Sanjay Kumar Singh
20-04-2023 04:23 AMप्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह
प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना एवं
सह निदेशक अनुसन्धान
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय , पूसा ,समस्तीपुर, बिहार
केला की विभिन्न किस्में और जलवायु परिस्थितियों के आधार पर, केला का गुच्छा (बंच) निकलने से लेकर पूर्ण परिपक्वता और गुच्छों की कटाई तक 100-120 दिन लगते हैं। केला के फलों की परिपक्वता का आकलन कैसे किया जाय, इसके लिए निम्न बातों का ध्यान रखते है यथा छिलके का रंग गहरे हरे से हल्के हरे रंग में बदलना, फलों पर बने कोणीयता का गायब होना। फलों की नोक से पुष्प अवशेषों को पूरा सुखने और छोड़ने इत्यादि। परिपक्व फलों को एक तेज चाकू से डंठल सहित काटा जाना चाहिए ताकि आसानी से हैंडलिंग और परिवहन में आसानी हो। कटे हुए फलों को सीधे मिट्टी पर रखने से बचना चाहिए, क्योंकि इससे फलों को क्षति होती है और फल खराब हो जाते हैं। केला के फल के गुच्छे काटने के बाद, फलों को केले के पत्तों पर रखा जाना चाहिए ।कटाई एवं परिवहन के समय ध्यान देना चाहिए की फलों को कम से कम या नही के बराबर घाव पहुचे। गुच्छों को संभालने और परिवहन करते समय उचित देखभाल की आवश्यकता होती है, फलों को कोई क्षति नहीं होने पर, बाजारों में फल का बेहतर कीमत मिलता है। केला बहुत ही फायदेमंद होता है. इसमें काफी ज्यादा मात्रा में पौटेशियम होता है जो कि ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में मदद करने में सहायक होता है. इसमें भरपूर मात्रा में फाइबर होता है यह पेट के लिए काफी बढ़िया फल माना जाता है, यह एक तरह से नेचुरल एंटेसिड है जो कि पेट को अल्सर से भी बचाता है.
फलों का पकना एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा फल अपने वांछित स्वाद, गुणवत्ता, रंग, रंग और प्रकृति और अन्य बनावट गुणों को प्राप्त करते हैं। पकना रचना में परिवर्तन से संबंधित है यानी स्टार्च का चीनी में रूपांतरण। केला के फलों के पकने के लगभग सभी तरीके, या तो पारंपरिक या आधुनिक रासायनिक तरीके हैं, जो अपने गुणों और अवगुणों के साथ आते हैं। उचित पकने के लिए किसानों के लिए आज कई सरल तकनीकें और विधियाँ उपलब्ध हैं। प्राकृतिक परिस्थितियों में, एथिलीन, पौधे द्वारा उत्पादित एक पकने वाला हार्मोन पकने की प्रक्रिया में एक प्रमुख शारीरिक भूमिका निभाता है।
फलों को पकाने के लिए एथिलीन का उपयोग एकमात्र सुरक्षित और विश्वव्यापी स्वीकृत विधि है, जो कि नियंत्रित तापमान और सापेक्ष आर्द्रता की स्थिति के तहत पकने के लिए एक प्राकृतिक हार्मोन है। एथिलीन एक प्राकृतिक हार्मोन होने के कारण फलों के उपभोक्ताओं के लिए कोई स्वास्थ्य खतरा नहीं है। यह एक डी-ग्रीनिंग एजेंट है, जो छिलके को हरे रंग से परिपूर्ण पीले (केले के मामले में) में बदल सकता है और फलों की मिठास और सुगंध को बनाए रख सकता है, इस प्रकार फल में मूल्यवर्धन संभव है क्योंकि यह अधिक आकर्षक लगता है। पतला एथिलीन गैस मिश्रण का उपयोग शुद्ध एथिलीन का उपयोग करने की तुलना में अधिक सुरक्षित है। एक लीटर पानी में एथ्रल सॉल्यूशन के 1 मिली में कच्चे केला के फलों को डुबो देते हैं और उसे सूखा देते हैं। इस विधि में, फल दो दिनों के भीतर पक जाएंगे। दूसरी विधि है जिसमे 10 मिलीलीटर एथ्रल और 2 ग्राम सोडियम हाइड्रॉक्साइड छर्रों को एक चौड़े मुंह वाले बर्तन में पांच लीटर पानी में मिलाया जाता है। इस बर्तन को पकाने वाले फलों के पास पकने वाले कक्ष के अंदर रखा जाता है और कमरे को एयर टाइट किया जाता है। कमरे का लगभग एक तिहाई हिस्सा हवा के संचलन के लिए शेष क्षेत्र को छोड़कर फलों से भरा होता है। फलों का पकना लगभग 12 से 24 घंटों में हो जाता है। इस कमरे में आम पपीता इत्यादि को भी रख क़र पकाने से रसायन की लागत को कम किया जा सकता है।
कागज के थैले ( पेपर बैग) के अंदर कच्चे केलों को रख दें, केले में गैस होती है जो कि बैग के अंदर उन्हें पकाने का कार्य करती है। इसके लिए आप सभी केलों को किसी भी कपड़ें में लपेटकर कागज के बैग में आसानी से रख देंगे तो वह जल्दी ही पक जाएंगे। केले में एथलीन गैस होती है जिसकी मदद के सहारे वह आसानी से पक जाते है। यह गैस केले के ऊपर जो डंठल होता है उसके सहारे निकलती है। अगर आप यह चाहते है कि केला जल्दी न पके तो आप इस डंठल को पैपर बैग से रैप कर बंद कर सकते है। अगर आप केले को जल्द से जल्द पकाना चाहते है तो आप इनको एक साथ ही रखें। अलग-अलग रखने से यह केले नहीं पकेगे। इसीलिए केलों को आप गुच्छों में रखकर ही पकाएं। सभी केलों को एक साथ फॉयल पेपर में लपेटकर रख देने से केले आसानी से पक सकते है। इस प्रक्रिया में केले 24 घंटे के अंदर ही पूरी तरह से पककर तैयार हो जाएंगे। कच्चे केला के साथ यदि कुछ पके फलो को रख कर फल को पकाएंगे तो यह प्रक्रिया और जल्दी संपन्न होगी। सही परिपक्वता पर काटे गए केला अपने आप गर्मी के मौसम में 3 से 4 दिन में बिना किसी रसायन के पक जाते है।
कैल्शियम कार्बाइड से कभी भी किसी भी फल को नही पकाना चाहिए। औद्योगिक ग्रेड के कैल्शियम कार्बाइड में आमतौर पर आर्सेनिक और फास्फोरस होते हैं, इस रसायन का उपयोग अधिकांश देशों में अवैध है। भारत में भी, फूड एडल्ट्रेशन से बचाव अधिनियम धारा 44 एए के अनुसार कैल्शियम कार्बाइड के उपयोग पर सख्त प्रतिबंध है। कैल्शियम कार्बाइड, एक बार पानी में घुल जाने पर, एसिटिलीन का उत्पादन करता है जो एक कृत्रिम पकने वाले एजेंट के रूप में कार्य करता है। माना जाता है कि एसिटिलीन मस्तिष्क को ऑक्सीजन की आपूर्ति को कम करके तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है। आर्सेनिक और फ़ॉफ़ोरस विषैले होते हैं और एक्सपोज़र गंभीर स्वास्थ्य खतरों का कारण बन सकता है।
कैल्शियम कार्बाइड क्या है?
कैल्शियम कार्बाइड एक खतरनाक और अति नुकसानदायक रसायन है। कार्बाइड से पके फल खाने पर मानव स्वास्थ्य पर कई हानिकारक प्रभाव डालते हैं। कैल्शियम कार्बाइड से पकने वाले फल अत्यधिक नरम होते हैं लेकिन स्वाद में कम होते हैं और इनकी शेल्फ लाइफ कम होती है। ऐसे फल एक समान आकर्षक सतही रंग विकसित कर सकते हैं, लेकिन अंदर के ऊतक पके नहीं होंगे या हरे या कच्चे रह सकते हैं।
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