पपीता के पौधों का जमीन की सतह से सड़ कर गिरने की समस्या (तना गलन या कॉलर रॉट रोग) को कैसे करें प्रबंधित ?
पपीता के पौधों का जमीन की सतह से सड़ कर गिरने की समस्या (तना गलन या कॉलर रॉट रोग) को कैसे करें प्रबंधित ?

पपीता के पौधों का जमीन की सतह से सड़ कर गिरने की समस्या (तना गलन या कॉलर रॉट रोग) को कैसे करें प्रबंधित ?

प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह

विभागाध्यक्ष,पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं नेमेटोलॉजी

प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना, डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा-848 125, समस्तीपुर,बिहार

पपीता का यह एक महत्पूर्ण रोग है ,जो बरसात के मौसम में कुछ ज्यादा ही देखने को मिलता है।इस रोग के लिए एक से अधिक रोगकारक जिम्मेदार हो सकते है यथा पाइथियम अफेनिडर्मेटम, राईजोक्टोनिया सोलानी या फाईटोप्थोरा पाल्मीवोरा इत्यादि से फैलता है ।

तना गलन या कॉलर रॉट रोग के प्रमुख लक्षण

पपीते के तना एवं जड़ गलन या कॉलर रॉट रोग के प्रमुख लक्षण है, तने की छाल (Bark) पर जलसिक्त (Water Soaked) , स्पंजी (Spongy) धब्बे तने (Stem) के कॉलर भाग (Collar Region) में बनने लगते हैं । तने का कॉलर भाग (Collar Region) मिट्टी के ठीक ऊपर का हिस्सा होता है । इस प्रकार के बने धब्बे (Patches) बहुत शीघ्रता के साथ वृद्धि करते हैं तथा रोग ग्रस्त तने के चारों और गर्डिल (Girdle) बना लेते हैं जिससे तने के ऊतक गलने (Rot) लगते हैं और काले रंग का हो जाता है । सम्पूर्ण तना वायु के हल्के झोंके द्वारा ही गिर जाता है ।अन्त में तने की छाल (Bark) को ठीक से देखने पर भीतरी ऊतक (Internal Tissues) शुष्क (Dry) तथा मधुमक्खी (Honey Comb) छत्ते की भाँति दिखायी देता है तने की गलन (Rotting) जड़ों (Roots) तक पहुंच कर उन्हें नष्ट कर देती है ।

पपीते का तना जड़ गलन (सड़न) रोग या कॉलर रोट रोग का प्रबंधन कैसे करें?

पपीते का तना और जड़ सड़न, जिसे कॉलर रोट के रूप में भी जाना जाता है, एक गंभीर बीमारी है जो पपीते के पौधे के कॉलर क्षेत्र (आधार) को प्रभावित करती है, जिससे पौधा सड़ जाता है और अंततः मर जाता है। इस बीमारी को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए निम्नलिखित उपाय करना चाहिए

निवारक उपाय

कॉलर रोट के प्रबंधन का सबसे अच्छा तरीका संक्रमण की संभावना को कम करने के लिए निवारक उपायों को लागू करना है जैसे

स्थल चयन

अच्छी जल निकास वाली रोपण स्थल चुनें। जलभराव की संभावना वाले क्षेत्रों से बचें, क्योंकि अत्यधिक नमी रोग के विकास को बढ़ावा देती है।

मृदा जल निकासी

यदि आवश्यक हो तो मिट्टी की जल निकासी में सुधार करें। ऊंचे बिस्तर या टीले खराब जल निकासी वाले क्षेत्रों में मदद कर सकते हैं।

स्वच्छता

रोपण क्षेत्र में और उसके आसपास अच्छी स्वच्छता अपनाएं। रोग के फैलने की संभावना को कम करने के लिए, मलबे और गिरी हुई पत्तियों सहित किसी भी संक्रमित पौधे सामग्री को हटा दें और नष्ट कर दें।

फसल चक्र

एक ही क्षेत्र में बार-बार पपीता या अन्य अतिसंवेदनशील फसलें लगाने से बचें। रोग चक्र को तोड़ने के लिए फसलों का चक्रीकरण करें।

प्रतिरोधी किस्में रोपें

यदि उपलब्ध हो, तो पपीते की ऐसी किस्में चुनें जो कॉलर रॉट के लिए प्रतिरोधी हों। प्रतिरोधी किस्में संक्रमण के जोखिम को कम करने में मदद कर सकती हैं।

उचित सिंचाई

अत्यधिक पानी देने से कॉलर सड़न बढ़ सकती है। सुनिश्चित करें कि पपीते के पौधों को पर्याप्त पानी मिले लेकिन अत्यधिक नहीं। ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग करें या पौधों के आधार को पानी दें, पत्तियों को गीला होने से बचाएं।

घाव से बचें

पौधे के आधार पर यांत्रिक चोटों को रोकें क्योंकि खुले घाव कवक के लिए प्रवेश बिंदु के रूप में काम कर सकते हैं।

उर्वरीकरण

समग्र स्वास्थ्य और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा देने के लिए पौधों को उचित रूप से उर्वरित करें। हालाँकि, अत्यधिक नाइट्रोजन से बचें, जो पौधों को संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकता है।

मल्चिंग

पपीते के पौधों के आधार के चारों ओर जैविक गीली घास लगाएं। मल्च मिट्टी की नमी को संरक्षित करने में मदद करता है और बारिश या सिंचाई के दौरान मिट्टी से पैदा होने वाले रोगजनकों को पौधों पर फैलने से रोकता है।

निरीक्षण

कॉलर रॉट या अन्य बीमारियों के किसी भी लक्षण के लिए नियमित रूप से अपने पपीते के पौधों का निरीक्षण करें। शीघ्र पता लगाने से त्वरित कार्रवाई और रोकथाम में मदद मिलती है।

कवकनाशी द्वारा तना गलन या कॉलर रॉट रोग का प्रबंधन कैसे करें ?

गंभीर मामलों में या निवारक उपाय के रूप में, कॉलर रोट नियंत्रण के लिए पंजीकृत कवकनाशी लागू करें। अपने क्षेत्र के लिए सबसे उपयुक्त और प्रभावी कवकनाशी निर्धारित करने के लिए स्थानीय कृषि अधिकारियों या विशेषज्ञों से परामर्श करें। हमेशा अनुशंसित आवेदन दरों और सुरक्षा सावधानियों का पालन करें।

इस रोग के प्रबंधन के लिए निम्नलिखित उपाय करना चाहिए यथा पपीता के पौधों के प्रभावित क्षेत्रों में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड कवकनाशी का लेप कर देना चाहिए । कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (Copper Oxychloride) की 3 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर पौधे के आस पास की मिट्टी को खूब अच्छी प्रकार से भीगा देना चाहिए ।इसके 10 दिन के बाद एक इस तरह का कवकनाशी ले , जिसमे मेटालक्जिल एवं मंकोजेब मिला हो इसकी 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी के घोल से पौधे के आस पास की मिट्टी को खूब अच्छी तरह से भीगा दे। एक पौधे के आस पास की मिट्टी को भीगाने के लिए 5 लीटर घोल की आवश्यकता पड़ेगी। कैप्टान (Capton), मैकोजेब (Mancozab), कैप्टाफॉल (Captafal) आदि में से किसी भी एक कवकनशी का प्रयोग करके मृदा से रोगकरक (Pathogens) को कम किया जा सकता है ।

याद रखें कि कॉलर रोट के प्रबंधन के लिए रोकथाम अक्सर सबसे प्रभावी रणनीति होती है। अच्छी कृषि क्रियाओं का प्रयोग करके और एक स्वस्थ बढ़ते वातावरण को बनाए रखकर, आप बीमारी के फैलने के जोखिम को कम कर सकते हैं और अपने पपीते के पौधों को इस विनाशकारी रोगज़नक़ से बचा सकते हैं। यदि रोग पहले से ही मौजूद है, तो स्वस्थ पौधों में इसके प्रसार को रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई करना आवश्यक है। ऐसे मामलों में, अपने विशिष्ट स्थान और स्थिति के आधार पर अनुरूप अनुशंसाओं के लिए स्थानीय कृषि विस्तार सेवाओं या पादप रोग विशेषज्ञों से सलाह लेने पर विचार करें।