Dinesh Damathia
23-03-2022 12:49 PMअच्छी खेतीबाड़ी की बुनियाद कृषि उत्पाद की कुशल मंडीकारी होता है। अपनी फसल को मर मर कर पैदा करने वाला किसान मंडीकरण का समय आने पर बिचोलियों के जाल में फस जाता है और कोड़ियों के भाव अपनी सारी फसल बेच देता है जिस से उस की ज़्यादा मुनाफा बिचोलिया काम जाता है और इस से अपनी बेचीं हुई फसल को पैदा करने में किया खर्च भी उसे पूरी तरह से वापिस नहीं मिलता। इस स्थिति में किसान को अपनी फसल की मंडिकारी करने के लिए कुछ नए ढंग तरीके अपनाने होंगे। जब तक किसान अपने कृषि उत्पादन को बेचने के लिए बिचोलियों पर निर्भर रहेगा वो इसी तरह से नुकसान झेलता रहेगा। इस सब से बचने के लिए ये ही बस एक मात्र तरीका है के किसान अपने कृषि उत्पाद को खुद तराज़ू और बट्टे उठा कर मंडी में और सीधे खपतकार के पास जा कर बेचे। इसके लिए उसे अपनी मानसिकता को बदलना होगा। इस काम को करने के लिए किसान को अपनी अंदर पैदा हुई शर्म और झिझक को पूरी तरह से त्यागना होगा ताकि खेत में से पैदा हुए कृषि उत्पादन को वो सीधा खपतकार तक जा कर बेच सके। इस तरह करने में जो अन्तर बना हुआ है वो ख़तम हो सकता है। ऐसा करने से एक तो आढ़तियों और बिचोलियों से किसान का पीछा छूट सकता है और दूसरा ग्राहक को अच्छा उत्पादन और किसान को अपनी कृषि वस्तुओं का सही भाव मिलेगा।
गेहूं, धान, मक्की, गन्ना, कपास आदि पंजाब की प्रमुख फसलें हैं। इन सब फसलों के उत्पाद की कीमत तो कुछ हद तक सरकार ने सुनिश्चित किया हुआ है परंतु ज़्यादातर सब्ज़ियों, दालों, और बहुत से कृषि उत्पादन को बेचने के लिए किसान को खुद ही नज़दीकी मण्डियों और सीधे ग्राहक तक जा कर उनका मंडीकरण करना चाहिए और अपनी जिनस का सही मूल्य ले कर अपने मुनाफे में बढ़ोतरी करनी चाहिए। इस के लिए किसान को अधिक सतर्क होने की आवश्कता है। हो सके तो एक सूझवान किसान अपनी कृषि जिंसों की प्रोसेसिंग, पैकिंग और डिबाबंदी कर आसानी से सीधा ग्राहक को बाजार से ज़्यादा कीमत पर बेच सकता है। किसान को अलग अलग मण्डियों में कृषि उत्पादन के चल रहे भावों का भी पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। इस से वो अपनी पहुँच के अनुसार किसी भी मंडी में जा कर अपनी कृषि जिनस को बेच बेच सकता है। मंडियों जानने के लिए किसान के आस पास बहुत से साधन हैं जैसे टेलीविज़न, रेडियो, अख़बार, मैगज़ीन, इन्टरनेट आदि जिनके ज़रिये वो अपने कृषि उत्पाद के लिए सही कीमत व सही मंडी का चुनाव कर सकता है।
मंडीकरण की समस्या को और घटाने के लिए किसान को गेहूं और धान के फसली चक्र में से बहार निकलना होगा। के इलावा मक्की, सूरजमुखी, गन्ना, दालें, मौसमी सब्ज़ियां आदि को उगा कर खुद ग्राहकों को बेचनी चाहियें जिस से किसान को अपनी की हुई मेहनत और पैदा की हुयी जिन्स की पूरी कीमत मिल सके। इस के इलावा फलों, फूलों वन कृषि के अंतर्गत पोलुलर, सफेदा, सागवान आदि पेड़ लगा कर भी अपनी आमदन में बढ़ोतरी की जा सकती है। इस के इलावा कुछ कृषि सहायक धन्दे हैं जैसे पशु पालन, मुर्गी पालन, सूअर पालन, मछली पालन, बकरी पालन, शहद मक्खी पालन आदि। औरतें भी कृषि में पुरषों की आमदन को बढ़ने में पूरा सहयोग कर सकती हैं। फलों और सब्ज़ियों का आचार चटनियाँ जूस आदि तयार करके भी सीधा ग्राहक को बेच जा सकता है और अछि कमाई की जा सकती है।
पंजाब में बहुत से ऐसे किसान हैं जो इस तरह कर रहे हैं और कामयाब भी हो रहे हैं। पंजाब का एक किसान शेर सिंह जो गांव मीरपुर सैदां, जालंधर का रहने वाला है उसने अपनी 4 एकड़ ज़मीन में मौसमी सब्ज़ियां, हल्दी, मिर्च, दालें आदि बीजता है और प्रोसेसिंग कर सीधा ग्राहक को बेच रहा है। अपनी मोटर साइकिल के पीछे लकड़ी की एक गाड़ी जोड़ कर और तराज़ू बट्टे ले कर वो लोगों के घर घर जा कर अपना ये सब सामान बेचता है। इस काम में उसका सारा परिवार उसका पूर्ण सहयोग करता है और वो अपनी इस नई कोशिश से बहुत संतुष्ट भी है। ऐसे ही तरसेम सिंह और दविन्द्र भटोआ गांव नीला नालोआ, होशियारपुर ने मिल कर इस काम को शुरू किया और अपनी ज़मीन पर सब्ज़ियों, चावल, आटा, शक्कर, गुड़ आदि सामान को प्रोसैस और पैक करके एक वैन में घर घर जा कर बेचते हैं और इस से इनकी आमदन पहले से बहुत बढ़ गई है। इसी तरह से गोबिन्द नगर, मलसियां शाहकोट जालंधर का एक किसान गुरप्रीत सिंह जिसने अपने घर में ही एक दुकान बनाई है जिसमे वो अपनी कृषि उत्पाद को बेचता है। खरबूजा तरबूज़ खीरा इन चीज़ों की बिक्री से इसने शुरुआत की थी आज ये और भी बहुत सी चीज़ें ग्राहक को सीधे बेचता है एयर अच्छी कमाई कर रहा है। अब 15 एकड़ ज़मीन पर ये जो कुछ भी बोता है उसे सीधा ही ग्राहकों को बेचदेता है और अब इसे अपना कृषि उत्पाद लेकर मंडी में बेचने के लिए नहीं लेजाना पड़ता। इस काम को करने की लिए शुरू में कुछ दिक्कत लगती है मगर धीरे धीरे लोगों के संपर्क में आने से ये काम बहुत आसान हो जाता है। किसान को अपनी फसल बोने में अगर बहुत फखर होता है तो उसे अपने कृषि उत्पाद को बेचने में वो शर्म क्यों महसूस करता है? वो चाहे तो अपनी जिन्स का एक एक पैसा अपनी जेब में डाल सकता है और अपनी आर्थिकता को मजबूत कर सकता है।
दिनेश दमाथीआ
जालंधर (पंजाब)
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