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Chhatarpur



पान भारत के इतिहास एवं परंपराओं से गहरे से जुड़ा है। इसका उद्भव स्थल मलाया द्वीप है। पान विभिन्न भारतीय भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे ताम्बूल (संस्कृत), पक्कू (तेलुगू), वेटिलाई (तमिल और मलयालम), नागवेल ( मराठी) और नागुरवेल (गुजराती) आदि। पान का प्रयोग हिन्दू संस्कार से जुड़ा है, जैसे नामकरण, यज्ञोपवीत आदि। वेदों में भी पान के सेवन की पवित्रता का वर्णन है।

मध्य प्रदेश के छतरपुर जिला के महराजपुर , गढ़ी मलहरा , लवकुश नगर , बारीगढ़ , दिदवारा , पिपट और पनागर। देशी (महोबिया ) पान के नाम से विख्यात पान की खेती छतरपुर जिले में कैसे शुरू हुई इसका भी अपना एक अलग इतिहास है। 1707 ई में महराज छत्रसाल ने जब महराजपुर नगर बसाया उस समय यहां के लोगों को रोजगार के साधन के लिए ,पान की खेती शुरू कराई गई। पान की खेती के गुर और ज्ञान के लिए महोबा के पान किसानो का सहारा लिया गया। तभी से यह खेती इस जिले साथ, पन्ना , दमोह , सागर , और टीकमगढ़ जिले तक फैली। पर मुख्य तौर से देशी पान की खेती महोबा और छतरपुर जिले में ही होती है।

पान की बेल : यह छतरपुर जिले में उगाई जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण नकदी फसल है।

मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में पान के पत्ते के किसान - जो महोबा पान के रूप में देश भर में और यहां तक कि बाहर भी प्रसिद्ध तेज स्वाद वाली किस्म उगाते हैं।

छतरपुर जिले के गढ़ीमलहरा, महाराजपुर, पिपट, पनागर और महोबा जिले में पान की अच्छी-खासी पैदावार होती है. यहां से भारत के कई शहरों में पान की सप्लाई होती है। इसके अलावा पाकिस्तान, श्रीलंका आदि देशों में भी पान भेजा जाता है। 

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