पहली बार भारत में शुरू हुई हींग की खेती, 11 हजार फीट की ऊंचाई पर हो रही खेती, किसानों की होगी लाखों में कमाई

पहली बार भारत में शुरू हुई हींग की खेती, 11 हजार फीट की ऊंचाई पर हो रही खेती, किसानों की होगी लाखों में कमाई
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Kisaan Helpline

Agriculture Aug 07, 2023

Hing ki kheti: भारतीय घरों में हींग का इस्तेमाल खासतौर पर व्यंजनों का स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग खाद्य पदार्थों और आयुर्वेदिक औषधियों को बनाने में भी बड़े पैमाने पर किया जाता है। हालाँकि, भारत में हींग का उत्पादन बहुत कम है, जिसके कारण इसे दूसरे देशों से आयात करना पड़ता है।

हींग भारतीय व्यंजनों में व्यापक रूप से उपयोग किए जाने वाले मसालों में से एक है, और देश दुनिया में कुल उत्पादन का लगभग 50% उपभोग करता है। इसके बावजूद, भारत में मसाला नहीं उगाया जा रहा था, और पूरी मांग आयात से पूरी की जाती थी, ज्यादातर अफगानिस्तान से। हालाँकि देश में इसकी कोई खेती नहीं होती है, फिर भी भारत में इसे आयातित कच्ची हींग का उपयोग करके संसाधित किया जाता है।

वर्तमान में अफगानिस्तान, ईरान और उज्बेकिस्तान से सालाना लगभग 600 करोड़ रुपये मूल्य की लगभग 1200 टन कच्ची हींग का आयात किया जाता है। घरेलू उत्पादन शुरू होने से आने वाले वर्षों में हींग का आयात कम होने की उम्मीद है। भारत द्वारा आयातित 90% हींग अफगानिस्तान से आता है।

हींग एक बारहमासी पौधा है और यह रोपण के पांच साल बाद जड़ों से ओलियो-गम राल पैदा करता है। इसे ठंडे रेगिस्तानी क्षेत्रों में बंजर ढलान वाली भूमि पर उगाया जा सकता है। मसाला पौधे के तने और जड़ से निकाला जाता है। यह पौधा ईरान के रेगिस्तान और अफगानिस्तान के पहाड़ों का मूल निवासी है जहां इसे पर्याप्त मात्रा में उगाया जाता है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि आखिरकार भारतीय कृषि वैज्ञानिक का यह प्रयास सफल हो गया है। अब देश में भी हींग की खेती (Asafoetida Farming in India) आसानी से की जा सकेगी।

3 साल में तैयार हो जाते हैं हींग के पौधे

मिली जानकारी के मुताबिक हिमालयन जैव प्रद्योगिकी संस्थान पालमपुर के वैज्ञानिकों ने अफगानिस्तान और ईरान से हींग के कुछ बीज खरीदे और फिर उन्होंने इस पर शोध करना शुरू कर दिया। वैज्ञानिकों ने इन बीजों पर करीब 3 साल तक मेहनत की और तब कहीं जाकर इसमें पौधे उगने लगे। हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति में ट्रायल के तौर पर कुछ किसानों को हींग की खेती का प्रशिक्षण भी दिया गया। लाहौल स्पीति के 7 गांवों के किसानों को हींग के पौधे दिए गए थे। साल 2020 में करीब 11 हजार फीट की ऊंचाई पर हींग की खेती शुरू हुई। 3 साल बाद अब हींग के पौधे बड़े हो गए हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक अगले 2 साल में इन पौधों से हींग मिलने लगेगी।

वैज्ञानिकों ने किसानों को हींग के पौधे दिए थे तो उन्हें कोई खास उम्मीद नहीं थी, लेकिन अब इन पौधों को देख रहे हैं तो ये काफी बड़े हो गए हैं और पैदावार देने के लिए तैयार हैं।

हींग की कीमत 35 से 40 हजार रुपये प्रति किलो

अंतरराष्ट्रीय बाजार में हींग की कीमत 35 से 40 हजार रुपये प्रति किलो है. एक पौधे से करीब आधा किलो हींग मिल जाती है। इसमें चार से पांच साल लग जाते हैं। हिमालयी क्षेत्रों में हींग की पैदावार होने के बाद किसानों को इसकी अच्छी कीमत मिलेगी।

अब हिमाचल के किन्नौर, मंडी, कुल्लू, चंबा, पांगी के ऊपरी इलाकों में हींग की खेती का परीक्षण किया जा रहा है। पिछले सालों से अब तक कुल 7 हेक्टेयर भूमि पर 47 हजार हींग के पौधे लगाए जा चुके हैं। इनमें से अधिकतर पौधे सफल रहे हैं।


Tags: Hing Ki Kheti, Asafoetida Farming in India, भारत में हींग की खेती, हींग की खेती

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