Mustard Farming: सितंबर में बोयी गयी तोरिया में बुआई के 25-30 दिनों बाद पहली सिंचाई करने के बाद 50 कि.ग्रा. नाइट्रोजन की टॉप ड्रेसिंग करें। आलू के साथ मिलवां फसल के लिए आलू की तीन पंक्तियों के बीच राई की एक पंक्ति की बुआई करें।
इन किस्मों की करें बुवाई
सिंचित क्षेत्र में समय से बुआई (अक्टूबर माह) के लिए उन्नत प्रजातियां जैसे-पूसा सरसों 21, पूसा सरसों 22. पूसा सरसों-24, पूसा सरसों 25, पूसा सरसों-26, पूसा सरसों-27, पूसा सरसों-29, पूसा सरसों-30 पूसा डबल जीरो सरसों-31. पूसा विजय, पूसा करिश्मा, पूसा जगन्नाथ, पूसा बोल्ड, पूसा अग्रणी, गिरीराज, एन.डी. आर. ई. 4. माया, वसुंधरा: सिंचित पछेती बुआई के लिए उन्नत प्रजातियां जैसे-पूसा सरसों 28 आर. जी. एन. 145 नव गोल्ड एवं क्षारीय व लवणीय भूमि के लिए प्रजातियां जैसे- सी. एस. 56, सी.एस. 54, सी. एस. 52, सीएस-58. सीएस-60, आदि अच्छी हैं। उन्नत किस्मों का स्वस्थ बीज, समय पर बुआई एवं फसल सुरक्षा तरीके अपनाकर इसकी उत्पादकता को अधिक बढ़ाया जा सकता है।
बुवाई का उचित समय
तोरिया और सरसों की बुआई का उचित समय उत्तर-पश्चिमी तथा उत्तर-पूर्वी भारत के मैदानी क्षेत्रों में बारानी दशाओं में अक्टूबर का दूसरा पखवाड़ा तथा सिंचित दशाओं में नवंबर का प्रथम पखवाड़ा उपयुक्त है। तोरिया की बुआई का कार्य माह के प्रथम सप्ताह तक पूरा कर लें।
बुवाई से पूर्व करें बीजों का उपचार
बीजजनित रोगों से सुरक्षा हेतु फंफूदीनाशक दवा बाविस्टीन 2 ग्राम, एपरान 6 ग्राम, कैप्टॉफ 2 ग्राम या थीरम 2.5 ग्राम नामक रसायन से प्रति कि.ग्रा. बीज का शोधन अवश्य करें।
बीज की मात्रा
बीज दर 3-4 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर व पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30-45 सें.मी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सें.मी. व बीज की गहराई 2.5-3.0 सें.मी. तथा असिंचित क्षेत्रों में 5-6 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से शोधित बीज का प्रयोग करें।
निराई-गुड़ाई
बुआई के 20-22 दिनों के अन्दर निराई-गुड़ाई के साथ सधन पौधों को निकालकर पौधे से पौधे की दूरी 10-15 से.मी. कर देनी चाहिए ताकि पौधों की बढ़वार अच्छी तरह हो सके।
खाद एवं उर्वरक प्रबंधन
खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर किया जाए। फसल में बुआई से पूर्व 15 से 20 टन प्रति हैक्टर सड़ी गोबर की खाद तथा उर्वरकों के रूप में 80 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 60 कि.ग्रा. फॉस्फोरस, 40 कि.ग्रा. पोटाश तथा 30 कि.ग्रा. सल्फर प्रति हैक्टर प्रयोग करना चाहिए। फॉस्फोरस, पोटाश, सल्फर की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुआई के समय प्रयोग करनी चाहिए। बुआई 30 से 35 दिन बाद 40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रथम सिंचाई के समय प्रयोग करना चाहिए। जिंक की कमी के लक्षण बुआई के 20 से 25 दिनों बाद पत्तियों पर आते हैं। पत्तियों का आकार छोटा रह जाता है और उनके किनारे गुलाबी हो जाते हैं। शिराओं के मध्य में ऊतकों का रंग पीला, सफेद या कागजी सफेद हो जाता है जबकि शिरायें हरी रहती हैं। पत्तियां नीचे या ऊपर की तरफ प्याले की आकृति लेती हैं। प्रभावित पौधों पर फूल तथा फली देर से बनती हैं। अत: 25 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हैक्टर लाभदायक है। खड़ी फसल में जिंक की कमी दिखाई दे तो 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट का घोल बनाकर छिड़काव करने से बीज की गुणवत्ता व मात्रा में वृद्धि होती है। फूल आने के समय मल्टीप्लेक्स या एग्रेमिन 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करने से परागण पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवारों से मुक्त रखने के लिए 20-25 दिनों में एक बार निराई-गुड़ाई करना आवश्यक है। रसायनों द्वारा खरपतवार नियंत्रण करने हेतु बासालीन (फ्लुक्लोरेलिन 45 ई.सी.) 2.2 लीटर दवा 800 लीटर पानी प्रति हैक्टर की दर से अन्तिम जुताई से पहले छिड़काव कर तुरन्त जुताई करें व पाटा लगा दें अथवा पेन्डिमिथेलीन 30 ई.सी. (स्टाम्प-30) 3.3 लीटर दवा 1800 लीटर पानी प्रति हैक्टर की दर से बुआई के तुरन्त बाद परन्तु अंकुरण से पूर्व (1-2 दिन के अन्दर) छिड़काव करें। फसल में एक-दो निराई-गुड़ाई अवश्य करें।
सिंचाई प्रबंधन
अगेती सरसों में सामान्यत: दो सिंचाई पर्याप्त रहती हैं। प्रथम सिंचाई बुआई के 30 से 35 दिनों बाद तथा दूसरी सिंचाई फलियों में बीज बनने की अवस्था पर सूखे की स्थिति में करनी चाहिए।