ट्राइकोडर्मा राइजोस्फीयर में काम करने वाला एक सूक्ष्मजीव है, जो अक्सर कार्बनिक अवशेषों पर पाया जाता है। ट्राइकोडर्मा हर्जियानम और विरिडी ये दो प्रजातियां विशेष रूप से प्रचलित हैं।
ये जैव कवकनाशी हैं, जो विभिन्न प्रकार के कवक रोगों को दूर करने में सहायक हैं।
ट्राइकोडर्मा के फायदे (Benefits of Trichoderma)
- ट्राइकोडम मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों के अपघटन को तेज करता है। जैव उर्वरक के रूप में कार्य करता है।
- यह पौधों की वृद्धि में सहायक होता है तथा यह फास्फेट तथा ट्रेस तत्वों को घुलनशील बनाता है।
- यह पौधे में एंटीऑक्सीडेंट को बढ़ाने में मदद करता है। ट्राइकोडर्मा को मिट्टी में मिलाने के बाद फलों के पोषक तत्वों की गुणवत्ता में खनिज की मात्रा में तेजी से वृद्धि होती है।
- रोगजनक जीवों को रोकता है। इन्हें मारने से पौधे रोग मुक्त हो जाते हैं।
सावधानियां
- ट्राइकोडर्मा कल्चर छह माह से अधिक पुराना नहीं होना चाहिए।
- ट्राइकोडर्मा से उपचारित करने के बाद बीजों को सीधी धूप में न रखें।
- ट्राइकोडर्मा का प्रयोग फफूंदनाशी रसायन के साथ न करें।
- ट्राइकोडर्मा से बीजों का उपचार करते समय छायादार एवं सूखे स्थान पर ही करें।
- ट्राइकोडर्मा को किसी प्रमाणित संस्था या कंपनी से ही खरीदना चाहिए।
- ट्राइकोडर्मा को जैविक खाद में मिलाकर अधिक समय तक न रखें।
भारतीय मानक के अनुसार ट्राइकोडर्मा उत्पादन की गुणवत्ता
- उत्पाद में नमी की मात्रा 8 प्रतिशत पीएच-7 होनी चाहिए।
- कालोनी खेती की इकाई कम से कम 2X106 प्रति ग्राम होनी चाहिए।
- ट्राइकोडर्मा के खिलाफ एंटी-माइक्रोबियल गतिविधि।
ट्राइकोडर्मा का उपयोग करने के तरीके
- बीजोपचार
- ट्राइकोडर्मा चूर्ण
- मृदा शोधन
- नर्सरी उपचार
- कंद उपचार
- सीड प्राइमिंग
- पौधा उपचार
- पौधों पर छिड़काव
स्त्रोत : ICAR "खेती"