कृषि रसायनों के प्रयोग में बरते सावधानी वरना होगा भारी नुकसान

Sanjay Kumar Singh

21-08-2023 10:58 AM

कृषि रसायनों के प्रयोग में बरते सावधानी वरना होगा भारी नुकसान 

प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह
सह निदेशक अनुसंधान
विभागाध्यक्ष,पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय समन्वित फल अनुसंधान परियोजना  
डॉ राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर बिहार

भारत के कृषि क्रान्ति मे सवसे महत्वपूर्ण योगदान रासायनिक दवाओं द्वारा पौध संरक्षण का है। पौधों को कीट - व्याधियों से बचाने के लिए प्रचलित विभिन्न उपायों मे से दवाओं द्वारा उन्हें मारकर उनसे पौधों को बचाना एक प्रमुख उपाय है। वैज्ञानिकों के अथक प्रयासों के फलस्वरूप विभिन्न कृषि रक्षा दवाओं का विकास एवं प्रसार हुआ और पौधा संरक्षण में एक नई क्रान्ति की शुरूआत हुई, परिणामस्वरूप आज किसान पौधा संरक्षण में किए जाने वाले कीट एवं व्याधि नाशक दवाओं से पूर्व परिचित है। इन दवाओं के प्रयोग करने से वे ज्यादा से ज्यादा उपज प्राप्त करते है, परन्तु ये दवाए जहरीली होती हैं। सचमुच कृषि रक्षा दवाए रासायनिक विष है और सही ढंग से व्यवहार न करने से इनके खतरनाक परिणाम होते हैं। ये जहरीली दवाए किसी व्यक्ति के शरीर में उनकी सहन शक्ति से ज्यादा चली जाय तो उस व्यक्ति की मौत भी हो सकती है। ये जहरीली दवाए अनियमितता के कारण हमारी फसलों पर अवशेष  के रूप में बच जाती है जो हमारे जानवरों के शरीर में चारा द्वारा चली जाती है और मात्रा की अधिकता होने पर जानवरों के लिए घातक सिद्ध हो सकती है।

आये दिन प्रायः यह देखा जाता है कि यदा कदा विभिन्न अस्पतालों में पोस्टमार्टम रिपोर्ट बताती है कि जहरीली दवा के प्रयोग से मृत्यु हुई है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि व्यक्ति के असावधानी से जहरीली दवाओं के डिब्बे रिसते रहते है और यदि वह डिब्बा अन्न या अन्य खाने वाले पदार्थ के साथ मिल जाती है तो ऐसी परिस्थितियाँ भी मौत का कारण बनती है। यह भी पाया गया है कि जहरीली दवा के खाली डिव्वे जो घरेलू काम मे असावधानी के कारण प्रयोग मे लाये जाते है मृत्यु के कारण हो सकते है।
 
 मुख्य रूप से जब इन कृषि रक्षा दवाओं का प्रयोग कृषि कार्य हेतु किया जाता है तो अनियमितता के कारण ये खतरनाक असर दिखलाती है। अगर नियमितता नही बरती गई तो ये दवाए छिड़काव या भुरकाव के समय मुँह त्वचा अथवा साँस के जरिये शरीर के अन्दर प्रवेष कर जाती है इन कृषि रक्षा दवाओं का जहरीला  प्रभाव एक बार शरीर के आन्तरिक भाग में दवाओं का सम्पर्क होने पर अथवा दवा की थोड़ी थोड़ी मात्रा करके शरीर में बहुतायत मात्रा में जमा होने पर भी होता है। जहर के असर होने पर सिर में दर्द, कमजोरी, तेजी से उल्टी साँस चलना, बेहोशी, आँखों का बन्द होना, पेट में खराबी, भूख न लगना, मुँह में झाग आना इत्यादि लक्षण पाये जाते है। 

अतः इन दवाओं के खतरनाक असर से बचाव हेतु इनके प्रयोगों में सावधानियों का पालन करना अति आवश्यक  है, जो कि निम्न है।

  • दवाओं को खरीदने से पहले उसके टीनों या डब्बों की शील को अच्छी तरह से देख लें कि  दवा कही  बाहर तो नही निकल रही है और अगर शील टूटी हो तो अथवा दवा बाहर निकल रही हो तो उसे नही खरीदें।
  • कीटनाशक दवाओं की बोतलों, डिब्बों या लिफाफों पर उनके इस्तेमाल के आवश्यक  निर्देश लिखे होते है। निर्देशों का अक्षरशः पालन करना चाहिए।
  • दवा के टिनों या डब्बों को खोलने के लिए घर में फल या सब्जी काटने वाले चाकू आदि का प्रयोग कदापि न करें तथा नही डब्बे को खुले हाथ से खोलने की चेष्टा करें। 
  • दवा जिस बर्तन मे हो उसी बर्तन  मे रहने देना चाहिए क्योंकि इससे यह सुविधा होगी कि इस्तेमाल करते समय दी गई हिदायतों को पढ़ा जा सकता है।
  • उचित मात्रा में दवा लेकर घोल बनाना या भुरकाव को भुरकाव यंत्र में भरना चाहिए तथा यह ध्यान रखना परमावश्यक है ।
  • खेत मे दवा प्रयोग करते समय किसी भी तरह की खाद्य सामग्री न खाँय। बीड़ी, सिगरेट अथवा पान वगैरह से भी परहेज रखें। 
  • दवाओं के प्रयोग के समय हर हालत मे नाक पर कपड़ा बाँध लेनी चाहिए ताकि दवा का जहरीला असर साँस नली से शरीर के अन्दर न  जा सके।
  • दवाओं के प्रयेाग के समय आँख पर चश्मा  लगा लेनी चाहिए ताकि आँख में दवा न जा सके।
  • दवाओं के प्रयोग के बाद हाथ पैर एवं मुँह अच्छी तरह से साबुन से धोले और सम्भव हो तो कपड़े भी बदल लें। छोड़े हुए कपड़े तुरन्त धुलने के लिए दे दें।
  • दवा छिड़काव या भुरकाव का कार्य प्रातः अथवा शांयकाल में ही करें, तथा दवा का छिड़काव या भुरकाव उस समय न करें जब हवा तेज चल रही हो । इसके अतिरिक्त हवा के विपरीत दिशा  मे भी छिड़काव या भुरकाव न करें।
  • दवा छिड़कने या भुरकने के बाद में यंत्र को अच्छी तरह से धोकर सुखा लें, जिससे की उसका सारा पानी निकल जाय।
  • दवा प्रयोग के बाद अगर डब्बे में दवा बच गई हो, तो उसे अच्छी तरह से बन्द करके आलमारी मे बन्द ताले के अन्दर रखना चाहिए या फिर एसी जगह रखें जहाँ बच्चे या जानवर आदि न पहुँच सके।
  • अगर दवा समाप्त हो गई हो तो टिन या डब्बे को तोड़कर या नष्ट करके जमीन के अन्दर गाड़ दें। 
  • अगर हाथ पाव या शरीर के ऐसे अंग जो कि कपड़े से ढ़के न हो और वे कटे हो या उनमें घाव हो तो उस व्यक्ति को चाहिए कि दवा का छिड़काव या भुरकाव न करें। 

इन तमाम सावधानियों के बावजूद असंयोगवश इन दवाओं का जहर शरीर में पहुँच जाय तो प्राथमिक उपचार परमावश्यक है। रोगी को सर्वप्रथम दवा प्रयोग करने वाले स्थान से अलग कर दें। शरीर में गर्मी हो इसके लिए आवश्यक है कि उसके शरीर पर कपड़े या कम्बल रखें। पहने हुए कपड़े को ढीला कर दें। जिस अंग पर दवा पड़ गई हो उसे अच्छी तरह साबुन से घोलें। अगर कीटनाशी दवा खा लिया हो तो उस हालत में रोगी को उल्टी करावें। उल्टी कराने के लिए एक ग्लास पानी में दो चाय चम्मच खाने वाला नमक मिला कर रोगी को पिला दें। अगर रोगी सादा पानी या दूध पी सके तो उसे  पीने के लिए दें। साँस लेने मे अगर कठिनाई हो तो कृत्रिम श्वास क्रिया प्रारम्भ करनी चाहिए।

अगर रोगी को नाक द्वारा कीटनाशी दवा का प्रभाव हो गया हो तो उसे इस हालत मे सर्व प्रथम शुद्ध हवा में रखें। घर की खिड़की दरवाजा आदि खोल दे तथा रोगी को कम्बल से ढंक दें। हर परिस्थिति में रोगी को अल्कोहलिक पदार्थ यानी शराब जैसे पदार्थ से परहेज रखे और शीघ्र उचित इलाज हेतु डाक्टर से परामर्श  करें।

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