Sanjay Kumar Singh
प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह
सह निदेशक अनुसंधान एवं
प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय समन्वित फल अनुसंधान परियोजना
डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा, समस्तीपुर, बिहार
यह रोग भारत में केवल बिहार, कर्नाटक और यू.पी. में पाया जाता है। रोग 1956 में तराई में राज्य के बागों में एक महामारी के रूप में दिखाई दिया था। इस रोग की उग्रता की वजह से पौधे में प्रकाश संश्लेषक गतिविधि में भारी कमी और मलिनकिरण होता है। पिछले साल एवं इस साल बिहार में मई के महीने में अत्यधिक वारिश होने की वजह से यह रोग आम की आम्रपाली प्रजाति में कुछ ज्यादा ही देखा गया,जबकि यह रोग सामान्यतः बरसात या बरसात के बाद देखा जाता है।
लाल जंग रोग के प्रमुख लक्षण
रोग की विशेषता प्रारंभिक हरे रंग के पैच से होती है, जब और जब बीमारी आगे बढ़ती है तो पत्तियों और नवजात टहनी पर लाल चकत्तेदार धब्बे हो जाता है। धब्बे शुरू में गोलाकार होते हैं, थोड़े ऊंचे होते हैं और बाद में अनियमित धब्बे बनते हैं।
यह रोग एक अलगी (शैवाल) जिसका नाम सेफेलुरोस विरेन्सेंस है के कारण से होता है। बाग के घना होने की वजह से या करीबी रोपण की वजह से यह रोग आम में अधिक लगता है। अधिक नमी इस रोग के फैलाव में सहायक होता है।
लाल जंग रोग का प्रबंधन कैसे करें ?
इस रोग को कॉपर ऑक्सीक्लोराइड नामक फफूंद नाशक से आसानी से प्रबंधित किया जा सकता है। यह कवकनाशी बाजार में ब्लाइटॉक्स 50 या ब्लू कॉपर 50के नाम से आता है। इसकी 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करने से इस रोग की उग्रता को कम किया जा सकता है। यदि इसकी उग्रता में कमी न आए तो 15 दिन के बाद इसी घोल से पुनः एक छिड़काव करें।
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