा)।
इनमे से एपिस सिराना इंडिका व एपिस मेलिफेरा जाती की मधुमक्खियों को आसानी से लकड़ी के बक्सों पाल सकते है। देशी मधुमक्खी प्रतिवर्ष औसतन 5-10 किलोग्राम शहद प्रति परिवार तथा इटैलियन मधुमक्खी 50 किलोग्राम शहद का उत्पादन करने की क्षमता होती हैं।
मधुमक्खी पालन के लिए अवश्यक सामग्री : मौन पेटिका, मधु निष्कासन यंत्र, स्टैंड, छीलन छुरी, छत्ताधार, रानी रोक पट, हाईवे टूल (खुरपी), रानी रोक द्वार, नकाब, रानी कोष्ठ रक्षण यंत्र, दस्ताने, भोजन पात्र, धुआंकर और ब्रुश।
मधुमक्खी पालन का समय : मधुमक्खी पालन को किसी भी मौसम में शुरू कर सकते है आम तौर पर मधुमक्खियां गर्म मौसम की शौकीन होती हैं और इसलिए वसंत ऋतु को एपीकल्चर शुरू करने का उचित मौसम माना जाता है क्योंकि ज्यादातर पौधों में फूल इसी अवधि में शुरू होते हैं।
मधुमक्खी परिवार का उचित रखरखाव एवं प्रबंधन :
मधुमक्खी परिवारों की सामान्य गतिविधियाँ 10° और 38°सेंटीग्रेट की बीच में होती है उचित प्रबंध द्वारा प्रतिकूल परिस्तिथियों में इनका बचाव आवश्यक होता है। उतम रखरखाव से परिवार शक्तिशाली एवं क्रियाशील बनाये रखे जा सकते है।निम्न प्रकार वार्षिक प्रबंधन करना चाहिये।
शरदऋतु में मधुवाटिका का प्रबंधन:
शरद ऋतु में अधिक ठंढ पड़ती है जिसके फल स्वरूप तापमान 10° या 20° सेन्टीग्रेट से निचे तक चला जाता है। इसीलिए मौन गृहों को ऐसे स्थान पर रखना चाहिये। जहाँ जमीन सुखी हो तथा दिन भर धुप रहती हो फल स्वरूप मधुमक्खियाँ अधिक समय तक कार्य करेगी अक्टूबर में यह देख लेना अति आवश्यक कि रानी स्वस्थ हो तथा एक साल से अधिक पुरानी तो नही है यदि ऐसा है तो वंस को नई रानी दे देना चाहिये। ऐसे क्षेत्र जहाँ शीतलहर चलती है तो शीतलहर प्रारम्भ होने से पूर्व ही यह निश्चित कर लेना चाहिये कि मौन गृह में उचित मात्रा में शहद और पराग है या नही।
बसंत ऋतु में मौन प्रबंधन:
बसंत ऋतु मधुमक्खियों और मौन पालको के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। इस समय सभी स्थानों में प्रयाप्त मात्रा में पराग और मकरंद उपलब्ध रहते है जिससे मौनों की संख्या दुगनी बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप शहद का उत्पादन भी बढ़ जाता है। बसंत ऋतु प्रारम्भ में मौन वंशो को कृत्रिम भोजन देने से उनकी संख्या और क्षमता बढती है। जिससे अधिक से अधिक उत्पादन लिया जा सके।
ग्रीष्म ऋतु में मौन प्रबंधन:
जिन क्षेत्रो में तापमान 40° सेंटीग्रेट से उपर तक पहुच जाता हो वहां पर मौन गृहों को किसी छायादार स्थान पर रखना उचित होगा। और दिन में कम से कम दो बार बोरी या छत्ते पर रखे चावल के भूसे पर पानी छिड़कें। क्योंकि मधुमक्खियों को साफ और बहते हुए पानी की आवश्यकता होती है। इसलिए पानी को उचित व्यवस्था मधुवातिका के पास होना अति आवश्यक है मौनो को लू से बचने के लिए छ्प्पर का प्रयोग करना चाहिये।
वर्षा ऋतु में मौन प्रबंधन:
मधुमक्खी पालन स्थल में नमी से बचें। उचित जल निकासी प्रदान करना चाहिए बारिश में जब मधुमक्खियां छत्ते तक ही सीमित रहती हैं, तो चीनी की चाशनी खिलाएं ,गंधक पाउडर छिडके तथा पुराने काले छत्ते एवं फफूंद लगे छत्तों को निकल कर अलग कर देना चाहिए।
मधुमक्खी चारागाह:
पौधे जो अमृत के अच्छे स्रोत हैं जैसे इमली, मोरिंगा, नीम, प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा, साबुन का पेड़, ग्लाइरिसिडिया मैक्युलाटा, नीलगिरी, ट्रिबुलस टेरेस्ट्रिस और पंगम। पौधे जो पराग के अच्छे स्रोत हैं, जैसे ज्वार, शकरकंद, मक्का, तंबाकू, बाजरा जैसे कुम्बू, तेनाई, वरगु, रागी, नारियल, गुलाब, अरंडी, अनार और खजूर। पौधे जो पराग और अमृत दोनों के अच्छे स्रोत हैं वे हैं केला, आड़ू, खट्टे फल, अमरूद, सेब, सूरजमुखी, जामुन, कुसुम, नाशपाती, आम और बेर इत्यादि।
मधुमक्खी परिवार स्थानान्तरण: मधुमक्खी परिवार का स्थानान्तरण करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए
1- स्थानांतरण की जगह पहले से ही सुनिश्चित कर लेना चाहिए।
2- स्थानांतरण की जगह दुरी पर हो तो मौन गृह में भोजन की प्रयाप्त व्यवस्था कर लेना चाहिए।
3- प्रवेश द्वार पर लोहे की जाली लगाना चाहिए तथा जिन छत्तों में शहद अधिक हो उसे निकल लेना चाहिए और बक्सो को बोरी से कील लगाकर सील कर देना चाहिए।
4- बक्सों को गाड़ी में लम्बाई की दिशा में रखना चाहिए तथा स्थानांतरण करते समय इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि परिवहन में कम से कम झटके लें ताकि छत्ते में क्षति न पहुचे।
5- गर्मी में स्थनान्तरण करते समय बक्सों के उपर पानी छिडकते रहना चाहिए।
6- नई जगह पर बक्सों को लगभग 8-10 फुट की दुरी पर तथा मुंह पूर्व -पश्चिम दिशा की तरफ रखना चाहिए।
7- पहले दिन बक्सों का निरिक्षण न करें दुसरे दिन धुंआ देने के बाद मक्खियाँ की जाँच करनी चाहिये।
शहद निष्कासन व प्रसंस्करण के तरीके:
मधुमक्खी पालन का मुख्य उद्देश्य शहद एवं मोम उत्पादन करना होता है। बक्सों में स्थित छत्तों में 75-80 प्रतिशत कोष्ठ मक्खियों द्वारा मोमी टोपी से बंद कर देने पर उनसे शहद निकाला जाए इन बंद कोष्ठों से निकाला गया शहद परिपक्व होता है। मधु निष्कासन का कार्य साफ मौसम में दिन में छत्तों के चुनाव से आरम्भ करके शाम के समय शहद निष्कासन प्रक्रिया आरम्भ करना चाहिए। अन्यथा मखियाँ इस कार्य में बाधा उत्पन्न करती है। शहद से भरे छत्तों को बक्से में रख कर ऐसे सभी बक्सों का कमरे या खेत में बड़ी मच्छरदानी के अंदर रखकर मधु निष्कासन करना चाहिए। अब छीलन चाकू को गर्म पानी में डुबोकर एवं कपडे से पोंछकर मोम की टोपियाँ हटा देनी है। छत्ते को शहद निकलने वाली मशीन में रखकर यंत्र को घुमाकर कर बारी बारी से छत्तों को पलटकर दोनों ओर से शाहद निकला जाता है। इस शहद को मशीन से निकलकर टंकी में लगभग 48 घंटे तक पड़ा रहने देते है। ऐसा करने पर शहद में मिले हवा के बुलबुले तथा मोम इत्यादि शहद की उपरी सतह पर तथा मैली वस्तुएं पेंदी पर बैठ जाती है। शहद को पतले कपडे से छानकर स्वच्छ एवं सुखी बोतलों में भरकर बेचा जा सकता है।
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