गाय पालन एक उन्नत व्यवसाय

Vikas Singh Sengar

08-11-2021 03:20 AM

दीपक कुमार सिंह
B.Sc. Agriculture
3rd year
Sec -C
Batch 2019-2023
Shivalik Institute of professional studies,
Dehradun

गायपालन एक उन्नत व्यवसाय है,इसे बड़े या छोटे दोनों पैमाने पर किया जा सकता है। भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुधन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

  • यह स्वरोजगार का एक साधन है,
  • करीब 16% लघु किसानों का आमदनी का स्रोत पशुपालन है।
  • पशुपालन 8.8% रोजगार प्रदान करती है
  • यह 4.11% जीडीपी में योगदान देती है।

बाजार में दूध तथा इससे बनी चीजों की मांग तेजी से बढ़ती जा रही है।इसका इस्तेमाल चाय से लेकर घरेलू पकवान तथा घी,दही,मख्खन,पनीर, मिठाई तथा दवाई के रूप में किया जाता है। गाय का दूध अत्यधिक पौष्टिक तथा सुपाच्य होता है। शिशुओं के विकास के लिए गाय का दूध महत्वपूर्ण होता है।
इन दिनों गौपालन के क्षेत्र में नई नई वैज्ञानिक खोजें की गई है। जिससे कम मेहनत में अधिक लाभ कमा सकते हैं। साथ ही बाछा बाछी को बेच कर अतिरिक्त लाभ कमाया जा सकता है साथ ही गोबर के विभिन्न उपयोग है जैसे जलावन,गोबर गैस प्लांट,गोबर खाद (जो की ऑर्गेनिक खेती का सबसे महत्वपूर्ण अंग है) इत्यादि।
 

गाय के नस्ल
1.    देसी नस्ल

  • साहिवाल

उत्पत्ति- पंजाब,राजस्थान।
यह देसी नस्ल में सबसे अच्छी गाय है यह देखने में सुस्त होती है लेकिन इसमें दूध देने की क्षमता अधिक होती है। यह 300 दिनों के एक बयान में करीब 2200 से 3200 लीटर दूध देती है।

  • रेडसिंधी

उत्पत्ति- पाकिस्तान
यह मध्यम आकार की गाय है। इसका रंग गहरा लाल होता है। चमरी पतली और नरम होती है शरीर पर है छोटे-छोटे बाल होते हैं। मध्यम आकार के कान नीचे की तरफ लटके होते है। सिंह सिर के पास से मोटा होता है फिर पतला होता हुआ बाहर की तरफ मुड़कर ऊपर जाता है। थन की चमरी लटकी रहती है पैर छोटे और पूँछ लंबी होती है। थन मध्यम आकार का और छीमी छोटी होती है।

  • गिर 

इसकी उत्पत्ति गुजरात है। इस का रंग पीलापन लिये लाल काला या भूरापन लिये कथाई होता है कभी कभी शरीर पर भूरे धब्बे भी पाए जाते हैं। इसकी चमरी ढीली होती है मुँह पतला और कान लंबा होता है कान लंबे और नाक तक झूलते हैं। सींग पीछे की ओर मुड़ते हुए ऊपर जाता है। वजन करीब 400 किलोग्राम तक होता है यह एक बयान में करीब 1500 से 2000 लीटर दूध देती है।


2. विदेशी नस्ल

  • जर्सी

इंग्लैंड का न्यू जर्सी नामक द्वीप इसका जन्म स्थान है। दूध की दृष्टि से यह गाय बहुत उपयोगी है प्रति ब्यान लगभग 4500 लीटर दूध देती । दूसरी गायों की तुलना में इसका दूध अधिक पौष्टिक होता। जर्सी गाय का रंग हल्का लाल तथा उस पर काले या सफेद धब्बे होते हैं। वजन करीब 400 किलोग्राम होता है। कम स्थान में भी इसका पालन पोषण हो सकता है। यह हर तरह की जलवायु में रह लेती है। इसके सिर गर्दन और पीठ की उचाई लगभग एक बराबर होती है। थान बड़ा और छीमी मध्यम आकार की होती है। बाछी 26 से 30 माह के अंदर गाय बन जाती है और हर 12 से 13 माह पर बच्चा देती है।

  • HOLSTEIN FRIESIAN

इसकी उत्पत्ति हॉलैंड में हुई। इसका वजन 500 से 600 किलो होता है। रंग प्रायः काला होता है। लेकिन कोई कोई गाय काले रंग में सफेद धब्बे लिये होती है। पूँछ के बाल सफेद होते हैं। सामान्य रूप से यह प्रति बियान 6000 लीटर दूध देती है। यह सबसे अधिक दूध देने का रिकॉर्ड है। इसके दूध में वसा की मात्रा बहुत कम होती है। इसकी बात सी 28 से 32 महीने में गाय बन जाती है।


आवास प्रबंधन
गाय पालन के लिए गोशाला का निर्माण आवश्यक है। जहाँ धूप, वर्षा और जोरों से गाय का बचाव हो सके। इस बथानया खटाल के नाम से जाना जाता है। गोशाला के निर्माण में स्थान की चुनाव काफी महत्वपूर्ण है। इसके लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखें –

  • स्थान शहर के निकट हो या वहाँ पर यातायात का साधन होता कि दूध को बिक्री में कठिनाई न हो।
  • जहाँ मवेशी की आवश्यक आहार आसानी से मिल जाए।
  • स्थान थोड़ा ऊंचा हो ताकि जलजमाव न हो।
  • मल मूत्र के निकासी का उत्तम प्रबंध हो।
  • जमीन कम से कम डेढ़ कट्ठा यानी 50 फ़ीट लंबी और 40 फ़ीट चोरी हो ताकि पांच गाय आसानी से रह सके।

आहार प्रबंधन
कारोबार की दृष्टि से गाय को संतुलित आहार देना जरूरी है। संतुलित मतलब है न ज्यादा, न कम। चारा संतुलित हो लेकिन गाय रुचि लेकर नहीं खा रही हो। ऐसी स्थिती में रुचि बढ़ाने के लिए नमक गुर तथा खली डाल सकते हैं। अंकित नाद में जूठन के अलावा कोई दूसरी चीज़ न डालें। नाद में सारी गली चीज़ न डालें। पेट भरने के अलावा गाय को चारों से संतोष भी होना जरूरी है। संतोष नहीं होने पर वे मिट्टी और हानिकारक चीजें खाने लगती है। एक और बात खाने के समय चारे में अचानक बदलाव न लाएं। इससे दूध में कमी आ जाती है। जब भी चारा बदले यह ध्यान रहे कि पहले दिया जा रहा चारे में नए चारों को शुरू में थोड़ा थोड़ा मिलाएँ।
हरी घास गाय के स्वास्थ्य था दूध उत्पादन के लिए बहुत जरूरी है। अंकित गाय को सालों भर हरी चारा? उपलब्ध कराने की कोशीश करें। लेकिन व्यावहारिक रूप से यह संभव नहीं हो पाता है उस स्थिती में सूखी घास या समिश्रणप्रयोग में लाए।
यहाँ हरा चारा के मिश्रण के कुछ फॉर्मूले दिए जा रहे हैं —

  • मक्का का चारा

मक्का 20kg , लुसेरेन 5kg
लोबिया 10kg, कुल 35kg

  • बारसिम का चारा

जई 25kg , बारसीम सूखी 7kg
कुल 35 kg

दुधारू गाय की देख भाल
दुधारू गायों के आहार पर विशेष ध्यान दे।एक दिन के पूरे खुराक को 4 से 5 बार में दे।हरी घास की कुट्टी पुआल के साथ मिला के खिलाए। इससे पेट में गैस नहीं बनती है तथा पतला गोबर भी नहीं होता। अंकित निर्धारित समय पर ही दूध है। समय में परिवर्तन होने पर दूध की मात्रा घट सकती है। पर शांत वातावरण में ही दूध दुहे। दूध दुहने के बाद जमीन पर गिरे हुए दूध को पानी से साफ कर दे। गर्मी के मौसम में गाय को छाया में रखें और दिन में एक से दो बार नहलाएं साथ ही उसके थन पर भी दो तीनबार पानी का छिड़काव करें।

गाय का गर्भाधान
एक बचरा के बाद दूसरे बच्चे के बीच 12 से 13 माह का अंतर होना चाहिए। इससे अधिक समय लगता है तो दूध के उत्पादन पर असर पड़ता है। इसका पहला कारण तो खानपान हो सकता है। पेट भर और विटामिन से भरपूर चारा नहीं दिए जाने पर। गाय समय पर नहीं गरमाएगी। अंकित दूसरा अगर कोई रोग आदि हो। समय पर नहीं गर्म आना एक बड़ी समस्या है। पर या बच्चा देने के तीन माह बाद गाए गर्म आती है। इसी समय इसको गर्भाधान करा देना चाहिए।

गाभिन गाय की देखभाल
चारा, पानी के अलावा रोजाना देखभाल भी जरूरी है। गाभिन गाय को चोट न लगे इसके लिए विशेष ध्यान रखेंं और पैर नहीं फिसले इसके लिए उसे दूसरी गायों से अलग रखें। खुले बथान में एक गाय दूसरी गाय से लड़ने लगती है। जिस दिन गाय गाभिन होती है, उसके नौ माह बाद बचरा देती है। इसके हफ्ता भर पहले ही तैयारी शुरू कर दें। पहले इसे सुरक्षित तथा हवादार घर में रखे घर की साफ सफाई अच्छी तरह कर दे रौशनी का इंतजाम करते फर्श पर तीन चार इंच पुआल बिछा दे।

प्रसव के बाद देख भाल
बछड़ा हो जाने के तुरंत बाद लाल रंग की दवा पोटैशियमपरमैग्नेट मिलेसुसुम पानी से गाय का पिछला हिस्सा धीरे धीरे धो दें। गाय को बाहर की हवा से बचाएं, आसपास की जगह गर्म रखें। बच्चा पैदा होने के 8-10 घंटे बाद गाय जड़ याझाड़ी बाहर फेंक देती है। इसके प्रति बहुत सावधान रहें। मौका मिलते ही गाय से खा लेती है। इसका नतीजा होता है कि इस बयान में दूध कम हो जाती है। इसलिए इसे बाहर ले जाकर जमीन में गाड़ दें। इसके बाद हल्के गर्म पानी से धीरे धीरे धन को साफ कर लें, फिर खिल निकाल वही समी को ऊपर। यह भी पता लगा लें कि उसमें कहीं गांठ तो नहीं? अगर ऐसा हो तो तुरंत पशु चिकित्सक से इलाज के लिए मिले बछड़ा को पहला दूध पिलाकर ही फेनुस निकालें। ऐसा करने से दूध ज्वर होने की संभावना होती है। ऐसे समय में गाय को गुरखली, हल्दी आदि मिलाकर गर्म गर्म खाने को दें। एक 2 दिन बाद सामान्य चारा देना शुरू कर दें।

दुग्ध दोहन
दूध दुहना एक कला है। ठीक ढंग से दूध दुहा जाए तो उत्पाद में वृद्धि लाई जा सकती है। गाय के थन की बनावट ऐसी होती है कि दूध भरे रहने पर भी अपने आप नहीं निकलता। दूध का समय निर्धारित कर लें और उसी समय दूर है। ज्यादा दूध देने वाली गाय को तीन बार दूल्हे इससे दूध भी बढ़ जाएगा। गाय को सहलाकर शांत कर ले मारने पीटने या तंग करने से गाय दूध सूखा लेती है। कम से कम समय में दूध ले ज्यादा समय लगाने से दूध की नस सिकुड़ जाती हैं और पूरा दूध नहीं निकल पाएगा।
 दूध धोने वाला आदमी नाखून काटकर रहना चाहिए। दुहने से पहले साबुन या राख से हाथ धो लेना चाहिए। दूध दुहने समय अंगूठे कोछीमी के बीच में न रखें। इससे थनैल होने का डर रहता है।

दुधारू पशुओं के प्रमुख रोग 
1.    विषाणु जनित रोग
a)    मुंह वखूंरकी बीमारी
b)    रिंडरपेस्ट

2.    बैक्टेरियाजनितरोग
a) गलाघोंटू
b) जहरवाद
c) प्लीहा या पिलबढ़वा
d) निमोनिया

3.    दुग्ध ज्वार,अफरा,दस्त — मरोड़ इत्यादि।

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