Sanjay Kumar Singh
12-07-2023 02:51 AMप्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह
सह निदेशक अनुसन्धान
डॉ राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय , पूसा , समस्तीपुर, बिहार
बिहार में हर वर्ष सामान्यतः 17-18 जून के आस पास मानसून सक्रिय हो जाता था।इस वर्ष के लिए मौसम विभाग के वैज्ञानिकों के अनुसार मौसम 2 दिन पूर्व सक्रिय होने का अनुमान था, लेकिन मानसून के कमजोर पड़ने की वजह से मानसून आजतक ठीक से सक्रिय नहीं हो सका है। इस समय पूरे प्रदेश में अत्यधिक गर्मी और उमस की वजह से लोग अत्यधिक परेशान है, उन्हें झमाझम बारिश का इंतजार हैं। मई के महीने में अच्छी वर्षा की वजह से किसान खरीफ की फसलों की तैयारी पहले से कर रक्खा था ,लेकिन इसके विपरित जुलाई महीने में अभी तक बिल्कुल सूखा है एवं वारिश अभी दूर दूर तक दिखाई नहीं दे रही है। खरीफ की मुख्य फसल धान है , जिसकी नर्सरी किसान पहले ही डाल दिया था, उसे पूरा विश्वास था कि जुलाई में निश्चित मानसून पूरी तरह से सक्रिय हो जाएगा। लेकिन अभी तक वारिश नही होने से किसान धान की रोपाई नही कर पाए है, जबकि इसके विपरित कुछ किसान ट्यूबेल से सिंचाई करके रोपाई कर दिए है। इन दोनों ही परिस्थितियों में किसान की धान की फसल में विकास नही हो रहा है, उसे बचाना मुश्किल हो गया है। पच्चीस दिन से पुरानी नर्सरी के पौधे (बिचड़े) से रोपाई करने से कल्ले कम निकलते है, जिससे प्रति इकाई क्षेत्र में पौधों की संख्या घट जाती है, जिससे उपज में भारी कमी आती है। इस समय मौसम की इस बेरुखी की वजह से बिहार में किसान धान की खेती को लेकर चिंतित है। बिहार के किसानों को सलाह दी जाती है, मौसम के सक्रिय होने का इंतजार करें, इसके बाद उन्हें धान की रोपाई करनी चाहिए, लेकिन किसी भी परिस्थिति में कभी भी 35 दिन से ज्यादा पुराने बिचड़े से (Seedlings) धान की रोपाई नहीं करनी चाहिए, उन्हें धान की सीधी बुआई करने की सलाह दी जाती है। अगहनी धान की प्रजातिया जैसे, राज श्री , राजेन्द्र महसूरी , स्वर्णना सब 1 के 40 दिन पुराने बिचड़े को भी लगा सकते हैं। सामान्यतः धान को 15 x 20 सेमी पर लगाते है, लेकिन जब देर से लगाना हो तो 15 x 15 सेमी पर लगाना चाहिए, क्योकि देर से लगाने पर कल्ले कम निकलते है एवं प्रति इकाई क्षेत्र कम पौधे होने से उपज में भारी कमी आती है। देर से जब धान लगाना हो तो कम अवधि की प्रजातियों का चयन करना चाहिए जो 90 से 110 दिन में तैयार होती हो जैसे, प्रभात , नीलम, अभिषेक, सहभागी इत्यादि प्रजातिया प्रमुख है, इनकी रोपाई करने की बजाय सीधी बुआई करने की सलाह दी जाती है।
इस तरह की परिस्थिति उत्पन्न होने की अवस्था में दलहनी फसलों को लगाने की सलाह दी जाती है जैसे, अरहर, उड़द , मुंग लेकिन इन फसलों को उसी जगह लगाना चाहिए, जहां जल निकास बहुत ही अच्छा हो। इसके अलावा मक्का एवं तिल भी लगाना अच्छा रहेगा। आजकल किसानों को मोटे अनाज जैसे, ज्वार , बाजरा ,सावा, मडुआ, कवनी से भी बहुत अच्छा फायदा हो रहा है, अतः इस तरह के वातावरण में इन फसलों को लगाकर किसान अच्छा फायदा कमा सकते है। ठीक से देखभाल करने से उपज एवं लाभ में कोई कमी नहीं होती है।
जिन किसानों ने आम, लीची ,अमरूद, केला, आवला, कटहल इत्यादि फल के नए बाग लगाना चाहते है, उन्हें भी सलाह दी जाती है की मानसून के सक्रिय होने के बाद ही नए बाग लगाए। जिन किसानों ने पपीता के पौधे अभी हाल हाल में ही रोपाई है ,उन्हें सलाह दी जाती है की लगातार प्रतिदिन हल्की हल्की सिंचाई करें संभव हो तो अत्यधिक धूप से बचाने का भी उपाय करें।
इस समय तक अधिकांश आम की तुड़ाई हो चुकी है। आम के पेड़ की रोगग्रस्त एवं सुखी टहनियों को तेज चाकू से काट देना चाहिए। इसके बाद खेत से खरपतवार निकलने के बाद 10 वर्ष या 10 वर्ष से बड़े आम के पेड़ों (वयस्क पेड़) के लिए 500 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फॉस्फोरस और 500 ग्राम पोटैशियम तत्व के रूप में प्रति पेड़ देना चाहिए । इसके लिए यदि हम लगभग 550 ग्राम डाई अमोनियम फास्फेट (DAP) ,850 ग्राम यूरिया एवम् 750 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश प्रति पेड़ देते है तो उपरोक्त पोषक तत्व की मात्रा पूरी हो जाती है। इसके साथ 20-25 किग्रा खूब अच्छी तरह से सड़ी गोबर या कम्पोस्ट खाद भी देना चाहिए। यह डोज 10 साल या 10 साल के ऊपर के पेड़ (वयस्क पेड़) के लिए है। यदि उपरोक्त खाद एवम् उर्वरकों की मात्रा को जब हम 10 से भाग दे देते है और जो आता है वह 1साल के पेड़ के लिए है।एक साल के पेड़ के डोज में पेड़ की उम्र से गुणा करे, वही डोज पेड़ को देना चाहिए। इस तरह से खाद एवम् उर्वरकों की मात्रा को निर्धारित किया जाता है। वयस्क पेड़ को खाद एवं उर्वरक देने के लिए पेड़ के मुख्य तने से 2 मीटर दुरी पर 9 इन्च चौड़ा एवं 9 इंच गहरा रिंग पेड़ के चारों तरफ खोद लेते है। इसके बाद आधी मिट्टी निकाल कर अलग करने के बाद उसमे सभी खाद एवं उर्वरक मिलाने के बाद उसे रिंग में भर देते है ,इसके बाद बची हुई मिट्टी से रिंग को भर देते है ,तत्पश्चात सिचाई कर देते है।दस साल से छोटे पेड़ की कैनोपी के अनुसार रिंग बनाते है।
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