सब्जियों की अधिक पैदावार लेने के लिए स्वस्थ पौध उत्पादन अत्यंत जरूरी है। मुख्यतः बेमौसमी सब्जियाँ जैसे टमाटर , बैंगन , शिमला मिर्च , लाल मिर्च , फूलगोभी , बंदगोभी , ब्रोकली , चायनीज , बंदगोभी , लाल बंदगोभी , सलाद वाली फसलें तथा कहूवर्गीय सब्जियों की सर्वप्रथम स्वस्थ पौध तैयार की जाती है। तत्पश्चात पौधरोपण कर अच्छी पैदावार ली जा सकती है. सब्जियों की संकर जातियों एवं अन्य सुधरी किस्मों के बीज अधिक महँगे होने के फलस्वरूप यह अत्यंत जरूरी हो जाता है कि एक बीज से एक स्वस्थ पौध उगाकर पैदा की जाए। लेकिन आमतौर पर यह देखा गया है कि नर्सरी में जितने बीज बोए जाते हैं वे पूरी तरह उगते नहीं हैं या जितने बीज उगते हैं वे पूर्ण पौध बनने में सफल नहीं होते। नर्सरी में पौध अगर अस्वस्थ तथा कमजोर पैदा हो तो वह पौधरोपण के पश्चात मर जाती है या अस्वस्थ होने पर शेष अच्छे पौधे में भी बीमारी फैलाने का काम करती है। अतः उत्तम तकनीक से स्वस्थ पौध उत्पादन कर किसान भाई कम खर्च पर अधिक लाभ कमा सकते हैं।
खेत का चयन
सब्जियों की पौध उगाने के लिए सर्वप्रथम ऐसे खेत का चयन करें जिसकी मिट्टी भुरभुरी या दोमट हो तथा उसमें दिन में काफी समय तक धूप रहती हो। यदि खेत की मिट्टी भारी चिकनी हो तो उसमें रेत मिलाकर दोमट बनाएँ। इसके उपरांत उचित आकार की क्यारियाँ बनाएँ जिनकी लम्बाई ( 3 - 6 मीटर ) इच्छानुसार तथा चौड़ाई 1 मीटर से अधिक न हो। अधिक चौड़ी क्यारियों में निराई , गुड़ाई करना मुश्किल हो जाता है। अच्छी क्यारियों की लम्बाई 3 मीटर तथा चौड़ाई 1 मीटर उपयुक्त पाई गई है। क्यारियाँ तैयार करते की समय 3 - 1 मीटर क्यारी में 20 - 25 किग्रा खूब गली सड़ी गोबर खाद डालकर उन्हें जमीन की सतह से कम से कम 6 इंच ऊंची बनाएँ तथा पानी की निकासी का उचित प्रबंध करें। प्रत्येक क्यारी की ऊपरी सतह में 200 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट , 25 ग्राम मॅकोजेब तथा कीटनाशी फोरेट 10 जी 20 - 25 ग्राम मिट्टी में अच्छी तरह मिलाएँ। नर्सरी में सिंगल सुपर फॉस्फेट खाद का प्रयोग करने पर छेटे पौधों की जड़े काफी फैलती हैं वह मजबूत होती हैं। पौधरोपण के पश्चात सभी पौधे खेत में लग जाते हैं।
बीजोपचार
नर्सरी बिजाई करने से पहले बीज का उपचार करना अति आवश्यक है। बीज का उपचार कार्वेण्डाजिम 2.5 ग्राम / किग्रा या मेंकोजेब 3 ग्राम / किग्रा बीज या थीरम 2.5 ग्राम / किग्रा बीज से करें। उपचारित बीज को क्यारियों में घना न बीजें इससे पौध लम्बी तथा कमजोर पैदा होती है। बिजाई के उपरांत गली सड़ी गोबर की खाद या मिट्टी की पतली सतह से बीज को ढंक दें तथा क्यारियों के ऊपर सूखी घास या बोरी रखकर हल्की सिंचाई करें। बीज अंकुरण होने पर क्यारियों से घास एवं बोरी को हटा दें तथा कम से कम नमी क्यारियों व बनाए रखें। क्यारियों में ज्यादा नमी होने पर पौधों में कमर तोड़ रोग लग जाने की सम्भावना बढ़ जाती है जिससे पौधों के कोमल तने जमीन की सतह से ही सड़ जाते हैं तथा पौधे जमीन पर गिरकर मर जाते हैं।अगर समय रहते इस रोग का नियंत्रण न किया जाए तो रसायन से सारी की सारी पौध भी खत्म हो जाती है। रोग के लक्षण दिखाई देने पर मेंकोजेब 2.5 ग्राम / लीटर पानी का घोल बनाकर क्यारियों में सिंचाई करें। इसके अतिरिक्त क्यारियों में कम नमी बनाए रखने पर भी इस रोग से छुटकारा पाया जा सकता है। मिट्टी का उपचार भौतिक एवं रासायनिक विधियों द्वारा किया जाता है।
भौतिक उपचार
नर्सरी की क्यारियों को 15 - 20 दिनों तक सफेद पॉलीथीन चादर से ढंक दें ताकि अंदर की हवा बाहर न निकल सके। सूर्य की रोशनी से क्यारियों के अंदर का तापमान बढ़ जाता है तथा अधिक गर्मी से क्यारियों में उपस्थित बीमारियों के कीटाणु व कीड़ों के अंडे मर जाते हैं। 20 दिन के उपरान्त चादर हटाकर क्यारियों में उचित सस्य क्रियाएँ अपनाकर बीजाई की जा सकती है।
रासायनिक उपचार
मिट्टी का रासायनिक उपचार फार्मेलिन या अन्य फफूदनाशक है। रोपाई दवाइयों से किया जा सकता है। फार्मेलिन दवाई का एक भाग 7 भाग पानी में मिलाकर 5 लीटर प्रति वर्गमीटर की दर से क्यारियों में मिलाएँ । इसके उपरांत पॉलीथीन की चादर से तीन सप्ताह तक क्यारियों को अच्छी तरह से ढंक दें तथा इसके किनारों पर मिट्टी डालकर सील बंद करें ताकि इस रसायन से पैदा होने वाली गैस बाहर न निकल सके।
इस प्रक्रिया से मिट्टी का पूर्ण निर्जीवीकरण हो जाता है। इस रसायन से बीज व पौधे का उपचार कभी न करें। मृदा का रासायनिक उपचार फफूदनाशकों जैसे मेंकोजेब - कार्बण्डाजिम ( 3 किग्रा -1 ग्राम प्रति लीटर पानी ) 5 लीटर प्रति वर्ग मीटर की दर से बीजाई के 2-3 दिन पूर्व किया जा सकता है। इसके उपरांत ऊपर सुझाए गए तरीके से क्यारियों में खाद मिलाकर बीज की पतली बीजाई कतारों में 2 इंच की दूरी पर की जा सकती है।
कदूवर्गीय सब्जियाँ जैसे खीरा , करेला , घीया , चप्पन कडू इत्यादि पौध उगाने के लिए पॉलीथीन के लिफाफों में एक-एक भाग गोबर तथा मिट्टी का मिश्रण भर दिया जाता है। प्रत्येक लिफाफे में 2-3 बीज लगाए जाते हैं, इसके उपरान्त लिफाफों को किसी गर्म जगह या बरामदे में रखकर पौध तैयार की जा सकती है। जब पौध 4 - 5 सप्ताह की हो जाए तो वह पौधरोपण के योग्य हो जाती है। रोपाई करने के 2 - 3 दिन पहले क्यारियों में पानी देना बंद करें जिससे पौध सख्त हो जाती है तथा उनमें रोपाई का झटका सहने की क्षमता बढ़ जाती है। रोपाई करने से एक घंटा पूर्व क्यारियों में पानी दें तथा पौधों को ऐसे उखाड़े जिससे जड़ों को कोई नुकसान न हो।