वर्तमान समय में मौसम के बदलते तेवर ने इंसान ही नहीं फसलों को भी बीमार कर दिया है। बढ़ती ठंड और आसमान में छाए बादलों के कारण माहू कीट के हमले से दलहन की फसलें खराब हो रही हैं। अरहर, मूंग सेमी और पोपट जैसी फसलें अब इसकी चपेट में आ गई हैं। इन फसलों के अलावा अब चने की फसल पर भी खतरा मंडरा रहा है। जिस तरह से तापमान में रोज उतार-चढ़ाव हो रहा है, उससे खड़ी चने की फसल पर उकठा रोग लगने की पूरी संभावना है।
क्या होगा उकठा रोग लग गया तो
यदि खड़ी चने की फसल में उकठा रोग हो जाए तो यह पूरी फसल को बर्बाद कर देता है। इस रोग के लगते ही चने के पौधे अचानक सूखने लगते हैं। यदि आप यह पहचानना चाहते हैं कि आपके चने के पौधे मुरझान रोग से ग्रसित हैं या नहीं, तो आप कुछ पौधों की जड़ों के पास चीरा लगा दें, यदि उसमें काली संरचना दिखाई दे तो समझ लें कि आपके पौधों को मुरझान रोग हो गया है। इस बीमारी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इससे पहले कि किसान कुछ समझ पाता, फसल को काफी नुकसान हो चुका होता है। इसलिए किसानों को इसके शुरू होने से पहले ही फसलों को इस बीमारी से बचाने के उपाय कर लेने चाहिए।
कैसे बचाएं फसलों को उकठा रोग से
उकठा रोग की रोकथाम के लिए बुआई अक्टूबर के अन्त या नवंबर के प्रथम सप्ताह में कर देनी चाहिए। बाविस्टीन 2.5 ग्राम या कार्बोक्सिन या 2 ग्राम थीरम या 2 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी + 1 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से बीजोपचार करें। फिर भी यदि आपने ऐसा नहीं किया है और फसल में मुरझा रोग लग गया है तो चिंता न करें और रोग की शुरुआत में ही किसी कृषि संबंधित दुकान पर जाकर इस रोग से बचाव के लिए वहां से उपलब्ध दवा लाकर खेत में लगा दें। खेत। इसका छिड़काव कराएं।
चने के रोगों की रोकथाम के उपाय
चने में भी बहुत से रोग लगते हैं, जिससे चने की पैदावार पर काफी असर पड़ता है। समय पर इन रोगों की पहचान एवं उचित रोकथाम से फसल को होने वाले नुकसान को काफी कम किया जा सकता है। झुलसा रोग की रोकथाम के लिए प्रति हैक्टर 2.0 कि.ग्रा. जिंक मैगनीज कार्बामेंट को एक हजार लीटर पानी में घोलकर 10 दिनों के अन्तराल पर दो बार छिड़काव करें या क्लोरोथालोनिल 70 प्रतिशत डब्ल्यूपी/300 ग्राम/एकड़ या बाविस्टीन 12 प्रतिशत + मैन्कोजेब 63 प्रतिशत डब्ल्यूपी/500 ग्राम/एकड़ या मेटिराम 155 प्रतिशत पायरोक्लोरेस्ट्रोबिन 5 प्रतिशत डब्ल्यूजी /600 ग्राम/एकड़ या टेबूकोनाजोल 50 प्रतिशत ट्रायफ्लोक्सीस्ट्रोबिन 25 प्रतिशत डब्ल्यू जी/100 ग्राम/एकड़ या ऐजोस्ट्रोबिन 11 प्रतिशत + टेबूकोनाजोल 18.3 प्रतिशत एससी/250 मि.ली./एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। जैविक उपचार के रूप में ट्राइकोडर्मा विरिडी/500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस/250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।