मध्यप्रदेश: चिन्नौर सुगंधित चावल की न सिर्फ बालाघाट जिले में बल्कि समूचे देश में मांग रहती है। बालाघाट जिले में चिन्नौर सुगंधित धान परम्परागत तरीके से प्राचीन समय से उगाई जा रही है। अब बालाघाट जिले की चिन्नौर चावल को जीआई टैग मिल गया है।
दुनियाभर के बाजार में चिन्नौर की सुगंध से बालाघाट ही नहीं बल्कि पूरा मध्य प्रदेश महकेगा। 2019 में कृषि विभाग बालाघाट ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, हैदराबाद में जीआइ-टैग (जियोग्राफिकल इन्डीकेशन टैग) के लिए दावा किया था। महाराष्ट्र ने भी जीआइ-टैग के लिए अपना दावा प्रस्तुत किया था। हालांकि परिषद ने मध्य प्रदेश के चिन्नौर को ही जीआइ-टैग की अनुमति दी। राज्य सरकार ने बुधवार को इसकी घोषणा की। अब यह किस्म दुनियाभर में बालाघाट के साथ मध्य प्रदेश को भी खास पहचान देगी। राज्य सरकार की ब्रांडिंग के बाद दुनियाभर के बाजार में चिन्नौर की सुगंध और स्वाद का जायका भी बढ़ेगा। इसका रकबा बढ़ाने के साथ ही अब किसान उत्पादन बढ़ाने आगे आएंगे। यह ऊंची किस्म ऊंचे दामों पर बिकेगी।
चावल की इस किस्म को "एक जिला एक उत्पाद" में किया था शामिल
मध्यप्रदेश के धान उत्पादक बालाघाट जिले की यह खास किस्म है, जिसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में लाने के लिए सरकार ने "एक जिला एक उत्पाद" में शामिल किया था।
जीआई टैग मिलने पर केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने ट्वीट कर कहा, ”बालाघाट के चावलों को मिला Geographical Indication (GI) Tag प्रधानमंत्री @NarendraModi जी के किसानों की आय दोगुनी करने के संकल्प में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा. इससे यहां के चावलों को वैश्विक बाजार में उचित स्थान और दाम मिलेगा, व इसका लाभ हमारे किसानों को मिलेगा.”
चिन्नौर के चावल की खासियत
चिन्नौर के चावल की खासियत इसकी महक और स्वाद है। उन्नत किस्म की इस धान के चावल के भीगने के बाद की खुशबू और पकने के बाद की मिठास का जिसने भी स्वाद लिया है, वह भूल नहीं सका। चिन्नौर का स्वाद ही नहीं महक भी गजब की है।
ऐसे जानें चिन्नौर को
- चावल अधिक खुशबूदार होता है।
- सभी किस्मों में सबसे उत्तम है।
- हाइट- 150 सेमी पौधा ।
- चिन्नौर 160 दिन में पकती है।
- किस्म - केवल चिन्नीर।
- उत्पादन- एक एकड़ में 7-8 क्विंटल।
- कीमत- 90-100 रुपये प्रति किलो।
क्षेत्र विशेष के उत्पाद को दिया जाता है जीआई टैग
हर क्षेत्र में कोई एक प्रोडक्ट अपनी यूनिकनेस के लिए जाना जाता है और उस क्षेत्र की पहचान बन जाता है। कई मामलों में किसी खास क्षेत्र के किसी खास प्रॉडक्ट को अपनी पहचान बनाने में दशकों, तो कभी सदियों लग जाते हैं. जीआई टैग उसी प्रॉडक्ट को मिलता है, जो एक खास एरिया में बनाया जाता है या पाया जाता है।
जीआई टैग मिलने से पता चल जाता है कि ये चीज उस पार्टिकुलर एरिया में मिलती है. जैसे महाराष्ट का अल्फांसो आम, एक बार पहचान मिलने के बाद एक्सपोर्ट बढ़ जाता है। खेती से जुड़ा प्रॉडक्ट होने पर किसानों को फायदा मिलता है. वैसे ही मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट को जीआई टैग मिलने पर उस प्रॉडक्ट को बनाने वाले लोगों को फायदा मिलता है।