ग्रीष्मकालीन मूंग की उन्नत खेती की आधुनिक गतिविधियाँ, जानिए उन्नत किस्में और विशेषताओं के बारे में

ग्रीष्मकालीन मूंग की उन्नत खेती की आधुनिक गतिविधियाँ, जानिए उन्नत किस्में और विशेषताओं के बारे में
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Kisaan Helpline

Crops Mar 07, 2022

Mung ki kheti: भारत में मूंग की फसल मुख्य रूप से एकल या खरीफ में अंतः अथवा मिश्रित फसल के रूप में ली जाती है। पिछले दो दशकों में नई सिंचाई परियोजनाओं से सिंचित क्षेत्र में वृद्धि हुई है। इसके साथ-साथ बेहतर कीमतें कम समयावधि वाली किस्में (60-65 दिन), अधिक उपज (10-15 क्विंटल/हैक्टर) फोटो थर्मा असंवेदनशील एवं पीलिया रोग प्रतिरोधी प्रजातियों को उपलब्धता के कारण इसका क्षेत्रफल ग्रीष्मकालीन मौसम में भी बढ़ा है। ग्रीष्मकालीन मौसम में मूंग की सफलतापूर्वक खेतो न केवल राष्ट्रीय पैदावार में वृद्धि करती है, बल्कि यह कुपोषण को भी दूर करती है। इसके अलावा यह फसल विविधीकरण टिकाऊ उत्पादन, मृदा स्वास्थ्य तथा किसानों को अतिरिक्त आय भी प्रदान करती है।

सामान्यतः मूंग, खरीफ मौसम की फसल है। इसके लिए इष्टतम तापमान 27-35 डिग्री सेल्सियस है। यह फसल इससे भी अधिक तापमान सहन कर सकती है इसीलिए इसकी खेती गर्मी के मौसम में भी आसानी से की जा सकती है। सूखा, अधिक गर्मी सहन करने की क्षमता व कम अवधि (60-65 दिन) की फसल होने के कारण मूंग सिंचित क्षेत्रों में ग्रीष्मकाल में एक अच्छा विकल्प है।

भूमि
मूंग के लिए उचित जल निकास वाली बलुई-दोमट मृदा सर्वोत्तम मानी जाती है। मृदा का पी-एच मान 6.5-7 के मध्य होना चाहिए क्योंकि यह फसल अधिक लवणीयता सहन नहीं कर पाती है। लवणीयता से पौधों की जड़ों की गांठों में उपस्थित राइजोबियम बैक्टीरिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इससे गांठों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्रिया बाधित होती है।

किस्मों का चुनाव
मूंग की प्रजाति का चुनाव, फसल प्रणाली, बुआई समय, सिंचाई स्रोत एवं जलवायुवीय कारकों पर निर्भर करता है। ग्रीष्मकालीन मूंग की बआई के लिए 60-65 दिनो में पककर तैयार होने वाली किस्मों को उपयुक्त माना जाता है। लघु अवधि की प्रजातियां यह सुनिश्चित करती हैं कि अगली फसल की समय पर बुआई तथा मानसून की शुरूआती वर्षा होने से पूर्व फसल की कटाई हो सके।

उन्नत किस्में एवं विशेषताएं 
  • के-851: 60 से 70 दिनों में पककर 8-10 क्विंटल प्रति हैक्टर उपज देती है।
  • पीडीएम-11: 60-65 दिनों में पककर 10-12 क्विंटल प्रति हैक्टर उपज देती है।
  • पीडीएम-139 (सम्राट ): यह खरीफ एवं जायद दोनों के लिए उपयुक्त है। 65-70 दिनों में पककर 6-8 क्विंटल/ हैक्टर औसत उपज देती है। यह किस्म पीला चित्ती रोग अवरोधी है।
  • आईपीएम-02-3: यह खरीफ एवं जायद दोनों के लिए उपयुक्त है तथा 65-70 दिनों में पककर 10-12 क्विंटल/ हैक्टर तक उपज देती है। यह किस्म पीला चित्ती रोग अवरोधी है।
  • एसएमएल-832: 60-65 दिनों में पककर तैयार होने वाली यह किस्म 11-12 क्विंटल/हैक्टर उपज देती है।
  • जीएएम-05: यह किस्म खरीफ एवं जायद दोनों के लिए उपयुक्त है। 60-65 दिनों में पककर तैयार होने वाली यह किस्म 18-19 क्विंटल/हैक्टर तक उपज देती है। यह किस्म पीला मोजेक विषाणु अवरोधी है।
गर्मियों में मूंग की बुवाई
जायद मूंग की बुवाई मध्य फरवरी से मार्च के अन्तिम सप्ताह तक कर सकते हैं। बुआई के लिए 15-20 कि.ग्रा./हैक्टर बीज की आवश्यकता होती है। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25-30 सें.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 10 सें.मी. रखनी चाहिए। बुवाई से पूर्व प्रति कि.ग्रा. बीजों को 3 ग्राम थीरम या आधा ग्राम कार्बेण्डाजिम से उपचारित करना चाहिए। इसके बाद बीजों को राइजोबियम कल्चर से उपचारित कर छाया में सुखाकर बोना चाहिए।

राइजोबियम से बीज उपचार
एक लीटर पानी में 250 ग्राम गुड़ को घोलकर गरम करें। ठंडा होने पर 200 ग्राम के तीन पैकेट राइजोबियम कल्चर मिला दें। इस मिश्रण को एक हैक्टर की बुआई में प्रयोग होने वाले बीजों पर परत के रूप में चढ़ा दें तथा छाया में सुखाकर बुवाई के लिए प्रयोग में लें।
 
उर्वरक
20 कि.ग्रा. नाइट्रोजन व 40 कि.ग्रा. फॉस्फोरस प्रति हैक्टर की दर से बुवाई के समय खेत में देना चाहिए।

खरपतवार प्रबंधन
ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल में खरपतवार प्रबंधन अतिआवश्यक है, ताकि प्रारंभिक विकास चरण में फसल व खरपतवारों की प्रतिस्पर्धा कम कर अधिक उत्पादन लिया जा सके। फसल-खरपतवार प्रतिस्पर्धा बुवाई के 20-25 दिनों बाद तक अधिकतम होती है। इस क्रान्तिक अवस्था पर खरपतवार प्रबंधन नहीं करने की स्थिति में 30-50 प्रतिशत तक उपज में नुकसान हो सकता है। नुकसान की मात्रा खरपतवार सघनता एवं प्रकार पर निर्भर करती है। बुआई के 20-25 दिनों बाद हाथ से निराई फायदेमंद रहती है। पर्याप्त नमी की अवस्था में बुवाई के तुरन्त बाद व अंकुरण के पूर्व पेन्डीमिथेलीन 30 ई.सी. 1.0 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व/हैक्टर का छिड़काव करना चाहिए। खड़ी फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के 15-20 दिनों बाद ईमाजिथायपर 10 प्रतिशत एस.एल. 55 ग्राम सक्रिय तत्व/ हैक्टर का मृदा में पर्याप्त नमी की अवस्था में छिड़काव करना चाहिए।

सिंचाई
अधिक तापमान होने के कारण ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल को ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसलिए आवश्यकतानुसार 6-8 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। फसल की क्रान्तिक अवस्थाओं जैसे-फूल आने से पूर्व तथा फलियों में दाना बनते समय भूमि में पर्याप्त नमी बनाकर रखनी चाहिए अन्यथा उत्पादन में भारी कमी हो सकती है।

कीट एवं रोग प्रबंधन
  • एफिड्स (मोयला): डायमिथोएट 30 ईसी एक लीटर प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करें अथवा अजाडिरेक्टिन 3000 पी.पी.एम. 1.5 लीटर/हैक्टर की दर से छिड़काव करें।
  • फली छेदकः मोनोक्रोटोफॉस 36 एस. एल. या क्यूनालफॉस 25 ईसी एक लीटर प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करें।
  • चित्ती जीवाण रोग: इस रोग में छोटे गहरे भूरे रंग के धब्बे पत्तों पर तथा प्रकोप बढ़ने पर फलियों और तने पर दिखाई देते हैं। इसके नियंत्रण के लिए एग्रीमाइसिन 200 ग्राम या 2 कि.ग्रा. ताम्रयुक्त कवकनाशी का प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करें।
  • पीतशिरा मोजेक (विषाणु रोग): रोग का प्रकोप दिखने पर डायमिथोएट 30 ईसी का एक लीटर प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करें।
  • छाछ्या रोग: इसकी रोकथाम के लिए प्रति हैक्टर 2.5 कि.ग्रा. घुलनशील गंधक 0.3 प्रतिशत या एक लीटर डायनोकेप 35 एलसी (केराथेन एलसी) के 0.1 प्रतिशत घोल का पहला छिड़काव रोगका लक्षण दिखाई देते ही करें। दूसरा छिड़काव 10 दिनों के अंतराल पर अथवा 25 किग्रा. प्रति हैक्टर गंधक चूर्ण का भुरकाव करना चाहिए।
  • पीलिया रोगः रोग दिखने पर 0.1 प्रतिशत गंधक के तेजाब या 0.5 फेरस सल्फेट का छिड़काव करें।

कटाई एवं पैदावार
फलियों के झड़कर गिरने से होने वाली हानि को रोकने के लिए फसल पकने के बाद पहली कटाई कर लें। कटाई के एक सप्ताह बाद फसल सूख जाने पर गहाई कर दाना निकाल लिया जाता है। आधुनिक सस्य क्रियाएं अपनाकर 10-15 क्विंटल प्रति हैक्टर उपज प्राप्त की जा सकती है।

सावधानी
  • केवल सिंचित क्षेत्र के लिए उपयुक्त कम बीज प्रतिस्थापन दर
  • प्रजनन कार्य में आनुवंशिक विविधता का सीमित उपयोग
  • समय पर आदानों की अनुपलब्धता
खतरा
  • कभी-कभी थ्रिप्स अथवा फलोछेदक का प्रकोप
  • पीले मोजेक विषाणु द्वारा भारी क्षति 
  • नील गाय, जंगली शूकर या आवारा पशुओं द्वारा नुकसान

ग्रीष्मकालीन मूंग की विशेषता
  • कम आदानों की आवश्यकता। 
  • मृदा की उर्वरा शक्ति का बढ़ना।
  • कम फसल अवधि। 
  • धान्य फसल आधारित फसल प्रणाली में आसानी से समावेश हाड़ौती क्षेत्र में सिंचाई जल की उपलब्धता। 
  • पीला मोजेक विषाणु प्रतिरोधी। 
  • किस्मों की उपलब्धता। 
  • व्यापक आनुवंशिक आधार। 
  • खड़ी फसल की पकी हुई फलियों को तोड़ने के बाद हरे चारे को भूमि में पलटकर हरी खाद के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है।
  • अच्छा अनुसंधान कार्य। 

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