पंद्रह सितंबर के बाद आम - लीची के बागों में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग नहीं करें वर्ना फायदे की जगह हो जाएगा भारी नुकसान
पंद्रह सितंबर के बाद आम - लीची के बागों में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग नहीं करें वर्ना फायदे की जगह हो जाएगा भारी नुकसान

पंद्रह सितंबर के बाद आम - लीची के बागों में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग नहीं करें वर्ना फायदे की जगह हो जाएगा भारी नुकसान

प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह 
विभागाध्यक्ष,पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं नेमेटोलॉजी
डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा-848 125, समस्तीपुर,बिहार

इस समय आम और लीची के पेड़ों में खाद एवं उर्वरक डालने का समय चल रहा है  । अधिकांश किसानों ने पेड़ की उम्र के अनुसार खाद एवं उर्वरको का हिसाब करके ,उसका प्रयोग कर चुके होंगे। कुछ किसान ऐसे भी होंगे जो अभी तक खाद एवं उर्वरको का प्रयोग लगातार वर्षा एवं जलजमाव की वजह से अभी तक नहीं कर पाए होंगे। उनको सलाह दी जाती है की अभी 15 सितम्बर आने में समय है हर हाल में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग कर लें। यह सस्तुति बिहार के कृषि जलवायु के दृष्टिगत है,अन्य प्रदेशों में यह समय भिन्न हो सकता है,लेकिन सिद्धांत यही है ,अतः निर्णय वहा की कृषि जलवायु को ध्यान में रखते हुए ले।यदि खाद एवं  उर्वरकों का प्रयोग 15 सितम्बर तक नहीं कर पाते है तो उसके बाद खाद एवं  उर्वरकों का प्रयोग न करें, क्योंकि इसके बाद प्रयोग करने से फायदा होने के बजाय नुकसान होने की संभावना ज्यादा है।   क्योकि इसके बाद पेड़ वानस्पतिक वृद्धि की अवस्था से निकल कर प्रजननकारी अवस्था में चला जाता है। यह समय  उम्र एवं प्रजाति के अनुसार आगे पीछे भी हो सकता है।  इस अवस्था में पेड़ के अंदर फूल बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।  यदि इस समय बागवान ने बाग़ के साथ किसी भी प्रकार की कोई भी छेड़छाड़ यथा जुताई, गुड़ाई, कटाई छटाई ,खाद एवं उर्वरको का प्रयोग किया तो यह प्रक्रिया उलट जाती है एवं पेड़ प्रजननकारी अवस्था से निकल कर वानस्पतिक वृद्धि की अवस्था  में चला जाता है , जिसमे नई नई पत्तिया एवं टहनिया बनती है।  ऐसे पेड़ो में मंजर भी नहीं आता है। आम एवं लीची में खाद एवं उर्वरक देने का सबसे अच्छा समय , फलों की तुड़ाई के बाद का समय है क्योकि उस समय पेड़ वानस्पतिक वृद्धि की अवस्था में होता है।  यह नियम वहां पर नहीं लागू होता है जहां पेड़ रोगग्रस्त है ,क्योकि वहां पर हमारा उद्देश्य पेड़ को बचाना है , न की उससे उपज प्राप्त करना इसलिए पेड़ का उपचार करना आवश्यक है।

अभी भी समय है, जिन किसानों ने अभी तक खाद एवं उर्वरको का प्रयोग नहीं कर पाए हो निश्चित रूप से 15 सितम्बर के पहले पहले, खाद और उर्वरकों की गणना (निर्धारित) करके  दस वर्ष या 10 वर्ष से अधिक पुराने आम एवं 15 वर्ष पुराने लीची  के पेड़ (वयस्क वृक्ष) के लिए प्रति पेड़ 500 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फास्फोरस और 500 ग्राम पोटेशियम देना चाहिए। इसके लिए लगभग 550 ग्राम डाई अमोनियम फास्फेट (डीएपी), 850 ग्राम यूरिया और 750 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति पेड़ दें तो उपरोक्त पोषक तत्व की मात्रा पूरी हो जाती है। इसके साथ ही 20-25 किलो अच्छी तरह सड़ी गाय का गोबर या कम्पोस्ट भी देना चाहिए। यह खुराक एक पेड़ (वयस्क वृक्ष) के लिए है। यदि हम उपरोक्त उर्वरकों और की मात्रा को आम के लिए 10 एवं लीची के लिए 15 से विभाजित करते हैं और जो आता है वह 1 वर्ष पुराने पेड़ के लिए होता है। पेड़ की उम्र से पेड़ की खुराक गुणा करें, वही खुराक पेड़ को देनी चाहिए। इस तरह खाद और उर्वरक की मात्रा निर्धारित की जाती है। वयस्क पेड़ को खाद और खाद देने के लिए पेड़ के मुख्य तने से 1.5 से 2 मीटर की दूरी पर पेड़ के चारों ओर 9 इंच चौड़ा और 9 इंच गहरा वलय खोदा जाता है। उर्वरक डालने के बाद इसे रिंग में भर दिया जाता है, उसके बाद बची हुई मिट्टी से रिंग को भर दिया जाता है, फिर सिंचाई की जाती है। 10 साल से छोटे पेड़ की छतरी के अनुसार रिंग बनाएं। समय-समय पर खरपतवारों को भी हटा देना चाहिए।

आम - लीची में दूसरी डोज तब देनी चाहिए जब पेड़ में पूरी तरह से फल लग जाय।आम का फल मटर के दाने के बराबर एवं लीची का फल लौंग के बराबर का हो जाय तब देना चाहिए।