One District One Product- Janjgir-Champa

Janjgir-Champa



जांजगीर-चाम्पा ज़िला भारत के छत्तीसगढ़ राज्य का एक ज़िला है। ज़िले का मुख्यालय जांजगीर है जांजगीर चांपा को किसानों का नगर के रूप में कहा जाता है और छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा धान उत्पादन जांजगीर-चांपा जिले में ही किया जाता है और इसी के कारण छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा भी कहा जाता है राज्य के मध्य में होने के कारण इसे छत्तीसगढ़ के ह्रदय रूप में कहा जाता है। 

आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत खाद्य प्रसंस्करण सूक्ष्म इकाइयों को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना का आरंभ किया गया है। इस योजना के अंतर्गत असंगठित क्षेत्र के इकाईयों को एकत्र कर उन्हें आर्थिक और विपणन की दृष्टि से मजबूत किया जाएगा। 

चावल आधारित उत्पाद को किया गया चयनित
एक जिला एक उत्पाद के अंतर्गत जिले को खाद्य सामग्री में चावल आधारित उत्पाद के लिए चयनित किया गया है। जिसकी यूनिट लगाने पर मार्केटिग, पैकेजिग, फाइनेंशियल मदद, ब्रांडिग की मदद इस योजना के अंतर्गत किसानों को मिलेगी।

जांजगीर-चांपा कृषि प्रधान जिला है। यहां के किसानों ने आधुनिक खेती और धान के अधिक उत्पादन के लिए अपनी पहचान बनाई है। प्रदेश में सबसे ज्यादा धान का उत्पादन जिले में होता है। किसान आधुनिक खेती के साथ - साथ अधिक लाभ वाले फसलों में भी रूचि ले रहे हैं। जिले के किसानों में अधिक लाभ देने वाले पोष्टिक ब्लैक राइस की खेती में रुझान बढ़ रहा है। जिले में इस साल करीब 25 हेक्टेयर क्षेत्र में ब्लैक राइस की खेती की गई है । ब्लैक राइस की अधिक कीमत होने पर इसकी खेती से किसानों की समृद्घि बढ़ेगी।

काले चावल की पौष्टिकता
काले चावल के प्रमुख रूप से एंटी आक्सीडेंट गुणों की मात्रा अधिक होती है। स्वास्थ्य संबंधित कई बीमारियों में लाभ मिलता है । अधिक मात्रा में एंटी आक्सीडेंट होने से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक कैंसर जैसी घातक बीमारी में लड़ने की भी के लिए भी काफी फायदेमंद है। सफेद और ब्राउन राइस की तुलना में विटामिन बी, विटामिन ई, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम और जिंक जैसे तत्व ज्यादा मात्रा में होते हैं। कार्बोहाइड्रेट से मुक्त होने के कारण ब्लेक राईस को शुगर पेशेंट और हृदय रोगियों के लिए भी उपयुक्त बताया गया है। ब्लैक राइस के सेवन से कोलेस्ट्राल के स्तर को नियंत्रित रखता है। इसमें भरपूर मात्रा में फाइबर होने की वजह से अपच की समस्या नहीं होती। एंटीआक्सीडेंट तत्व की वजह से आंख के लिए भी फायदेमंद है।

धान की खेती एवं पैदावार:-
प्रदेश के प्राय: सभी जिलों की मुख्‍य फसल है। चावल यहां के लोगों का मुख्‍य भोजन है अत:भोजन की पूर्ति के लिए ग्रामीण क्षेत्रों के प्राय: सभी परिवारों द्वारा धान की खेती की जाती है । प्रदेश के मैदानी भागों में बड़े पैमाने पर धान की खेती होती है। यहां की विस्‍तृत समतल भूमि, उष्‍णजलवायु, पर्याप्‍त वर्षा, सघन जनसंख्‍या तथा उघोगों के अभाव के कारण बड़ी संख्‍या में लोग धान कीखेती करते हैं। धान उत्‍पादन की भौ‍गोलिक परिस्थितियां निम्‍नांकित हैं-

1 तापमान-

धान की खेती के लिए 28डिग्री ब से 30 डिग्री से 0ग्र0 तापमान की आवश्‍यकता होती है। बोते समय कम तापमान की आवश्‍कता होती है लेकिन फसल की वृद्धि के साथ-साथ अधिक तापमान की आवश्‍यकता होती है।

2. वर्षा-

धान की खेती के लिए 1000 से 1500 मि.मी. वर्षा की आवश्‍यकता होती है। धान उगाते समय पानी की कम आवश्‍यकता होती है और बढ़ते समय अधिक पानी की जरूरत होती है। पानी की कमी की पूर्ति सिंचाई से की जाती है।

3.मिट्टी-

इसके लिए मटासी, कन्‍हार और डोरसा मिट्टी अधिक उपयुक्‍त होती है। इस मिट्टी मे मंझोला और माई धान की खेती की जाती है। रेतीली और लेटेराइट मिट्टी मे जिनमें जल धारण करने की क्षमता कम होती है इसमें जल्‍दी पकने वाली धान बोयी जाती है।

4. सिंचाई-

धान की खेती मानसूनी वर्षा पर आधारित होती है। मानसूनी वर्षा अनिश्चित होती है। वर्षा जब आवश्‍यकता से कम होती है तो उसकी पूर्ति सिंचाई से की जाती है। कृषि भूमि के 22प्रतिशत भागों में सिंचाई की सुविधा है जिनमें नहरों द्वारा 72प्रतिशत भागों की सिंचाई होती हैं।

5.उर्वरक-

प्रारंभ में खेतों में गोबर खाद, कूड़ा-कर्कट और सिल्‍ट मिट्टी को डालते हैं। पौधे के बढ़ने पर रासायनिक खाद का उपयोग करते हैं। अधिक उत्‍पादन लेने के‍ लिए सम्‍पन्‍न कृषक अधिक उपयोग करते हैं क्‍योंकि उनके पास सिंचाई की सुविधा होती है।

6.श्रमिक-

प्रदेश के जनसंख्‍या का घन्‍त्‍व अधिक है। समतल मैदानी भागों और नदियों के किनारे, किनारे सघन अधिवास मिलते है। औद्यौगिककरण्‍ एवं नगरीयकरण के अभाव में ग्रामीण लोग अपने परिवार के भरण-पोषण क लिए धान की खेती को अपनाने हैं। इसमें मजदूर की अधिक आवश्‍यकता फसलों की अपेक्षा प्रति हेक्‍टेअर भरण-पोषण की क्षमता अधिक होती है।

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