कैल्शियम कार्बाइड से पकाया गया फल सेहत के लिए काफी हानिकारक, वैज्ञानिक विधि से फलों को पकाए

Sanjay Kumar Singh

14-04-2023 10:51 AM

प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह 
प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना एवं
सह निदेशक अनुसन्धान 
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा ,समस्तीपुर, बिहार 

फलों का पकना एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा फल अपने वांछित स्वाद, गुणवत्ता, रंग और प्रकृति और अन्य बनावट गुणों को प्राप्त करते हैं। पकने की प्रक्रिया में स्टार्च का चीनी में रूपांतरण हो जाता है।

फलों को पकाने के लगभग सभी तरीके, या तो पारंपरिक है या आधुनिक रासायनिक तरीके हैं, जिसके अपने गुण और अवगुण हैं। प्राकृतिक परिस्थितियों में, एथिलीन, पौधे द्वारा उत्पादित एक पकने वाला हार्मोन है जो पकने की प्रक्रिया को उत्प्रेरित करने के लिए घरों में प्रचलित एक सरल तकनीक है। हवा बंद डब्बे (एयर टाइट कंटेनर) के अंदर पके फलों के साथ कच्चे पकने वाले फलों को एक साथ रखना। चूंकि पहले से ही पके फल एथिलीन को छोड़ते हैं, इसलिए पकने की प्रक्रिया तेज हो जाती है। एक अन्य तरीका यह है कि फलों को हवा बंद कमरे (एयर टाइट रूम) के अंदर पकने के लिए रखा जाए और धुआं छोड़ा जाय, जिससे पकने की प्रक्रिया तेज हो जाती है। धुआं एसिटिलीन गैस का उत्सर्जन करता है। कई फल व्यापारी इस तकनीक का पालन करते हैं, खासतौर पर केले और आम जैसे, खाद्य फलों में एक समान पकाने के लिए। लेकिन इस पद्धति का मुख्य दोष यह है कि फल एक समान रंग और स्वाद प्राप्त नहीं करते हैं। इसके अलावा, उत्पाद पर धुएं की गंध इसकी गुणवत्ता को प्रभावित करती है। धान की भूसी या गेहूं के भूसे को एक समान फैला क़र उस पर फलों को फैलाना तथा इसी से ढक कर पकाना भी एक विकल्प है।

फल को पकाने का अन्य विकल्प यह है की 1 लीटर पानी में एथ्रल घोल की 1 मिली मात्रा  में कच्चे  फलों को डुबा कर निकलने के बाद, उसे सूखा लेते हैं। फल को बिना एक दूसरे को छूये अखबार पर फैला क़र ऊपर से उसे एक पतला सूती कपड़ा से ढक दिया जाता है। इस विधि में, फल दो दिनों के भीतर पक जाता है। एक सरल और हानिरहित तकनीक यह है भी है की 10 मिली लीटर एथ्रल और 2 ग्राम सोडियम हाइड्रॉक्साइड के छर्रों को एक चौड़े मुंह वाले बर्तन में पांच लीटर पानी में मिलाया जाता है। इस बर्तन को पकने वाले कच्चे फलों के पास, पकने वाले कक्ष के अंदर रखा जाता है और कमरे को हवा बंद क़र (एयर टाइट) दिया जाता है। कमरे का लगभग एक तिहाई हिस्सा हवा के संचलन के लिए शेष क्षेत्र को छोड़कर फलों से भरा होता है। फल लगभग 12 से 24 घंटों में पक जाते है।

फलों को पकाने के लिए एथिलीन का उपयोग एकमात्र सुरक्षित और विश्वव्यापी स्वीकृत विधि है, जो कि नियंत्रित तापमान और सापेक्ष आर्द्रता की स्थिति के तहत पकने के लिए एक प्राकृतिक हार्मोन है। एथिलीन एक प्राकृतिक हार्मोन होने के कारण फलों के उपभोक्ताओं के लिए कोई स्वास्थ्य खतरा नहीं है। यह एक डी-ग्रीनिंग एजेंट है, जो छिलके को हरे रंग से परिपूर्ण पीले (केले के मामले में) में बदल सकता है और फलों की मिठास और सुगंध को बनाए रख सकता है, इस प्रकार फल में मूल्यवर्धन संभव है क्योंकि यह अधिक आकर्षक लगता है। पतला एथिलीन गैस मिश्रण का उपयोग शुद्ध एथिलीन का उपयोग करने की तुलना में अधिक सुरक्षित है।

भारत में अधिकांश फल व्यापारी औद्योगिक ग्रेड कैल्शियम कार्बाइड से फल पकाते हैं। औद्योगिक ग्रेड कैल्शियम कार्बाइड में आमतौर पर आर्सेनिक और फास्फोरस के होते हैं, और, इस प्रकार, इस उद्देश्य के लिए इस रसायन का उपयोग अधिकांश देशों में अवैध है। भारत में भी, फूड एडल्ट्रेशन से बचाव अधिनियम की धारा एए के अनुसार कैल्शियम कार्बाइड के उपयोग पर सख्त प्रतिबंध है।कैल्शियम कार्बाइड, एक बार पानी में घुल जाने पर, एसिटिलीन का उत्पादन करता है जो एक कृत्रिम पकने वाले एजेंट के रूप में कार्य करता है। माना जाता है कि एसिटिलीन मस्तिष्क को ऑक्सीजन की आपूर्ति को कम करके, तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है। आर्सेनिक और फ़ॉफ़ोरस विषैले होते हैं और एक्सपोज़र गंभीर स्वास्थ्य खतरों का कारण बन सकता है।

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