Early Pea Cultivation: मटर की खेती देश के कई राज्यों में यह बड़े पैमाने पर किया जाता है। कम समय में अच्छा मुनाफा देने के कारण इस फसल की लोकप्रियता भी किसानों के बीच काफी ज्यादा है। बता दें कि इसके सूखे दानों का उपयोग दाल के रूप में किया जाता है। वहीं कच्ची फलियों का इस्तेमाल सब्जियां बनाने में किया जाता है।
मध्यम वर्गीय एवं पिछेती किस्मों की तुलना में अगेती मटर किसानों के लिए बहुत लाभप्रद होती है क्योंकि इससे किसानों को अधिक बाजार मूल्य मिल जाता है। इसके अलावा अगेती किस्मों में अन्य किस्मों की तुलना में बीमारियों एवं कीटों का प्रकोप कम होता है, साथ ही साथ इनमें मटर की तुड़ाई बार-बार नहीं करनी पड़ती जिससे अन्य प्रकार के व्ययों को बचाया जा सकता है जैसे- अधिक मजूदर व मजदूरी, बाजार में आने-जाने के लिये साधनों का व्यय इत्यादि। अगेती मटर लगाने से किसान का खेत जल्दी रिक्त हो जाता है जिसमें किसान गेहूँ तथा अन्य जायद की फसलों को आसानी से एवं समय से लगा सकते हैं।
अगेती मटर की खेती के लिए खेत की तैयारी
अच्छी पैदावार के लिए अच्छी जल निकास वाली भुरभुरी दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। वही अम्लीय भूमि सब्जी मटर के लिए उपयुक्त नही मानी जाती है। इसकी खेती के लिये उपयुक्त पी. एच. मान 6. 0-7.5 होती है। बुवाई के पहले खेत को अच्छी प्रकार से पलेवा करके नमी अवस्था में ही एक बार हैरो तथा 3-4 बार कल्टीवेटर से जुताई करके पाटा लगा देना चाहिए जिससे खेत समतल हो जायें तथा प्रचुर मात्रा में नमी लम्बे समय तक खेत में बनी रहे।
सब्जी मटर की उन्नतशील अगेती किस्में
काशी नन्दिनी (Kashi Nandini)
काशी नन्दिनी
यह मटर की अगेती किस्म है। इसे वी.आर.पी. -5 के नाम से भी जाना जाता है। अगेती किस्मों में इस किस्म का मुख्य स्थान है । बुवाई के लगभग 60-65 दिनों में | फलियाँ तुड़ाई योग्य हो जाती है। इसकी एक फली का औसत वजन 7-9 ग्राम तक होता हैं तथा एक फली में 7-9 दाने बनते हैं। इसकी सबसे बड़ी बात यह है कि पौधे में लगे सभी फलियाँ एक साथ तैयार हो जाती हैं जिससे बार-बार तुड़ाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इसके हरी फलियों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन लगभग 8-9 टन होती है एवं बीज का उत्पादन 1.5-1.8 टन प्रति हेक्टेयर होता है ।
काशी उदय (Kashi Uday)
काशी उदय
इस किस्म के पौधे 55-58 सेमी. लम्बे तथा पुष्पन बीज बुवाई के 36-38 दिनों बाद आता है। यह किस्म किसानों में बहुत लोकप्रिय है। इसके प्रत्येक पौधे पर 6-8 फलियाँ विकसित होती है तथा प्रत्येक फली में 7-9 दानों का समावेशन होता है। देश के लगभग सभी राज्यों में इसका अच्छा उत्पादन होता है। बुवाई के 60-65 दिनों बाद पहली तुड़ाई की जा सकती है। इसमें एक-दो तुड़ाई की आवश्यकता होती है। इसके हरी फलियों का औसत उत्पादन 7-8 टन होता है एवं बीज का उत्पादन 1.4-1.6 टन प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त होता है।
काशी मुक्ति (Kashi Mukti)
काशी मुक्ति
यह अगेती किस्म होने के साथ-साथ अपने मिठास के लिए जानी जाती है। इसमें काशी उदय एवं काशी नन्दिनी की अपेक्षा अधिक गर्मी सहन करने की क्षमता होती हैं एवं दोनों किस्मों की अपेक्षा 5-10 दिनों बाद पकती है, परन्तु उत्पादन में कोई कमी नही होती है। प्रत्येक पौधों से 2-3 शाखायें निकलती हैं तथा प्रत्येक पौधे से 10-12 फलियाँ प्राप्त होती हैं। प्रत्येक फली में 6-8 दाने विकसित होते हैं। प्रत्येक फली का औसत भार 7-9 ग्राम तक होता है। इसके हरी फलियों का एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में 9.0–9.5 टन उत्पादन होता है। बुवाई के 65-70 दिनों में फली तुड़ाई के लिए तैयार होता है।
काशी अगेती (kashi ageti)
काशी अगेती
यह मटर की नवीन बौनी किस्म है जिसके पौधे की लम्बाई 55-60 सेमी. होती है। प्रत्येक पौधों से लगभग 10-14 फलियाँ प्राप्त होती हैं एवं प्रत्येक फली का औसत भार 8-10 ग्राम होता है। प्रत्येक फली में औसतन 7-9 दाने होते हैं। इसके हरे दाने में विशेष स्वाद, सुगंध एवं मिठास होता हैं। यह किस्म काशी नन्दिनी एवं काशी उदय की तुलना में 10-12 दिनों की देरी से तैयार होती है परन्तु उत्पादन में कोई कमी नहीं होती है। प्रति हेक्टेयर हरी फलियों की औसतन 9-10 टन एवं सूखे बीज 1.4-1.8 टन उत्पादन प्राप्त होता है। हरा बौना, अगेता, असौजी, अर्ली दिसम्बर, पंत उपहार, अर्ली बेजर तथा जवाहर मटर अगेती मटर की अन्य उन्नत किस्में हैं।
आजाद मटर-3 (ए.पी. - 3) {Azad Matar-3 (A.P. - 3)}
आजाद मटर-3 (ए.पी. - 3)
आजाद मटर—3 बहुत प्रचलित किस्मों में से एक है। यह किस्म उत्पादन के साथ-साथ अपने मिठास एवं विशेष प्रकार के स्वाद के लिए जाना जाता है। इसके पौधे औसत बढ़वार वाले, सीधे तथा गहरे हरे रंग के होते हैं। पुष्पन बुवाई के लगभग 40 दिनों बाद होता है । तुड़ाई बुवाई के लगभग 60-65 दिनों में मिल जाती है। इस किस्म में 3–4 तुड़ाई की जा सकती है। हरी फलियों का औसत उत्पादन 9.5-10.0 टन प्रति हेक्टेयर तक होता है तथा सूखे बीजों का औसत उत्पादन 1.5-1.8 टन प्रति हेक्टेयर होता है।
अर्केल मटर (arkel)
अर्केल मटर
इस किस्म में पौधे 45-50 सेमी. ऊँचे होते हैं। पुष्पन बुवाई के लगभग 32-37 दिनों में तथा पहली तुड़ाई बुवाई के लगभग 60-65 दिनों बाद मिल जाती है। इसके प्रत्येक फली में लगभग 6-8 दाने होते हैं एवं एक फली का औसत भार 6-8 ग्राम का होता है जिसकी फली का आकार 8 सेमी. लम्बी एवं नीचे की तरफ मुड़ी रहती है। इस किस्म से हरी फलियों का औसत उत्पादन प्रति हेक्टेयर 7.0-7.5 टन तथा सूखे बीजों का उत्पादन 1. 2-1.5 टन होता है।
खाद एवं उर्वरक प्रबंधन
अच्छी प्रकार सड़ी हुई गोबर की खाद 30-35 टन प्रति हेक्टेयर जुताई के समय मिला दिया जाता है। इस फसल में अधिक नत्रजन स्थिरीकरण का गुण पाया जाता है । अतः खेत में नत्रजन का उपयोग कम करने की आवश्यकता पड़ती है। इसमें उर्वरक प्रयोग 30:50:50 के अनुपात में नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश के रूप में किया जाता है। इसके अलावा 4-5 किग्रा. प्रति हेक्टेयर जिंक सल्फेट के प्रयोग करने से गुणवत्तायुक्त उपज सुनिश्चित होती हैं।
सिंचाई
अगेती फसल में सामान्यतः एक हल्की सिंचाई पौधों में फूल विकसित होते समय की जानी चाहिए। स्प्रिंकलर (फौव्बारा) द्वारा सिंचाई किया जाये तो यह फसल के लिए बहुत लाभप्रद होता है। सिंचाई करते समय विशेष ध्यान रखना चाहिए कि जल की उतनी ही मात्रा खेतों में लगाये जाये जितना की आवश्यकता हो। आवश्यकता से अधिक जल देने पर पौधे सूखने लगते हैं एवं उकठा रोग ज्यादा लगता है।